देश का सबसे बड़ा कर्जदाता भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) 1 जुलाई को अपना 70वां स्थापना दिवस मना रहा है। एसबीआई को इस अवसर पर बहुत शुभकामनाएं! भारतीय अर्थव्यवस्था का एक मजबूत स्तंभ और परिसंपत्ति के आधार पर दुनिया के शीर्ष 50 बैंकों में शामिल एकमात्र भारतीय बैंक एसबीआई देश के हर तीन व्यक्तियों में एक के लिए बैंकिंग गतिविधियों का ठिकाना है।
वित्त वर्ष 2024-25 में एसबीआई का शुद्ध मुनाफा 77,561 करोड़ रुपये रहा है। सालाना आय के लिहाज से भी यह शीर्ष 100 वैश्विक कंपनियों में शुमार रहा है। इस सूची में ओएनजीसी और रिलायंस इंडस्ट्रीज के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज कराने वाली यह तीसरी भारतीय इकाई है। आइए, 1955 से 2025 तक की एसबीआई की यात्रा पर नजर डालते हैं।
एसबीआई को पहले इम्पीरियल बैंक ऑफ इंडिया के नाम से जाना जाता था। 30 जून, 1955 को
(इम्पीरियल बैंक का आखिरी दिन) इसके पास 210.94 करोड़ रुपये जमा (डिपॉजिट) और 116.24 करोड़ रुपये ऋण का बहीखाता था। उस समय भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 10,977 करोड़ रुपये था। मार्च 2025 तक भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 3,000 गुना बढ़कर 330.68 लाख करोड़ रुपये पहुंच चुका है। इस अवधि के दौरान एसबीआई की जमा रकम 25,000 गुना बढ़कर 53.82 लाख करोड़ रुपये पहुंच चुकी है। बैंक की ऋण बही का आकार भी 35,800 गुना बढ़ कर 41.63 लाख करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गया है।
पिछले 70 वर्षों के दौरान बैंक की आय 8.50 करोड़ रुपये से बढ़ कर 5.24 लाख करोड़ रुपये पहुंच गई है। मुनाफा भी 1.36 करोड़ रुपये से बढ़कर 70,901 करोड़ रुपये हो चुका है। एसबीआई ने 1955 में 90 लाख रुपये लाभांश दिया था, जो वित्त वर्ष 2025 में बढ़कर 14,190 करोड़ रुपये हो चुका है। इस दौरान कर्मचारियों की संख्या भी 14,388 से बढ़कर 2,36,226 हो गई है। बैंक का प्रति कर्मचारी मुनाफा 90,000 रुपये से बढ़कर 29,91,000 रुपये हो गया है और इसकी शाखाओं की संख्या 496 से बढ़कर 22,397 हो गई है।
श्रीनगर की डल झील में तैरते एटीएम से लेकर केरल के एर्णाकुलम और वाइपिन में जेटी तक एसबीआई के एटीएम तैनात हैं। विदेश में इसके कार्यालयों की संख्या 8 से बढ़कर 244 तक पहुंच गई है। सबसे बड़ी म्युचुअल फंड कंपनी भी एसबीआई के नाम है और क्रेडिट कार्ड कारोबार में यह दूसरे स्थान पर है। इसकी जीवन बीमा इकाई निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी बीमा कंपनियों में एक है। एसबीआई की 18 सहायक इकाइयों में से दो सूचीबद्ध हैं। करीब 6,200 करोड़ रुपये निवेश वाली इसकी सहायक इकाइयों का मौजूदा मूल्यांकन 3.5 लाख करोड़ रुपये है।
देश में कुल बैंक जमा में एसबीआई की हिस्सेदारी 22.5 फीसदी है और ऋण आवंटन में यह 19.5फीसदी है। खुदरा ऋण, आवास ऋण आदि कारोबारी खंडों में एसबीआई की बाजार हिस्सेदारी 20 से 30फीसदी के बीच है। विश्व की सबसे बड़ी वित्तीय समावेशन योजना प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई) में एसबीआई की हिस्सेदारी लगभग 30 फीसदी है।
एसबीआई को भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधि कहना अतिशयोक्ति नहीं है क्योंकि यह अपनी भूमिका पूरी मजबूती और मुस्तैदी से निभा रहा है। वर्ष 1992 में भुगतान संकट के दौरान एसबीआई ने इंडिया
