कई आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि महामारी का असर अब भी महसूस किया जा रहा है और इस महामारी के कारण मरने वाले लोगों की संख्या जितनी बताई गई थी, उससे कहीं ज्यादा थी। वित्त वर्ष 2024-25 में भारतीय रेलवे ने 7.15 अरब यात्रियों को सेवाएं दीं (कुल रेल यात्रियों में उपनगरीय क्षेत्रों के यात्रियों की संख्या करीब 55 फीसदी है)। यह संख्या वित्त वर्ष 2023-24 के 6.9 अरब यात्रियों की तुलना में 5 फीसदी अधिक रही मगर उन 8 अरब यात्रियों से बहुत कम थी, जिन्होंने वित्त वर्ष 2015 से 2020 तक हर साल रेल से यात्रा की थी। वित्त वर्ष 2019 में सबसे अधिक 8.44 अरब लोगों ने रेल यात्रा की, जो आंकड़ा वित्त वर्ष 2021 में गिरकर केवल 1.25 अरब रह गया। आंकड़ा अब भी महामारी से पहले के स्तर पर नहीं पहुंच पाया है।
महामारी के दौर में मृत्यु दर के जो आंकड़े हाल में जारी किए गए, उनसे संकेत मिलता है कि कोविड-19 से होने वाली मौतों का आधिकारिक आंकड़ा बहुत कम बताया गया था। यदि आप किसी आबादी के आकार, आयु वर्ग, जन्म और मृत्यु दर से वाकिफ हैं तो मोटा अनुमान लगा सकते हैं कि अगले 12 महीनों में कितने लोगों की मौत हो सकती है। यदि वास्तविक मौतों की संख्या उस अनुमान से बहुत ज्यादा है तब इसका कोई कारण जरूर होगा।
नागरिक पंजीयन के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2018 और 2019 में कुल 1.45 करोड़ लोगों की मौत हुई थीं। लेकिन महामारी के वर्षों 2020 और 2021 में मरने वालों की संख्या 1.83 करोड़ पहुंच गई यानी कोविड से पहले के दो वर्षों 2018 और 2019 की तुलना में भारत में वर्ष 2020 और 2021 में लगभग 37.4 लाख ज्यादा मौतें दर्ज की गईं।
आंकड़ा बढ़ने की वजह कोविड को मानना वाजिब है। लेकिन कोविड से मरने वालों की आधिकारिक संख्या 5.33 लाख थी, जो मृत्यु में हुए इजाफे का सातवां हिस्सा ही है। आंकड़े कम बताने के भी नतीजे होते हैं। यदि स्वास्थ्य नीति और संसाधन आवंटन 5.33 लाख मौतें देखकर किया गया है तो जाहिर तौर पर आवंटन कम ही होगा। नए जारी किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की हालत बहुत बुरी रही। कम संख्या दिखाकर कम संसाधन आवंटित करने का मतलब है कि अगले स्वास्थ्य संकट के समय इसकी हालत और भी खराब हो सकती है।
वर्ष 2021 के देर से जारी आंकड़े (7 मई) के अपने नतीजे दिखे हैं। बीमा कंपनियों को यह नहीं पता है कि कितने लोग मरे और किन कारणों से मरे है। ऐसे में जीवन और स्वास्थ्य सेवा के बीमा आंकड़े काफी हद तक गलत साबित हो सकते हैं।
बीमा कंपनियां जो रकम प्रीमियम के तौर पर इकट्ठी करती हैं मगर दावों में चुकाती नहीं हैं, उसे इंश्योरेंस फ्लोट कहा जाता है। इस रकम को ही निवेश किया जाता है। बीमा कंपनियां अनुमान लगाती हैं कि कितने दावे आएंगे और उसके लिए इंतजाम कर बाकी रकम यानी फ्लोट निवेश कर देती हैं। आंकड़ा कम गिनने से प्रीमियम कम रहते हैं मगर दावे अचानक बढ़ जाएं तो कंपनियों पर वित्तीय बोझ बढ़ सकता है। महामारी के बाद लोगों ने बीमा लेना तेज किया है मगर भारत में बीमा की पैठ काफी कम है। अगली बार महामारी आई और बीमा कंपनियों पर बोझ पड़ा तो वित्तीय संकट भी खड़ा हो सकता है।
यात्रियों के आंकड़ों पर फिर विचार करते हैं। विमान सेवाएं बेहतर होने से कुछ लोग हवाई यात्राओं को तरजीह दे सकते हैं। देश के भीतर हवाई यातायात तेजी से बढ़ा है क्योंकि ‘उड़ान’ जैसी योजनाओं ने छोटे शहरों को भी वायु मार्ग से जोड़ दिया है। उधर भारतीय रेल ने प्रथम श्रेणी और वातानुकूलित श्रेणी के किराये बढ़ा दिए हैं। वित्त वर्ष 2024 में लगभग 16 करोड़ भारतीयों ने देसी उड़ान की सेवाएं ली और वित्त वर्ष 2025 में लगभग 16.6 करोड़ लोगों ने ऐसा किया। लेकिन भारतीय रेल और हवाई यातायात के बीच की खाई बहुत बड़ी है। अधिकतर यात्री या तो हवाई यात्रा का खर्च नहीं उठा सकते हैं या उन्हें इसकी आवश्यकता नहीं है। यात्रियों की यह गिनती बताती है इस साल 13 जनवरी से 26 फरवरी तक आयोजित महाकुंभ में आने वालों की संख्या शायद ज्यादा गिन ली गई। प्रयागराज महाकुंभ में तीर्थयात्रियों के लिए व्यापक व्यवस्था की गई थी। बंदोबस्त पर लगभग 6,400 करोड़ रुपये खर्च किए गए और उत्तर प्रदेश सरकार का अनुमान है कि इस आयोजन के कारण लगभग 2 लाख करोड़ रुपये की आर्थिक गतिविधियों के मौके तैयार हुए। निश्चित रूप से यह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में बेहतर तेजी लाने वाला कारक रहा और इससे निवेश पर शानदार रिटर्न मिलना चाहिए। अनुमान लगाया गया था कि 40 करोड़ से ज्यादा तीर्थयात्रियों ने संगम में डुबकी लगाने के लिए यात्रा की।
मगर क्या वाकई ऐसा हुआ? अगर हम मान लें कि बड़ी तादाद में तीर्थयात्रियों ने ट्रेन से यात्रा की या हवाई यात्रा की तो उन 45 दिन में रेलवे और नागरिक विमानन के आंकड़ों में बाढ़ क्या सुनामी आ जानी चाहिए थी। मगर आंकड़े दर्शाते हैं कि मेले में वास्तव में लोग कम गए और यात्रियों की आवाजाही में बड़ी उछाल नहीं देखी गई।
इसका अर्थ यह भी है कि राजस्व संग्रह बहुत कम हो सकता है। लेकिन हमें इसका अंदाजा तब होगा जब सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़े और उत्तर प्रदेश सरकार के जीडीपी आंकड़े जारी किए जाएंगे। ऐसा भी संभव है कि उन तीर्थयात्रियों के नाम पर बिल काट दिए गए हों, जो मेले में आए ही नहीं थे। इससे लागत बढ़ाकर दिखा दी गई और इंतजाम में सार्वजनिक धन की बरबादी की गई। तीर्थयात्रियों की अधिक गिनती के भी परिणाम होते हैं भले ही वे महामारी के पीड़ितों की कम गिनती के परिणाम जितने गंभीर साबित न हों।