यह बात अब तक साफ हो चुकी है कि शहरी विकास मंत्रालय दिल्ली में गैरकानूनी तरीके से बनी इमारतों और संरचनाओं को न तो ढहने और न ही सील होने देगा।
दरअसल, राजनीति और नौकरशाही से जुड़े वर्ग ने ही ऐसे निर्माणों की बुनियाद तैयार की है। यही वजह है कि मार्च 2006 में ही सरकार ने दिल्ली के मास्टर प्लान 2021 में मिश्रित भूमि के इस्तेमाल (एमएलयू) से संबंधित अध्याय जोड़ दिया।
पर जब इस पहल के बावजूद ‘अवैध इमारत निर्माताओं’ को कोर्ट के गुस्से से नहीं बचाया जा सका, तब सरकार ने तेजेंद्र खन्ना की अगुआई में एक समिति गठित की और इस समिति की सिफारिशों को सितंबर 2006 में अधिसूचित कर दिया। 7 फरवरी 2007 को आखिरकार सरकार ने दिल्ली के विवादित मास्टर प्लान को अधिसूचित कर दिया, जिसके तहत गैरकानूनी पहलुओं को कानूनी जामा पहनाए जाने की कोशिश की गई।
पर मास्टर प्लान अपने आप में काफी व्यापक होता है। इसमें छोटी-छोटी चीजों का जिक्र नहीं होता। मिसाल के तौर पर, इसमें इस बात का जिक्र नहीं होगा कि आपके घर के सामने वाले पार्क में किन तरह की तब्दीलियों का इरादा है। ऐसी जिम्मेदारियां दिल्ली के 17 जोनल डेवलपमेंट प्लानों पर छोड़ी गईं। यही वजह है कि सरकार ने मास्टर प्लान को अधिसूचित करते वक्त कहा कि सभी जोनल प्लानों को 1 वर्ष के भीतर आखिरी रूप दे दिया जाएगा।
इसके बाद जोनल प्लानों पर किसी तरह के ऐतराज और सुझाव के लिए आम लोगों को 1 साल का वक्त दिया जाएगा और इसी अवधि में अधिकारियों द्वारा आम लोगों की आपत्तियों और सुझावों पर जवाब दिए जाएंगे यानी अधिकारी उनके ऐतराजों या सुझावों पर यह सफाई देंगे कि कैसे इन सुझावों को प्लान में शामिल किया गया है या फिर उन्हें तर्कहीन करार देकर खारिज कर देंगे।
उदाहरण के तौर पर, यदि आपके घर के सामने वाले हरित क्षेत्र को मुख्यमंत्री आवास के रूप में तब्दील किए जाने की योजना है और आपको इस पर ऐतराज है तो आपको अपना ऐतराज रखने का मौका दिया जाएगा। पर यदि आपके ऐतराज खारिज कर दिए गए, तो आप इसके खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं। ऐतराज, सुझाव व उनके निपटान की पूरी प्रक्रिया जांच बोर्ड के जरिये होती है।
उदाहरण के तौर पर यह फर्ज करें कि राजधानी के रिहायशी इलाके लाजपत नगर में स्थित जगदीश स्टोर और हल्दीराम के उनकी मौजूदा जगह पर बने रहने का रास्ता मास्टर प्लान 2021 ने तैयार कर दिया है। यह क्षेत्र डी जोन के तहत आता है। इस मामले में आए ऐतराजों और सुझावों की जांच सबसे पहले जांच बोर्ड द्वारा की जाएगी।
फिर जांच बोर्ड द्वारा ऐतराजों की जांच के बाद डी जोन के लिए जोनल प्लान को अधिसूचित किया जाएगा। हल्दीराम और जगदीश स्टोर की जगह के खिलाफ आए ऐतराज यदि जांच बोर्ड द्वारा सही पाए गए, तो इन आउटलेट्स को हटाया जा सकता है। हर जोन के लिए ऐतराज और सुझाव दिए जाने की समयसीमाएं अलग-अलग हैं। मिसाल के तौर पर, ‘डी’ के पड़ोसीं ‘एफ’ जोन के लिए आपत्ति और सुझाव दिए जाने की आखिरी तारीख पिछले हफ्ते खत्म हो गई।
