facebookmetapixel
श्रम कानूनों के पालन में मदद के लिए सरकार लाएगी गाइडबुकभारत-ओमान CEPA में सामाजिक सुरक्षा प्रावधान पर होगी अहम बातचीतईयू के लंबित मुद्दों पर बातचीत के लिए बेल्जियम जाएंगे पीयूष गोयलअनुकूल महंगाई दर ने खोला ब्याज दर कटौती का रास्ता: RBI गवर्नरशुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रह में 8% की बढ़ोतरी, रिफंड घटने से मिला सहाराफाइजर-सिप्ला में हुई बड़ी साझेदारी, भारत में प्रमुख दवाओं की पहुंच और बिक्री बढ़ाने की तैयारीगर्मी से पहले AC कंपनियों की बड़ी तैयारी: एनर्जी सेविंग मॉडल होंगे लॉन्च, नए प्रोडक्ट की होगी एंट्रीमनरेगा की जगह नए ‘वीबी-जी राम जी’ पर विवाद, क्या कमजोर होगी ग्रामीण मजदूरों की ताकत?1 फरवरी को ही आएगा 80वां बजट? रविवार और रविदास जयंती को लेकर सरकार असमंजस मेंसिनेमाघरों में लौटी रौनक: बॉक्स ऑफिस पर 11 महीनों में कमाई 18% बढ़कर ₹11,657 करोड़ हुई

