राष्ट्रीय टीम के बेहतर भविष्य के लिए उन महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर गौर किया जाना चाहिए, जो विश्व कप क्रिकेट प्रतियोगिता के समापन के बाद उभरे हैं। ये ऐसे प्रश्न हैं, जिन पर अजित अगरकर एवं चयनकर्ताओं की टीम को अवश्य विचार करने की आवश्यकता है।
क्या उन्हें रोहित शर्मा को टेस्ट, एक दिवसीय और टी20 तीनों प्रतिस्पर्धाओं के लिए टीम के कप्तान के रूप में बनाए रखना चाहिए? क्या उन्हें राहुल द्रविड़ का कार्यकाल बढ़ाना चाहिए या वीवीएस लक्ष्मण, आशिष नेहरा या किसी विदेशी कोच का विकल्प चुनना चाहिए? सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या विश्व कप के फाइनल तक पहुंचने वाली टीम में आमूल-चूल परिवर्तन किया जाना चाहिए?
चयनकर्ताओं के लिए ये निर्णय लेने कतई आसान नहीं होंगे। क्या उन्हें पुराने दिग्गजों जैसे रोहित शर्मा, विराट कोहली और मोहम्मद शमी को और अधिक समय देना चाहिए या भविष्य पर नजर रखते हुए नए युवा खिलाडि़यों का दस्ता तैयार कर उन्हें आगे लाना चाहिए? पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी नेहरा ने निरंतरता बनाए रखने पर जोर दिया है।
उनका कहना है कि अमेरिका महाद्वीप में जून 2024 में आयोजित होने वाले टी20 विश्व कप के लिए शर्मा को टीम का कप्तान बनाए रखना चाहिए। नेहरा का तर्क है कि उम्र के आधार पर निर्णय नहीं लेना चाहिए। उनका कहना है कि युवा खिलाड़ियों को शर्मा और कोहली के साथ बराबर शर्तों पर टीम में जगह पाने के लिए मेहनत करनी चाहिए।
शर्मा और कोहली क्रमशः 36 और 35 वर्ष के हो चुके हैं और इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि दोनों ही अगले कुछ और वर्षों तक राष्ट्रीय टीम में खेल सकते हैं। यहां एक बहस का विषय यह है कि इन खिलाड़ियों को दीर्घ अवधि तक राष्ट्रीय टीम से खेलने का मौका देने से किसी तरह के अवसर की हानि तो नहीं होगी? क्या इससे युवा प्रतिभाओं के लिए उच्चतम स्तर पर अपने हुनर दिखाने की संभावनाएं तो कम नहीं हो जाएगी?
यह मामला केवल क्रिकेट तक ही सीमित नहीं है। राजनीति हो या कारोबार, भारत में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को कमान देना आसान एवं सीधा नहीं रहा है। हमारे वर्तमान राजनेता कभी-कभार ही अपनी इच्छा से पीछे हटते हैं और नई पीढ़ी को अवसर देते हैं। वे यथासंभव दीर्घतम अवधि तक मैदान में जमे रहते हैं। कुछ समय बाद उत्तरदायित्व से जुड़ी चुनौती विकराल दिखने लगती है।
अगर शुरुआती रिपोर्ट की मानें तो शर्मा इस मामले में अपवाद साबित हो सकते हैं। उन्होंने अपने निःस्वार्थ खेल, अपनी निडर बल्लेबाजी के दम पर हाल में समाप्त विश्व कप में लगातार दस मैचों में टीम को जीत दिलाकर विशेष ख्याति हासिल की है। संभवतः उन्होंने मुख्य चयनकर्ता अगरकर को बता दिया है कि वह कुछ व्यक्तिगत कारणों से टी20 नहीं खेल पाएंगे और अपनी ऊर्जा एक दिवसीय और टेस्ट क्रिकेट के लिए बचा कर रखेंगे।
हार्दिक पंड्या को मुंबई इंडियन में वापस लाने का निर्णय यही संकेत दे रहा है। शर्मा इस टीम की कमान पंड्या को दे सकते हैं। फिलहाल इंतजार करना होगा कि चीजें कैसे आगे बढ़ती हैं।
