ताइवान में चुनावों का दौर अब निपट गया है और सत्तासीन डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (डीपीपी) के प्रत्याशी लाई चिंग-ते को जीत मिली है, हालांकि उनकी जीत का अंतर बेहद कम है। उन्होंने लगभग 40 प्रतिशत वोट जीते जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी प्रत्याशी, कुओमिंतांग पार्टी (केएमटी) के हो यु-इह को करीब 33 प्रतिशत वोट मिले हैं। वर्ष 2019 में बनी एक नई पार्टी, ताइवान पीपल्स पार्टी (टीपीपी) के प्रत्याशी को असामान्य रूप से 26 प्रतिशत वोट मिले।
डीपीपी ने ताइवान में 1996 में चुनावी लोकतंत्र की शुरुआत के बाद से जीत का कम मार्जिन होने के बावजूद, पहले तीन राष्ट्रपति चुनाव जीतने का इतिहास बनाया है। ताइवान की ज्यादातर जनता इसके ‘व्यावहारिक स्वतंत्रता’ के विचार का समर्थन करते हुए चीन के संप्रभुता के दावे और जरूरत पड़ने पर बलपूर्वक अंतिम एकीकरण किए जाने की बात खारिज करती है।
दूसरे दो अन्य दल 1992 के उस समझौते को स्वीकार करते हैं जो केएमटी के नेतृत्व वाली सरकार और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) के बीच हुई थी। इसमें कहा गया है कि ताइवान जलडमरूमध्य के दोनों तरफ के देश इस बात को स्वीकार करते हैं कि केवल एक ही चीन है, लेकिन एक इसे पीआरसी कहता है और दूसरा इसे रिपब्लिक ऑफ चाइना कहता है।
डीपीपी इसे इस कारण से स्वीकार नहीं करती है क्योंकि जब डीपीपी ने 2016 में चुनाव जीते, तब चीन और ताइवान के बीच सीधी बातचीत और अन्य संबंध स्थापित करने के माध्यम में चीन ने बाधा डाली। चीन, 1992 की सहमति को खारिज किए जाने की बात को स्वतंत्रता की घोषणा की ओर कदम बढ़ाने के रूप में देखता है।
13 जनवरी के चुनाव से पहले, चीन ने चेतावनी दी कि डीपीपी की जीत, युद्ध की दिशा की ओर ले जा सकती है और लाई चिंग-ते समस्या बढ़ाने वाले व्यक्ति हैं। आखिर डीपीपी की जीत पर चीन की प्रतिक्रिया कैसी रही है? पीआरसी के ताइवान मामलों के कार्यालय ने कहा कि यह चुनावी जीत, दरअसल ‘ताइवान पर मुख्यधारा के विचार’ को दर्शाती है। चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने कहा कि ये चुनावी नतीजे इस मूल तथ्य को नहीं बदल सकते हैं कि दुनिया में केवल एक चीन है और ताइवान चीन का एक हिस्सा है। चीन की इस टिप्पणी में राष्ट्रपति चुनाव के साथ हुए विधायी चुनावों में डीपीपी की हार की तरफ भी ध्यान दिलाया गया है। इस चुनाव में डीपीपी बहुमत से पीछे रह गई और इसे 51 सीट मिलीं जबकि केएमटी ने 52 और टीपीपी ने 8 सीट जीतीं।
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हालांकि चीन की ये शुरुआती प्रतिक्रिया अपेक्षाकृत संयमित है। ताइवान जलडमरूमध्य में बढ़ी हुई सैन्य गतिविधि को देखते हुए किसी भी तरह के आक्रामक परिणाम दिखने की उम्मीद नहीं है। चीन संभवतः ताइवान के विपक्षी दलों के साथ मिलकर काम करना पसंद कर सकता है, जो दल चीन के साथ नजदीकी रिश्ते बनाने की पक्षधर हैं। इस तरह चीन, सत्तारूढ़ दल डीपीपी के विकल्पों को सीमित कर सकता है और उस पर दबाव बढ़ा सकता है।
हालांकि अपना जनाधार खोए बगैर, न तो केएमटी और न टीपीपी चीन के एकीकरण एजेंडे को आगे बढ़ाने में सक्षम होंगे। उन्हें भी यथास्थिति को बरकरार रखने के पक्ष में होना चाहिए जो ताइवान की बहुमत आबादी की प्राथमिकता भी है। अमेरिका ने ताइवान में लोकतंत्र के फलने-फूलने की उम्मीदों के साथ चुनावों का स्वागत किया है, लेकिन यह भी दोहराया है कि यह इस द्वीप की स्वतंत्रता का समर्थन नहीं करता है। इसने ताइवान जलडमरूमध्य क्षेत्र में शांति और सुरक्षा बनाए रखने पर जोर दिया है।
अमेरिका की सरकार ने रिपब्लिकन पार्टी के जॉर्ज बुश के कार्यकाल (वर्ष 2005-08) के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रह चुके स्टीफन हैडली और डेमोक्रेटिक पार्टी के बराक ओबामा प्रशासन (2009-11) के दौरान उप मंत्री रहे जॉन स्टीनबर्ग को गैर-आधिकारिक दूत के रूप में नवनिर्वाचित राष्ट्रपति को बधाई देने और राष्ट्रपति साई इंग-वेन के साथ बातचीत करने के लिए भेजा है।