इस पूरे मामले में रोचक पहलू यह है कि सरकार डी जोन के मामले में जांच बोर्ड की प्रक्रिया की अनदेखी कर रही है। दरअसल, अभी तक इस जोन का जोनिंग प्लान आम लोगों के लिए जारी नहीं किया गया है। पर इस मामले में आगे बढ़ा जा रहा है और छोटे प्लॉट्स के लिए लैंड यूज में तब्दीली को नोटिफाई किया जा रहा है। इसके पीछे शायद तर्क यह है कि जांच बोर्ड का इंतजार क्यों किया जाए, क्योंकि जांच बोर्ड द्वारा आपत्ति दर्ज कराए जाने का अंदेशा है।
इन मामलों की थोड़ी तफसील लेते हैं। डी जोन में आने वाले दीनदयाल उपाध्याय मार्ग पर स्थित 0.8 हेक्टेयर के प्लॉट का लैंड यूज पिछले साल 12 नवंबर को बदल दिया गया था। पहले इस जमीन पर सरकारी दफ्तर बनाए जाने की स्वीकृति थी, जिसे ‘पब्लिक और सेमी-पब्लिक सुविधाएं’ में तब्दील कर दिया गया। माना जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी यहां अपना दफ्तर बना सकती है। इसी तरह, लोकसभा आरके पुरम में हाउसिंग क्वॉर्टर बनाना चाहती है।
लिहाजा इसके लिए एफ जोन में आने वाले इस क्षेत्र की 2.2 हेक्टेयर जमीन का लैंड यूज 7 फरवरी को बदल दिया गया। पहले इस जमीन में मनोरंजन पार्क बनाया जाना था, जिसे रिहायशी जमीन में तब्दील कर दिया गया। दिल्ली हाई कोर्ट के विस्तार के लिए डी जोन के बप्पा नगर में एक रिहायशी जमीन का लैंड यूज बदलकर उसे सरकारी ऑफिस या कोर्ट की जमीन कर दिया गया।
पिछले साल 12 अक्टूबर को यमुना के किनारे की 1.7 एकड़ जमीन का लैंड यूज ‘खेती और वॉटर बॉडी’ से बदलकर ‘पब्लिक और सेमी-पब्लिक सुविधाएं’ कर दिया गया। गजट नोटिफिकेशन कहता है कि इनमें से हर मामले में आम लोगों के ऐतराज और सुझाव मांगे गए। पर किसी भी सुझावकर्ता को अब तक यह पता नहीं चल पाया है कि उनके सुझावों पर जांच समिति कब बनी और सुझावों का आखिरकार क्या हश्र हुआ।
अप्पू घर के ही मामले को ही लें। यहां का मनोरंजन पार्क इसलिए बंद कर दिया गया कि यहां सुप्रीम को अपना ऑफिस बनाना था। इस मामले में जांच बोर्ड का गठन भी किया गया और लोगों से ऐतराज भी मांगे गए। पर जिन 100 लोगों को पहले दिन ऐतराज दर्ज कराने के लिए बुलाया गया, उन्हें अपनी बात रखने के लिए महज 1-1 मिनट का मौका दिया गया।
यह सब इसलिए हो रहा है कि सरकार यह नहीं चाहती कि लोग यह चाहें कि वह क्या कर रही है। इस सभी मामलों से जुड़े नोटिस इंटरनेट पर तभी डाले गए, जब इस बारे में सूचना अधिकार कानून (आरटीआई) के तहत याचिका दाखिल की गई और राष्ट्रीय सूचना आयोग ने याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला दिया।
लिहाजा किसी पॉश कॉलोनी या इलाके में प्लॉट खरीदने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करने से पहले यह जरूर देख लें कि उस जमीन की पहचान किस रूप में है। क्या हाल में उसका लैंड यूज तो नहीं बदल दिया गया है?