facebookmetapixel
AI की एंट्री से IT इंडस्ट्री में बड़ा बदलाव, मेगा आउटसोर्सिंग सौदों की जगह छोटे स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट‘2025 भारत के लिए गौरवपूर्ण उपलब्धियों का वर्ष रहा’, मन की बात में बोले प्रधानमंत्री मोदीकोल इंडिया की सभी सब्सिडियरी कंपनियां 2030 तक होंगी लिस्टेड, प्रधानमंत्री कार्यालय ने दिया निर्देशभारत में डायग्नॉस्टिक्स इंडस्ट्री के विस्तार में जबरदस्त तेजी, नई लैब और सेंटरों में हो रहा बड़ा निवेशजवाहर लाल नेहरू पोर्ट अपनी अधिकतम सीमा पर पहुंचेगा, क्षमता बढ़कर 1.2 करोड़ TEU होगीFDI लक्ष्य चूकने पर भारत बनाएगा निगरानी समिति, न्यूजीलैंड को मिल सकती है राहतपारेषण परिसंपत्तियों से फंड जुटाने को लेकर राज्यों की चिंता दूर करने में जुटी केंद्र सरकार2025 में AI में हुआ भारी निवेश, लेकिन अब तक ठोस मुनाफा नहीं; उत्साह और असर के बीच बड़ा अंतरवाहन उद्योग साल 2025 को रिकॉर्ड बिक्री के साथ करेगा विदा, कुल बिक्री 2.8 करोड़ के पारमुंबई एयरपोर्ट पर 10 महीने तक कार्गो उड़ान बंद करने का प्रस्वाव, निर्यात में आ सकता है बड़ा संकट

मूल मुद्दे से मुंह मोड़ना

Last Updated- December 05, 2022 | 4:46 PM IST

बाल विकास केंद्रों (आंगनबाड़ियों) पर और प्राथमिक विद्यालयों में चल रहे मिड-डे मील कार्यक्रम के तहत बच्चों को साइट पर ही भोजन तैयार करके दिया जाए या फिर वहां पहले से तैयार भोजन के पैकेट बांटे जाएं, इस मसले पर विवाद छिड़ा हुआ है।


 जिस वजह से यह बहस छिड़ी है, वह सिर्फ परिचालन कार्यकुशलता की घोर कमी की ओर इशारा करता है और इस मामले में महिला एवं बाल विकास मंत्री को ध्यान देने की जरूरत है।सचाई यह है कि दोनों तरह की दलीलों में दम है।


 नोबल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर कहा है कि रेणुका चौधरी के मंत्रालय द्वारा बच्चों के बीच बिस्कुट और दूसरे तरह के पैकेज्ड फूड बांटे जाने पर रोक लगाई जानी चाहिए, क्योंकि इस तरह के भोजन से बच्चों की सेहत खतरे में पड़ सकती है।


 सेन का कहना है कि महज वाणिज्यिक दबावों की वजह से भोजन वितरण व्यवस्था में किसी तरह की तब्दीली करना अच्छा नहीं है। सरकार से जुड़ा एक तबका और गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) की एक बड़ी जमात इस तर्क से सहमत है। इनकी ओर से समवेत स्वर यही आ रहे हैं कि सरकार बड़ी और ताकतवर पैकेज्ड फूड कंपनियों की गोद में खेल रही है।


 इनकी ओर से एक तर्क यह भी आ रहा है कि लोक सेवाओं की प्राइवेट डिलिवरी हमेशा अच्छी नहीं हो पाती, जैसा कि कुकुरमुत्ते की तरह उग आए ‘कॉरपोरेट’ अस्पतालों के मामले में हुआ है। इसके अलावा यह दावा भी नहीं किया जा सकता कि पैकेज्ड फूड  ताजा बनाए गए भोजन से ज्यादा सेहतमंद और पौष्टिक होता है।


 बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा तैयार किए गए उत्पाद (पानी के बोतल और खाने) में भी गड़बड़ियों की कई मिसालें देखने को मिल चुकी हैं। ये सारी बातें रेणुका चौधरी के इस दावे को खारिज करने के लिए काफी हैं कि पहले से पका हुआ खाना जरूरतमंद बच्चों के लिए सेहमतमंद विकल्प है।इसी तरह यह बात भी सच है कि साइट पर बनने वाले खाने में भी सुधार की जरूरत है।


 मिड डे मील लेने के बाद बच्चों के बीमार पड़ने की खबरें भी अक्सर आती रहती हैं। जिस वातावरण में बच्चों के लिए खाना तैयार किया जाता है, इसमें भी सुधार की जरूरत है। साथ ही इसके लिए जरूरी अनाजों और दालों के रखरखाव का स्तर भी सही नहीं होता है।


कुल मिलाकर कहा जाए तो इस समस्या का हल पैकेज्ड फूड या साइट पर तैयार किए जाने वाले खाने के चयन से नहीं निकलेगा। गरीब बच्चों के लिए मिड डे मील एक अहम चीज है। अगर इस स्कीम को तरीके से लागू किया जाता है, तो यह गरीब बच्चों की सेहत सुधारने में काफी महत्पवूर्ण भूमिका निभा सकती है।

First Published - March 19, 2008 | 11:23 PM IST

संबंधित पोस्ट