facebookmetapixel
Sugar production: चीनी उत्पादन में तेजी, लेकिन मिलों के सामने वित्तीय संकट बरकरारDouble Bottom Alert: डबल बॉटम के बाद ये 6 शेयर कर सकते हैं पलटवार, चेक करें चार्टनवंबर में थोक महंगाई बढ़कर -0.32%, मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स की महंगाई घटकर 1.33% पर आईटैक्सपेयर्स ध्यान दें! एडवांस टैक्स जमा करने का आज आखिरी मौका, देर की तो लगेगा भारी जुर्मानाNephrocare Health IPO अलॉटमेंट फाइनल, सब्सक्रिप्शन कैसा रहा; ऐसे करें चेक स्टेटसकेंद्र ने MGNREGA का नाम बदलकर VB-RaM G करने का प्रस्ताव पेश किया, साथ ही बदल सकता है फंडिंग पैटर्नडॉलर के मुकाबले रुपया 90.58 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर, US ट्रेड डील की अनि​श्चितता और FIIs बिकवाली ने बढ़ाया दबावGold-Silver Price Today: सोना महंगा, चांदी भी चमकी; खरीदारी से पहले जान लें आज के दामWakefit Innovations IPO की बाजार में फिकी एंट्री, ₹195 पर सपाट लिस्ट हुए शेयरकम सैलरी पर भी तैयार, फिर भी नौकरी नहीं, रेडिट पर दर्द भरी पोस्ट वायरल