डेवलपमेंट बॉन्ड के माध्यम से 1.6 अरब डॉलर जुटाए थे। एसबीआई ने 1998 में फिर इसे दोहराया। पोखरण में परमाणु परीक्षण के बाद भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए गए थे तब एसबीआई ने रिसर्जेंट इंडिया बॉन्ड के जरिये 4.3 अरब डॉलर जुटाए थे।
एसबीआई के नाम कई ऐसी उपलब्धियां दर्ज हैं। उदाहरण के लिए 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान एसबीआई ने रक्षा क्षेत्र के लघु एवं मझोले उद्यमों के लिए कई विशेष ऋण योजनाएं शुरू कीं। देश में मर्चेंट बैंकिंग डिवीजन शुरू (1973 में) करने वाला एसबीआई पहला बैंक है। म्युचुअल फंड क्षेत्र के उदारीकरण के बाद इसने म्युचुअल फंड कंपनी की भी स्थापना की। यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया (यूटीआई) के बाद यह पहली म्युचुअल फंड कंपनी थी।
एसबीआई की 70 वर्ष की यात्रा की सबसे खास बात यह रही है कि यह समय के साथ अपने कारोबारी तौर-तरीके बदलता रहा है। इसका डिजिटल प्लेटफॉर्म ‘योनो’ इस बात की मिसाल है। साल 2017 में शुरू हुआ ‘योनो’ एसबीआई के ग्राहकों के लिए डिजिटल मार्केटप्लेस है। बैंक के 90 फीसदी से अधिक लेनदेन न केवल ‘योनो’ से हो रहे हैं बल्कि नए कारोबारों में भी इसकी बड़ी हिस्सेदारी है और इससे दूसरी इकाइयों के उत्पाद एवं फीस आधारित योजनाएं भी बेची जा रही हैं।
वित्त वर्ष 2018 से 2024 के बीच एसबीआई ने अपना बहीखाता दोगुना कर लिया। यह कारनामा करना निजी क्षेत्र के बैंकों के लिए भी मुश्किल है। कुछ कारोबारी खंडों में देर से उतरने के बावजूद यह अच्छी बाजार हिस्सेदारी हासिल करने में कामयाब रहा है। देश में खुदरा ऋण कारोबार में 15.06 लाख करोड़ रुपये के बहीखाते के साथ एसबीआई की 25 फीसदी हिस्सेदारी है। आवास ऋण खंड के साथ भी यही बात लागू होती है। यह 8.3 लाख करोड़ रुपये की आवास ऋण के साथ एचडीएफसी बैंक को टक्कर दे रहा है।
किसी बैंक के सुदृढ़ संचालन में इसके कर्मचारियों की भूमिका सबसे अहम होती है। एसबीआई इस मोर्चे पर भी बाजी मार लेता है। 1994 में बैंकिंग कारोबार निजी क्षेत्रों के लिए खुलने के बाद कई निजी बैंक अस्तित्व में आए। उनमें ज्यादातर की कमान उस समय एसबीआई से गए लोगों ने संभाली थी। इस समय कम से कम पांच निजी बैंकों के संचालन की कमान एसबीआई के पूर्व बैंकरों के हाथों में है।
हां, कुछ खंड ऐसे भी हैं जहां पर एसबीआई को कमर कसने की जरूरत है। चालू खाते की संख्या बढ़ाना ऐसा ही एक क्षेत्र है। सरकारी रकम की आमद तेजी से कम होने के बाद एसबीआई को पूंजी पर लागत कम करने के लिए कंपनियों से शू्न्य लागत वाले चालू खाते हासिल करने की जरूरत है। एसबीआई को लागत-आय का अनुपात भी सुधारना होगा जो इस समय बड़े निजी बैंकों से अधिक है।
एसबीआई देश में समाज में ऊपर से नीचे सभी तबके की जरूरत का ख्याल रख रहा है। एसबीआई ने प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना के अंतर्गत 21 राज्यों में कम से कम 2,200 मोचियों को 20 करोड़ रुपये से अधिक ऋण दिए हैं। यह ग्रामीण क्षेत्र में हज्जामों को भी लघु ऋण उपलब्ध करा रहा है।
एसबीआई को पिछले दशक में कई बड़े ऋणों पर नुकसान झेलना पड़ा है मगर अब इसकी गैर-निष्पादित आस्तियां (एनपीए) कम होकर ऋण बहीखाते का मात्र 0.47 फीसदी रह गई हैं। उम्मीद करता हूं कि इस मोर्चे पर आगे भी इसकी सेहत मजबूत बनी रहेगी। एसबीआई की स्थापना दिवस पर यही मेरी शुभकामनाएं हैं।
(लेखक जन स्मॉल फाइनैंस बैंक के वरिष्ठ सलाहकार हैं)