पटेल और रूपाणी की राजनीति के लिए अहम हैं आने वाले दिन

Last Updated- December 12, 2022 | 4:21 AM IST

शायद ही ऐसा कोई दिन बीतता हो जब गुजरात सरकार को कोविड-19 संक्रमण से निपटने के उसके प्रयासों के लिए उच्च न्यायालय की झिड़की न सहनी पड़ती हो। या तो राज्य सरकार के अधिवक्ता आसानी से निशाना बन जाते हैं या फिर मुख्यमंत्री विजय रूपाणी का व्यक्तित्व ही ऐसा है कि वह शायद यह बात सामने नहीं रख पा रहे हैं कि राज्य सरकार महामारी से निपटने के लिए क्या कर रही है। चाहे जो भी हो कुलमिलाकर हालात ठीक नहीं हैं। उन बातों पर एक नजर डालते हैं जो न्यायालयों ने गुजरात सरकार और कोविड-19 के बारे में कही हैं। टीकों की उपलब्धता के बारे में एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए एक तीखी टिप्पणी में अदालत ने कहा, ‘क्या सरकार टीके खरीदने के लिए पंचवर्षीय योजना पर काम कर रही है?’ अदालत के यह पूछने पर महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी ने आनन-फानन में आंकड़े पेश करते हुए बताया कि सरकार टीके खरीदने के लिए क्या-क्या कर रही है? अदालत ने सख्ती से कहा, ‘हम सरकार के इरादों पर शक नहीं कर रहे हैं लेकिन कुछ और कदम उठाने होंगे। आपको टीकों के कुछ और स्रोत तलाशने होंगे।’
इससे पहले एक मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए उच्च न्यायालय ने कहा था कि सरकारी अधिकारी उसके उन निर्देशों की अनदेखी कर रहे हैं जिनमें उसने कहा था कि अस्पताल में बिस्तरों और टीकों की जानकारी ऑनलाइन अद्यतन की जाए। इससे पहले पीठ ने सरकार से कहा था, ‘आप हकीकत से दूर रहकर इस संकट को दूर करने का निर्णय नहीं ले सकते। आपको जमीनी स्तर पर आना होगा और हालात का जायजा लेना होगा। आपके हलफनामे में वह जमीनी हकीकत दिखाई नहीं देती जो हर रोज हर कहीं देखी जा सकती है। हलफनामा एक गुलाबी तस्वीर पेश करता है मानो हर जगह सबकुछ ठीक है और आप अपनी तरफ से हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। परंतु हमें इस बारे में कुछ नहीं पता है कि मांग क्या है, आपूर्ति कैसी है, किन चीजों की कमी है और आप संसाधन कहां से लाएंगे।’ यह सही है कि रूपाणी प्रदेश सरकार के मुखिया हैं और उसके हर कामकाज के लिए वही जिम्मेदार हैं, लेकिन आलोचना का ज्यादातर हिस्सा उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल पर केंद्रित माना जाना चाहिए जिनके पास स्वास्थ्य विभाग है।
पटेल ने कभी इस बात को नहीं छिपाया कि वह मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं। सन 2014 में जब नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने का पूर्वानुमान जताया गया तब पटेल ने कहा कि वह गुजरात के मुख्यमंत्री का दायित्व संभालने को तैयार हैं। उन्हें मोदी और गृहमंत्री अमित शाह दोनों का समर्थन हासिल है। पटेल मेहसाणा से आते हैं जो वाणिज्यिक गतिविधियों का केंद्र है। पटेल पाटीदार समुदाय के निर्विवाद नेता हैं। यह समुदाय भाजपा का एक शक्तिशाली वोट बैंक है। हार्दिक पटेल के नेतृत्व वाले आंदोलन के बाद इसके भाजपा से छिटकने का खतरा था लेकिन असंतोष के बावजूद यह समुदाय पटेल के साथ एकजुट रहा। पटेल ने समुदाय के नेताओं के साथ बातचीत में अहम भूमिका निभाई और उनकी चिंताओं को दूर किया।
विजय रूपाणी को जहां सबको साथ लेकर चलने वाले नेता के रूप में देखा जाता है वहीं पटेल कहीं अधिक तेवर वाले माने जाते हैं। कुछ माह पहले एक स्थानीय टेलीविजन चैनल को दिए साक्षात्कार में पटेल ने कहा था, ‘दुनिया भर के विशेषज्ञ कह रहे हैं कि कोरोना महामारी दुनिया में लंबे समय तक रहेगी, ऐसे में गुजरात के 6.30 करोड़ लोगों के हित और उनकी आजीविका अहम है। अब तक हम सख्ती से लॉकडाउन लागू कर रहे थे, अब वह समय आ गया है जहां हम कोरोना के अभ्यस्त हो चुके हैं। अब अगर कारोबार, रोजगार, खेती, पशुपालन, श्रमिकों द्वारा किए जाने वाले कार्य आदि लगातार बंद रहते हैं तो न केवल लोग और उनके परिवार की हालत बिगड़ेगी बल्कि समूचे राज्य की आर्थिक स्थिति कमजोर होगी। ऐसा होने देना उचित नहीं है। चरणबद्घ तरीके से छूट दी जा रही है। हम आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहन देने के लिए कदम उठा रहे हैं।’
इसके विपरीत रूपाणी का रुख हर लॉकडाउन के हर चरण में एक जैसा रहा है। उन्होंने यही कहा कि केंद्र ही राज्य को निर्देश देगा। उनकी बात सही अवश्य हो सकती है लेकिन राजनीतिक दृष्टि से ऐसा कहना सही नहीं।
परंतु क्या उच्च न्यायालय के उपरोक्त पर्यवेक्षणों का कोई अर्थ है? रूपाणी की छवि उनके पक्ष में जाती है। वह ऐसे नेता हैं जिन तक पहुंचना किसी के लिए भी आसान है। भले ही उनके अपने सहयोगी भी उन्हें मोटे तौर पर निष्प्रभावी मानते हों।
गत वर्ष के मध्य में गुजरात के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष को बदला गया था। अमित शाह के करीबी जीतू वाघानी की जगह नरेंद्र मोदी के निकटस्थ सीआर पाटिल को अध्यक्ष बनाया गया। नवसारी से सांसद पाटिल मराठी हैं। उनका परिवार दशकों पहले गुजरात आया था। 2019 के आम चुनाव में मोदी ने बनारस में उन्हें अपना चुनाव अभियान प्रबंधक चुना था जो परदे के पीछे के सारे काम संभालते थे। इस नियुक्ति को रूपाणी और नितिन पटेल दोनों के लिए चेतावनी के रूप में देखा जाना चाहिए। रूपाणी कोविड-19 प्रबंधन में कमियों के लिए अपने स्वास्थ्य मंत्री पर ठीकरा फोड़ सकते हैं। वहीं पटेल के लिए पाटिल के कदमों को रोक पाना मुश्किल होगा। प्रदेश में दिसंबर 2022 में चुनाव होने हैं। ऐसे में रूपाणी और पटेल दोनों के पास समय है कि वे हालात को ठीक करें।

First Published - May 28, 2021 | 11:50 PM IST

संबंधित पोस्ट