हाडली की साई के साथ मुलाकात के बाद उनके कार्यालय ने अपने संदेश में कहा, ‘ताइवान का लोकतंत्र, दुनिया के लिए एक मजबूत उदाहरण है और इसकी लोकतांत्रिक सफलता की कहानी पारदर्शिता, कानून के शासन, मानवाधिकारों और स्वतंत्रता के सम्मान पर आधारित है। मुझे राष्ट्रपति साई से मिलने का अवसर पाकर खुशी हो रही है और अमेरिका की ताइवान के प्रति प्रतिबद्धता अटल, सैद्धांतिक और सभी राजनीतिक दलों के समर्थन के आधार पर है और अमेरिका अपने मित्रों के साथ खड़ा रहेगा।’
इसे किसी देश की तरफ से गैर-आधिकारिक तरीके से दिए गए आश्वासन का एक असामान्य उदाहरण माना जा सकता है! स्टेनबर्ग ने एक और महत्त्वपूर्ण संदेश दिया कि किसी भी ‘एकतरफा बदलाव’ से जरूर बचा जाना चाहिए। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो इसका अर्थ यह था कि ताइवान और चीन को अपनी राजनीतिक यथास्थिति बदलने का प्रयास नहीं करना चाहिए। इसे चीन को एक साक्ष्य के रूप में बताया जाएगा कि अमेरिका ताइवान की स्वतंत्रता खारिज करता है।
क्या इस जटिल संतुलन बिठाने वाले कदमों से चीन आश्वस्त है? अब तक, इन गैर-आधिकारिक दूतों की यात्रा को लेकर चीन ने कोई आलोचना नहीं की है। इससे यह उम्मीद और बढ़ जाती है कि चीन, फिलहाल अपना कोई दांव बढ़ाने की योजना नहीं बना रहा है। अमेरिका और चीन के बीच वरिष्ठ स्तरीय आधिकारिक और सैन्य संपर्क जारी रहने की संभावना है।
जापान ने भी ताइवान को उसकी लोकतांत्रिक राजनीति के सफल प्रदर्शन के लिए बधाई दी है और दोनों पक्षों के साझा मूल्यों का जिक्र भी किया है। जापान की विदेश मंत्री ने कहा कि ‘ताइवान एक महत्त्वपूर्ण साझेदार है और यह एक ऐसा अहम दोस्त है जिसके साथ जापान अपने मौलिक मूल्यों को साझा करता है।’ उन्होंने ‘गैर-सरकारी आधार पर अपने कामकाजी संबंध’ बढ़ाने की जापान की प्रतिबद्धता का जिक्र भी किया।
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जापान और दक्षिण कोरिया दोनों ही ताइवान की स्थिति पर चर्चा करने से बचते हैं। लेकिन इसके बावजूद ये देश ताइवान जलडमरूमध्य की स्थिति को अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा और वैश्विक स्तर पर एक चिंताजनक मामले के रूप में पेश करना शुरू कर दिया है। दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक-योल ने घोषणा की है कि उत्तर कोरिया की तरह ताइवान जलडमरूमध्य एक ‘वैश्विक मुद्दा’ है।
ताइवान एक प्रमुख व्यापारिक शक्ति है और यह दुनिया की 16वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि ताइवान दुनिया के 92 प्रतिशत सबसे उन्नत लॉजिक चिप्स का स्रोत है और यह दुनिया भर में वाहनों, लैपटॉप, टैबलेट और स्मार्टफोन में लगने वाले 55 प्रतिशत सेमीकंडक्टर तैयार करता है।
ताइवान क्षेत्र में कोई भी संघर्ष होने से इस महत्वपूर्ण डिजिटल सामग्री की आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित होगी और साथ ही दक्षिण चीन सागर और ताइवान जलडमरूमध्य के मार्ग से जाने वाले वैश्विक समुद्री व्यापार का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा प्रभावित होगा। चीन के लिए ताइवान भले ही एक आंतरिक मामला हो लेकिन उसका भविष्य विश्व के बड़े देशों के हितों से भी जुड़ा हुआ है।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और सुरक्षा बनाए रखना भारत के लिए महत्त्वपूर्ण है जिसमें ताइवान भी केंद्र में है। भारत का ताइवान के साथ गैर-आधिकारिक संबंध है लेकिन हाल ही में दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश के रिश्ते गहरे हुए हैं। अगस्त 2022 में, भारत ने पहली बार ताइवान जलडमरूमध्य में सैन्य गतिविधियां बढ़ाने पर चीन की आलोचना की। इसके बाद एक और बयान आया जिसमें स्पष्ट रूप से चीन का नाम नहीं लिया गया था, लेकिन सभी पक्षों से संयम बरतने, तनाव कम करने, यथास्थिति में बदलाव लाने के लिए एकतरफा कार्रवाई से बचने और क्षेत्र में शांति एवं स्थिरता बनाए रखने की अपील की गई थी।
ताइवान जलडमरूमध्य की सुरक्षा को अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के मुद्दे के रूप में पेश किया जाना ही चीन के लिए एक बड़ी चुनौती है। चीन इस बात को जोर देकर कहता है कि ताइवान उसका घरेलू मामला है। भारत ने ताइवान पर अपने रुख में बदलावा किया है और हाल ही में इसने एक-चीन सिद्धांत पर मुहर लगानी भी बंद कर दी है। इसका यह कदम क्वाड के अन्य सदस्यों के रुख के अनुरूप है।