रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के नेतृत्व में रक्षा मंत्रालय ने प्रेस घोषणाओं के क्षेत्र में काफी प्रगति की है। रक्षा मंत्री द्वारा वेब पोर्टल्स के उद्घाटन और उनके कार्यालय में भारतीय जनता पार्टी के चुनिंदा पदाधिकारियों की यात्राओं को लेकर नियमित रूप से बुलेटिन जारी होते हैं। इन विज्ञप्तियों में ‘आत्मनिर्भर भारत’ अक्सर नजर आता है। यह जुमला सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 मई, 2020 को इस्तेमाल किया था जब देशव्यापी लॉकडाउन के साथ ही हम लद्दाख में चीनी सैनिकों की घुसपैठ और कोविड-19 महामारी के कारण लाखों लोगों की घर वापसी से जूझ रहे थे।
रक्षा मंत्रालय ने जब 108 रक्षा उपकरणों की दूसरी ‘सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची’ जारी की तो इसमें ‘आत्मनिर्भर भारत’ प्रमुखता से नजर आया। 101 वस्तुओं की पहली सूची गत अगस्त में जारी की गई थी। यानी अब 209 ऐसी वस्तुएं हैं जिन्हें अनिवार्य तौर पर भारतीय कंपनियों से खरीदना होगा। सन 2025 तक यह तादाद हर वर्ष बढऩी है।
सरसरी तौर पर यह स्वदेशीकरण की सराहनीय पहल लगती है। सिंह ने गत वर्ष पहली सूची जारी होते समय कहा था, ‘हमारा लक्ष्य है देश के रक्षा उद्योग को सशस्त्र बलों की अनुमानित जरूरतों के बारे में बताना, ताकि वे स्वदेशीकरण के लक्ष्य को लेकर बेहतर तैयार रहें।’ सिंह ने इसे रक्षा उद्योग के लिए बहुत बड़ा अवसर बताया जहां वह अपने शोध, डिजाइन और विकास क्षमताओं का इस्तेमाल कर सकता है या भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) से तकनीक हासिल कर सैन्य उत्पाद बना सकता है। यकीनन सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची घरेलू रक्षा उद्योग को आश्वस्ति देती है। यह उद्योग रक्षा उत्पाद विकसित करने की कोशिश में काफी पैसा खर्च कर चुका है लेकिन रक्षा मंत्रालय वैश्विक बाजार से आयात को प्राथमिकता देता है।
बहरहाल, इसे लेकर कई सवाल हैं। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार रक्षा कंपनियों के पास यह क्षमता है कि वे उल्लिखित सूचियों में से कम से कम दो तिहाई बना सकें। एक मुख्य कार्याधिकारी कहते हैं कि दोनों सूचियों को मिला दिया जाए तो लगभग वही वस्तुएं हैं जिनका उत्पादन शुरू होने वाला है।
आयात पर इस रोक के असर के आकलन के लिए पहले उन 69 वस्तुओं पर नजर डालते हैं जिनके आयात पर एक जनवरी 2021 को रोक लगाई गई थी। इसके चलते सेना ट्रैक्ड, सेल्फ प्रोपेल्ड और पहिये वाली तोपें, पिनाका श्रेणी के मल्टी बैरल्ड रॉकेट लॉन्चर, स्नाइपर राइफल्स और बुलेटप्रूफ जैकेट और हेल्मेट के लिए भारतीय आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भर हो गई। नौसेना को कई श्रेणियों में स्वदेशी युद्धपोतों की आवश्यकता है मसलन मिसाइल डेस्ट्रॉयर, अगली पीढ़ी के मिसाइल क्षमता संपन्न पोत, पनडुब्बी रोधी पोत, तटीय गश्ती पोत और सोनार सिस्टम तथा हथियार। वायु सेना को भारत में विकसित स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान और हेलीकॉप्टरों, हल्के परिवहन विमान और उपकरणों को हवा से गिराने के लिए पैराशूट आपूर्ति तंत्र की आवश्यकता होगी।
