पिछले सप्ताह मुझे एक बैंक से एक ई-मेल आई थी। इस ई-मेल में मुझे डिजिटल रुपये (डिजिटल रुपी) की प्रायोगिक पहल में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था। इस ई-मेल में डिजिटल रुपी ऐप पर पंजीयन कराने की विधि और डिजिटल रुपी वॉलेट बनाने से जुड़ी बातों का जिक्र था। मेल के अंत में डिजिटल रुपी के इस्तेमाल की पहल में भाग लेने एवं वॉलेट सक्रिय करने के लिए जरूरी लिंक दिया गया था।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) दिसंबर तक डिजिटल रुपी में रोजाना 10 लाख लेनदेन का लक्ष्य हासिल करना चाहता है। मगर बैंकरों की मानें तो यह लक्ष्य सितंबर के शुरू तक हासिल किया जा सकता है।
खुदरा ग्राहकों के लिए डिजिटल रुपी प्रायोगिक परियोजना की शुरुआत दिसंबर 2022 में हुई थी। उससे एक महीने पहले 1 नवंबर को भारत उन 50 देशों की सूची में शामिल हो गया था, जिन्होंने डिजिटल मुद्रा शुरू करने के सिलसिले में काफी प्रगति कर ली थी। बैंक फॉर इंटरनैशनल सेटलमेंट्स के एक हालिया सर्वेक्षण के अनुसार इस दशक के अंत तक तेजी से उभरती एवं विकसित अर्थव्यवस्थाओं में लगभग दो दर्जन केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा प्रसार में ले आएंगे।
सीबीडीसी पर नजर रखने वाली अटलांटिक काउंसिल का कहना है कि कम से कम 105 देश सीबीडीसी के लिए संभावनाएं तलाश रहे हैं। इन देशों की कुल वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 95 प्रतिशत हिस्सेदारी है। मई 2020 में जब कोविड महामारी आई थी तब केवल 35 देश इस मुहिम में शामिल थे।
आरबीआई ने द्वितीयक बाजार में सरकार बॉन्ड में कारोबार के साथ थोक खंड के लिए पहली सीबीडीसी परियोजना की शुरुआत की थी। पहले दिन नौ बैंकों ने द्वितीयक बाजार में सीबीडीसी के इस्तेमाल के साथ 275 करोड़ रुपये मूल्य की सरकारी प्रतिभूतियों की लिवाली एवं बिकवाली की थी। मगर शुरुआत के बाद से कारोबार लगातार घट रहा है। शुरू में रोजाना सैकड़ों करोड़ रुपये से कम होकर यह अब रोजाना महज 100 करोड़ रुपये ही रह गया है।
मगर इससे प्रभावित हुए बिना आरबीआई सीबीडीसी को अंतर-बैंक कॉल मनी मार्केट तक ले गया है। यह थोक सीबीडीसी प्रायोगिक परियोजना का दूसरा चरण है। कॉल मनी मार्केट में एक बैंक दूसरे बैंक से अपनी तात्कालिक नकदी की जरूरत पूरी करने के लिए एक दिन (बीच में अवकाश होने पर अतिरिक्त समय) के लिए उधार लेता है।
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दुनिया के केंद्रीय बैंक के लिए कागजी मुद्रा से सीबीडीसी की तरफ बढ़ना एक चुनौती है। प्रत्येक केंद्रीय बैंक यह परखने की कोशिश कर रहा है कि इससे बैंकिंग तंत्र पर क्या असर होगा। सीबीडीसी से बैंक जमा (डिपॉजिट) पर असर हो सकता है इसलिए उधार देने की बैंकों की क्षमता पर असर होगा। जाहिर है, इससे ग्राहकों के व्यवहार पर भी असर होगा। सीबीडीसी को लेकर चिंताएं एवं आपत्तियां भी हैं। यही कारण है कि आरबीआई सोच-समझकर धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है।