केरल के मंत्रिमंडल में शैलजा को शामिल नहीं करने पर उठते सवाल

Last Updated- December 12, 2022 | 4:36 AM IST

केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन और उनकी मंत्रिपरिषद ने गुरुवार को शपथ ली। सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि राज्य की पूर्व स्वास्थ्य मंत्री केके शैलजा शपथ लेने वाले मंत्रियों में शामिल नहीं थीं। नई मंत्रिपरिषद में शैलजा को शामिल नहीं किए जाने पर चर्चा और विरोध का मुख्य मुद्दा यह है कि कौन बड़ा है -पार्टी, सरकार या कोई व्यक्ति?
शैलजा के प्रबल एवं उग्र समर्थकों का तर्क है कि केरल की राजनीति में इस चलन को तोड़ते हुए 64 वर्षीय पूर्व स्वास्थ्य मंत्री को वाम लोकतांत्रिक मोर्चे (एलडीएफ) को लगातार दूसरी बार सत्ता में वापस लाने का श्रेय अवश्य दिया जाना चाहिए था।
शैलजा की लोकप्रियता के संबंध में कोई शक नहीं है। शिक्षिका के रूप में उनकी भूमिका का इतना सम्मान किया जाता है कि इसे उनके नाम के साथ जोड़ा जाता है : अध्यापिका केके शैलजा। जब वह किशोरी थीं, तब वह माक्र्सवादी पार्टी (केरल में माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी यानी सीपीआई एम को इसी नाम से जाना जाता है) में शामिल हो गई थीं। पार्टी दो दशक पहले उन्हें स्थानीय विधानसभा में ले आई, लेकिन बच्चों को भौतिकी और रसायन शास्त्र पढ़ाने और राजनीतिक कार्य करने का दबाव ज्यादा बढ़ रहा था। इसलिए उन्हें फैसला करना था। उन्होंने एक संवाददाता से कहा था, ‘मैं स्कूल में होती थी और हर रोज शाम 4 बजे के बाद मैं राजनीतिक बैठकों में जाया करती थी। मैं दोनों काम नहीं कर सकती थी और किसी एक पेशे के प्रति ही ईमानदार रह सकती थी। इसलिए मैं राजनीति में आ गई।’
उन्होंने कहा, ‘यह समाज की सेवा करने से जुड़ा मामला है। विज्ञान में मैं अपने छात्रों को उनकी पाठ्यपुस्तकों से परे देखने और समाज में विज्ञान की भूमिका को समझने के लिए प्रोत्साहित किया करती थी। मुझे राजनीति इसलिए पसंद है, क्योंकि यह मुझे स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक न्याय तथा महिलाओं के विकास के मामले में लोगों से इसी तरह के संवाद का अवसर प्रदान करती है।’
शैलजा एक राजनीतिक परिवार से संबंध रखती हैं। उन पर जिसका सबसे ज्यादा प्रभाव है, वह हैं उनकी नानी एम के कल्याणी, जो गांव में व्यापक प्रभाव रखने वाली एक सख्त महिला थीं। शैलजा अपनी नानी को बड़े प्रेमभाव के साथ याद करती हैं। एक साक्षात्कार के दौरान उन्होंने कहा था कि मैं उनके आदेश का सम्मान किया करती थी। गांव के शराबी भी उनसे डरा करते थे, वह उन पर पानी डाल दिया करती थीं।
अध्यापिका शैलजा के पति के भास्करन खुद भी अध्यापक, कम्युनिस्ट साथी और शैलजा के लिए ‘माशू’ हैं। केरल में पुरुष शिक्षक के लिए माशू शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। भास्करन शैलजा की नानी के बारे में बताते हैं, ‘वह (कल्याणी) एक कट्टर कम्युनिस्ट थीं, जिन्होंने ब्रिटिश काल के दौरान कई कम्युनिस्ट नेताओं को छिपाने में मदद की थी। जब राज्यों में चेचक लोगों को मार रहा था, तो कल्याणी जैसे लोगों ने जनता की कई तरह से मदद की थी। उन्होंने तब भी क्वारंटीन रहने को प्रोत्साहित किया था।’
शैलजा ने ‘वोग’ पत्रिका को बताया था, ‘जब हमारी शादी हुई, तो माशू ने सभी लोगों को बताया कि वह मेरी तरह ही बाहर जाती हैं, कोई अंतर नहीं है। मैं जिस स्कूल में पढ़ाया करती थी, उसके बाद पार्टी की बैठकों में भाग लिया करती थी और जब मैं घर आती थी, तो मेरी सास मुझसे पूछती थीं कि कैसा रहा और हम इस पर चर्चा किया करते थे, इस तरह मुझे हमेशा समर्थन मिला।’ शायद ऐसा पहली बार हुआ कि जब किसी कम्युनिस्ट को इस पत्रिका में स्थान दिया गया हो।
कई लोगों का तर्क है कि अगर ओखी चक्रवात, दो बार बाढ़, महामारी नीपा और कोविड-19 के दौरान सरकार और राज्य के संचालन में शैलजा की उल्लेखनीय भूमिका नहीं होती, तो शायद विजयन कभी सत्ता में दोबारा नहीं लौट पाते। लेकिन संकट प्रबंधन में सरकार का काम नजर आया था और यह सार्वजनिक स्वास्थ्य तक सीमित नहीं था। मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार और केरली टीवी (सीपीएम समर्थित चैनल) के प्रबंध निदेशक जॉन ब्रिटास ने चुनाव से पहले बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया था कि ज्यादातर बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं को रुकावट का सामना करना पड़ रहा था, चाहे वह पावर हाईवे हो, राष्ट्रीय राजमार्ग हो या महत्त्वपूर्ण गैस हाईवे हो, इन सभी परियोजनाओं को पिछली सरकारों द्वारा लोगों को प्रसन्न करने के चक्कर में अवरुद्ध कर दिया गया था। इस सरकार ने उस प्रवृत्ति को तोड़ा।
लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि उस समय शैलजा की सतर्कता ने केरल को बचाया था, जब चीन के वुहान में वायरस फैलने की खबर आई। निपाह के लिए, जो प्रोटोकॉल बनाया गया था, उसे फिर से लागू कर दिया गया। बाकी एलडीएफ सरकार ने वित्तीय सहायता, मुफ्त चावल, लॉकडाउन और सामुदायिक रसोई के संबंध में पहल करते हुए प्रतिक्रिया दी थी। राज्य पहली लहर में इस वक्र को समतल करने में सक्षम रहा, लेकिन दूसरी लहर में बुरी तरह मुसीबत उठानी पड़ी। इसी बीच चुनाव आ गए थे।
सरकार का हिस्सा बनाए जाने के बजाय शैलजा को पार्टी व्हिप नियुक्त किया गया है, एक ऐसा पद जो यह सुनिश्चित करता है कि एलडीएफ के सभी सदस्य पार्टी की विचारधारा का पालन करें और इसी प्रकार से मतदान करें। यह पद पार्टी और सरकार में उनके महत्त्व को मान्यता देने का एक तरीका है। व्हिप के अधिकार क्षेत्र में नहीं आने वाला एकमात्र व्यक्ति विधान सभा अध्यक्ष होता है।
तो वापस मुख्य प्रश्न आता है : कौन बड़ा है – पार्टी, सरकार या व्यक्ति? बहरहाल, यह व्यवस्था ही थी जिसने शैलजा को बाहर कर दिया। वैसे क्या विजयन को थोड़ा भी श्रेय नहीं मिलना चाहिए?

First Published - May 21, 2021 | 8:53 PM IST

संबंधित पोस्ट