लार्सन ऐंड टुब्रो ने 100 सेल्फ प्रोपेल्ड तोपें सेना को सौंप दी हैं और पुणे के निकट उसकी निर्माण क्षमता भविष्य के आदेशों की प्रतीक्षा में खाली पड़ी है। पहिये वाली तोप के मामले में आयुध निर्माणी बोर्ड को अपनी स्वदेशी 155 मिलीमीटर धनुष हॉवित्जर पर पूरा भरोसा है जबकि डीआरडीओ अपनी एडवांस्ड टोड आर्टिलरी गन सिस्टम का परीक्षण कर रहा है। पिनाका रॉकेट लॉन्चर बन रहा है और सेना से अगले आदेशों की प्रतीक्षा है। कुल 41 नौसैनिक युद्धपोत और पनडुब्बियां निर्माणाधीन हैं उनमें से 39 भारत में निर्माणाधीन हैं। 103 तेजस विमानों का ऑर्डर हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड को दिया जा चुका है और उसे स्वदेशी हल्के लड़ाकू और उपयोगिता वाले हेलीकॉप्टरों तथा एचटीटी-40 प्रशिक्षण विमानों के लिए और आदेश मिलने का अनुमान है।
इस वर्ष के अंत में प्रतिबंध सूची में आने वाले उपकरण भी ऐसे ही हैं। स्वदेशी की परिभाषा आसान बनाने के लिए ही रक्षा मंत्रालय की नीति के अनुसार तकनीक हस्तांतरण और 50 फीसदी स्वदेशी सामग्री वाले प्लेटफॉर्म को आत्मनिर्भर उत्पाद माना जा रहा है। फ्रांस के नेवल ग्रुप से तकनीक हस्तांतरण के तहत पहले ही मझगांव डॉक लिमिटेड स्कॉर्पीन पनडुब्बियां बना रहा है। फ्रांसीसी पोत निर्माता और अधिक स्कॉर्पीन बनाने की इच्छुक है जबकि छह अन्य पारंपरिक पनडुब्बियों को लेकर निविदा प्रक्रिया चल रही है जिन्हें भारत में बनाया जाएगा।
हल्के हेलीकॉप्टरों के स्वदेशी निर्माण में भी कठिनाई नहीं है। अगली पीढ़ी के लड़ाकू जलपोत (गार्डन रीच शिपबिल्डर्स), हथियारबंद वाहन, टैंकरोधी गाइडेड मिसाइल और मध्यम रेंज की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल (डीआरडीओ), युद्धपोत बनाने लायक स्टील (भारतीय इस्पात प्राधिकरण) तथा अन्य सूचीबद्ध सामग्री भी बन रही है। भविष्य की प्रणालियों की बात करें तो दिसंबर 2025 तक लंबी दूरी की क्रूज मिसाइल, ऐंटी मटीरियल राइफल्स और 1,000 अश्व शक्ति के टैंक इंजन को भी आत्मनिर्भरता के दायरे में लाना है। डीआरडीओ (निर्भय क्रूज मिसाइल) और किर्लोस्कर समूह (टैंक इंजन) इन परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं।
यदि रक्षा मंत्रालय आत्मनिर्भर भारत को लेकर गंभीर है तो उसे लक्ष्य तय करने के पहले गहराई से सभी पहलुओं पर सोचना चाहिए। उत्पादन लक्ष्य प्राप्त करने के लिए विदेशी कंपनियों के साथ समझौतों के बजाय स्वदेशीकरण की हर योजना के लिए उचित समयसीमा, उच्च गुणवत्ता वाले परियोजना प्रबंधक और पर्याप्त शोध एवं विकास बजट होना चाहिए। सबसे कम बोली वाली निविदा को लेकर आग्रह अनुचित है क्योंकि कई बार कंपनियां कम बोली तो लगाती हैं लेकिन काम पूरा नहीं कर पातीं। रक्षा मंत्रालय को ऐसी प्रणाली बनानी चाहिए जहां केवल कम बोली ही आधार न हो। कीमत के साथ बेहतर तकनीकी योजना और परियोजना प्रबंधन को भी महत्ता दी जानी चाहिए।