थोक भुगतान के लिए सीबीडीसी का इस्तेमाल आसान है क्योंकि सभी अंतर-बैंक लेनदेन डिजिटल माध्यम से ही हो रहे हैं और नकदी की कोई जरूरत नहीं है। नकदी की इस्तेमाल तभी रुक पाएगा जब कोई व्यक्ति रोजमर्रा के सामान खरीदने के लिए सीबीडीसी का इस्तेमाल करता है।
क्रेडिट कार्ड, इंटरनेट बैंकिंग और वॉलेट की तरह सीबीडीसी भी भुगतान प्रणाली का हिस्सा होगी। वॉलेट के जरिये वस्तु एवं सेवाओं के लिए यह भी भुगतान करने का एक माध्यम होगा। भारत की वित्तीय प्रणाली में ऐसे कई वॉलेट काम कर रहे हैं। सीबीडीसी भी अब उनमें एक होगी मगर अंतर यह होगा कि इसे देश का केंद्रीय बैंक जारी करेगा और वितरण एवं प्रबंधन वाणिज्यिक बैंकों के जरिये होगा।
खुदरा परियोजना के लिए आरबीआई केंद्रीय स्तर पर नियंत्रित आंकड़ों के आधार पर यह प्रयोग कर रहा है क्योंकि डिस्ट्रीब्यूटेड लेजर या ब्लॉकचेन तकनीक भारत में इतनी बड़ी आबादी के लेनदेन नहीं संभाल पाएंगे।
खुदरा ग्राहकों को सीबीडीसी के इस्तेमाल के लिए खींचना आसान नहीं है क्योंकि यूनिफाइड पेमेंट्स सिस्टम्स (यूपीआई) इस मोर्चे पर पहले से मौजूद है और अब तक इसका प्रदर्शन शानदार रहा है।
राष्ट्रीय भुगतान निगम के अनुसार जुलाई में यूपीआई के माध्यम से 15.34 लाख करोड़ रुपये मूल्य के 9.96 अरब लेनदेन हुए। माना जा रहा है कि अगले पांच वर्षों में खुदरा डिजिटल लेनदेन में यूपीआई से होने वाले लेनदेन की हिस्सेदारी 90 प्रतिशत तक हो जाएगी, जो 2022-23 में 75.6 प्रतिशत थी।
आखिर कोई यूपीआई छोड़कर सीबीडीसी का इस्तेमाल क्यों करेगा? सीबीडीसी किन मामलों में यूपीआई से बेहतर है? सीबीडीसी की एक खामी यह हो सकती है कि यूपीआई का इस्तेमाल करते वक्त रकम का अंतरण एक बैंक से दूसरे बैंक में होता है इसलिए उपयोगकर्ता को रकम पर ब्याज मिलता है।
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बैंक स्वीपिंग सिस्टम शुरू कर यह खामी दूर कर सकते हैं। इस प्रणाली के अंतर्गत एक निश्चित सीमा के बाद रकम दोबारा बैंक में लौट आती है। यूपीआई और सीबीडीसी अंतर-संचालित होंगे और भुगतान के अनुभव के मामले में भी दोनों में कोई खास अंतर नहीं दिखता है। सरल शब्दों में कहें तो सीबीडीसी यूपीआई का एक प्रभावी विकल्प हो सकती है।
यूपीआई की तुलना में सीबीडीसी के साथ दो बड़े लाभ जुड़े हैं। पहली बात तो यह कि लेनदेन करने वाले की पहचान सुरक्षित रखने के मामले में यह कागजी मुद्रा की तरह ही है। साइबरस्पेस में सीबीडीटी लेनदेन का कोई लेखा-जोखा नहीं होगा। कानूनी समर्थन मिलने के बाद डिजिटल लेनदेन की पहचान सुरक्षित रखने की गारंटी दी जा सकती है। एक निश्चित सीमा के बाद निश्चित तौर पर लेनदेन स्थापित कानूनों के दायरे में आएंगे। बैंकिंग माध्यमों से किए जाने वाले लेनदेन के साथ भी यही बात लागू होती है।
एक दूसरा लाभ यह है कि देश से बाहर रकम भेजने में खर्च और समय दोनों कम हो जाएगा। फिलहाल ऐसे लेनदेन में विभिन्न देशों के कई बैंक जुड़े होते हैं और खर्च भी अधिक आते हैं। दो देशों की सीबीडीसी के बीच तकनीकी सामंजस्य स्थापित होने के बाद ऐसे लेनदेन वास्तविक समय पर कम खर्च में हो सकते हैं।