यह स्पष्ट नहीं है कि कोहली भी कुछ इसी तरह करना चाहते हैं। मगर मेरा मानना है कि अगर नए युवा खिलाड़ियों को अवसर मिले तो भारतीय क्रिकेट, विशेषकर, टी20 प्रतियोगिता के लिए तो इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता है। क्रिकेट युवा लोगों का खेल है। इस खेल में त्वरित प्रतिक्रिया, तत्काल सुधार की खूबी और अनुकूलन की आवश्यकता होती है और यह काम पुराने लोगों की तुलना में नए लोग बखूबी कर सकते हैं।
भारत में अब प्रतिभावान क्रिकेट खिलाड़ियों की कमी नहीं है और शायद पहले कभी इतने प्रतिभावान लोगों की लंबी कतार नहीं दिखी थी। रिंकु सिंह, यशस्वी जायसवाल, रचिन रवींद्र और हैरी ब्रुक जिस जज्बे और हुनर के साथ खेल दिखा रहे हैं, उससे तो यही लगता है कि वे बड़े अवसरों के लिए पूरी तरह तैयार हो चुके हैं। उन्हें मौका देने में देर करना किसी के हित में नहीं है, कम से कम इन युवा खिलाड़ियों एवं उनकी प्रतिभा के हक में तो बिल्कुल नहीं है।
एक महत्त्वपूर्ण बात यह भी है कि जिस तरह क्रिकेट का खेल बदल रहा है, उसे देखते हुए कुछ लोगों को छोड़कर बाकी लोग सभी तीनों विधाओं में खेलने के लिए पूरी तरह फिट नहीं हैं। यह सच है कि टी20 मैचों के कारण टेस्ट क्रिकेट को बहुत नुकसान हुआ है, मगर यह खेल बिल्कुल अलग है। क्रिकेट के तीनों रूपों के लिए अलग टीम सहित कोच एवं कर्मचारी रखने का विकल्प विचारणीय है।
अब क्रिकेट लगभग पूरे साल चलता रहता है। इससे खिलाड़ियों को चोटिल होने, थकने एवं सामान्य दिक्कत होने की आशंका भी बढ़ गई है। कोच के रूप में द्रविड़ के कार्यकाल में भारत ने काम के बोझ से निपटना और अपनी प्रतिभा को बारी-बारी से इस्तेमाल करना सीख लिया है। अब भारत को अलग-अलग प्रतियोगिताओं के लिए अलग-अलग रणनीति के आधार पर टीम चयन की बेहतर विधि अपनानी चाहिए। मगर इससे भी बड़ा विषय प्रत्येक फॉर्मेट के लिए एक विशिष्ट खेल तैयार करना है।
इस विश्व कप से सबसे बड़ा निष्कर्ष यह रहा है कि जिस विश्वास के साथ पूरी भारतीय टीम ने प्रतियोगिता में अपना खेल दिखाया, वह सराहनीय है। यह अलग बात रही कि लगातार 10 मैच जीतने के बाद उसे फाइनल में हार का मुंह देखना पड़ा। यह भारतीय क्रिकेट टीम का एक अनूठा प्रदर्शन था, जिसने लाखों खेल प्रेमियों का दिल जीता और प्रतिद्वंद्वी टीमों का ध्यान भी खींचा।
रोहित शर्मा ने मोर्चा संभाला और प्रत्येक खिलाड़ी ने चुनौती स्वीकार की। पहली बार मैदान पर सराहनीय प्रदर्शन हुआ और ड्रेसिंग रूप में खिलाड़ी खुश दिखे और कोई अंदरूनी कलह नहीं दिखी। रविचंद्रन अश्विन को नहीं खिलाने के विवादास्पद निर्णय का भी टीम के उत्साह पर कोई असर नहीं हुआ। अश्विन को अब एक तेज-तर्रार फिरकी गेंदबाज और अनुभवी क्रिकेट खिलाड़ी माना जाता है।
भारतीय क्रिकेट के समक्ष कई विकल्प मौजूद हैं, मगर काफी कुछ बीसीसीआई और वहां मौजूद शीर्ष अधिकारियों के रुख पर निर्भर करता है। दुनिया भारतीय क्रिकेट को नेतृत्व प्रदान करते हुए देखना चाहती है, न कि अति आक्रामक और विभाजित खेमे के रूप में। हमें सोच-समझकर वे विकल्प चुनने होंगे, जो दीर्घ अवधि में भारतीय क्रिकेट और स्वयं इस खेल हितों के लिए अनुकूल हैं।
(लेखक फाउंडिंग फ्यूल के सह-संस्थापक एवं निदेशक हैं)