facebookmetapixel
Double Bottom Alert: डबल बॉटम के बाद ये 6 शेयर कर सकते हैं पलटवार, चेक करें चार्टनवंबर में थोक महंगाई बढ़कर -0.32%, मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स की महंगाई घटकर 1.33% पर आईटैक्सपेयर्स ध्यान दें! एडवांस टैक्स जमा करने का आज आखिरी मौका, देर की तो लगेगा भारी जुर्मानाNephrocare Health IPO अलॉटमेंट फाइनल, सब्सक्रिप्शन कैसा रहा; ऐसे करें चेक स्टेटसकेंद्र ने MGNREGA का नाम बदलकर VB-RaM G करने का प्रस्ताव पेश किया, साथ ही बदल सकता है फंडिंग पैटर्नडॉलर के मुकाबले रुपया 90.58 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर, US ट्रेड डील की अनि​श्चितता और FIIs बिकवाली ने बढ़ाया दबावGold-Silver Price Today: सोना महंगा, चांदी भी चमकी; खरीदारी से पहले जान लें आज के दामWakefit Innovations IPO की बाजार में फिकी एंट्री, ₹195 पर सपाट लिस्ट हुए शेयरकम सैलरी पर भी तैयार, फिर भी नौकरी नहीं, रेडिट पर दर्द भरी पोस्ट वायरलCorona Remedies IPO की दमदार लिस्टिंग, कमजोर बाजार में ₹1,470 पर एंट्री; हर लॉट पर ₹5712 का मुनाफा

प्राकृतिक ऑक्सीजन के लिए हरियाली का बचाव आवश्यक

Last Updated- December 12, 2022 | 3:42 AM IST

भीषण महामारी के दौर में विश्व पर्यावरण दिवस मनाने का विचार निहायत कठिन था। ऐसे समय में पर्यावरण की बात करें तो एक बात याद आती है कि पिछले महीने हम जिस चीज के लिए सबसे अधिक तरसे वह थी ऑक्सीजन। जरा उन दिनों और घंटों के बारे में सोचिए जो हमने अपने प्रियजनों के लिए ऑक्सीजन की तलाश में भटकते हुए गुजारे। हमने देखा कि अस्पतालों में ऑक्सीजन न होने के कारण कैसे मरीज बेसुध होते रहे और उन्हें जान गंवानी पड़ी। कैेसे अदालतों को दखल देना पड़ा और देश भर में ऑक्सीजन परिवहन को विनियमित करना पड़ा। हमें ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर के कारोबार के बारे में पता चला। यह एक ऐसी मशीन है जो हवा से ऑक्सीजन तैयार करती है। हमने लोगों को एक-एक सांस के लिए तरसते देखा और हमें अहसास हुआ कि वह कितनी कीमती है।
ऐसे में इस विश्व पर्यावरण दिवस पर हमें क्या याद रखना चाहिए? हमें प्रकृति से जो ऑक्सीजन मिलती है वह हरियाली बढ़ाने और हवा की गुणवत्ता सुधारने से संबंधित है। यानी यह सुनिश्चित करना कि हम प्रदूषित हवा में सांस न लें। इस विषय में हम बात तो करते हैं और फिर इसे भुला देते हैं।
हर वर्ष 5 जून को मनाए जाने वाले विश्व पर्यावरण दिवस की इस वर्ष की थीम थी पर्यावास को बहाल करना। वृक्षों का घनत्व बढ़ाने और पर्यावास की सेहत दुरुस्त करने का अर्थ यह है कि वे अधिक से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण करेंगे जो हमारे पर्यावरण में भरती जा रही है और पूरी दुनिया को जलवायु परिवर्तन के एक भीषण दुष्चक्र मे फंसा रही है। इतना ही नहीं ये वृक्ष ऑक्सीजन छोड़ते हैं। यह सबके लिए फायदेमंद है लेकिन हमें यह समझना होगा कि पौधे लगाने या पर्यावास संरक्षण के लिए सबसे पहले हमें प्रकृति और समाज के साथ अपने रिश्तों को बहाल करना होगा।
सच तो यह है कि वृक्षों का तात्पर्य जमीन से है। यानी जमीन का मालिक कौन है, कौन उसका बचाव करता है और उन्हें दोबारा लगाता है और उसकी उपज पर किसका अधिकार है?
भारत में व्यापक प्रसार वाले सामान्य वन क्षेत्र का स्वामित्व वन विभाग के पास है। परंतु भारत जैसे देशों में सुनसान जंगल नहीं हैं। इसके बजाय हमारे यहां ऐसे आबादी वाले वन हैं जहां लोग जंगली जानवरों के साथ रहते हैं। ये वही वन जिले हैं जिन्हें सर्वाधिक गरीब और पिछड़े जिलों के रूप में वर्गीकृत किया गया है। यह भी एक तथ्य है कि सभी कानूनी, प्रशासनिक और कई बार शारीरिक शक्ति का इस्तेमाल करके देश के वन विभाग ने वन क्षेत्र का रकबा कमोबेश अक्षुण्ण रखा है। वह विकास परियोजनाओं मसलन खनन और बांध आदि बनाने के लिए वृक्षों को कटने से रोकने के लिए फाइल यहां से वहां घुमाता रहता है।
परंतु वृक्षों को पनपाने के लिए लोगों को उनके प्रबंधन की जवाबदेही लेनी होती है। पालतू पशुओं को उनसे दूर रखना होता है ताकि पौधे पनप सकें। इससे भी अहम बात यह है कि वृक्षों का एक मूल्य होता है फिर चाहे वह पर्यावरण को दी गई उनकी सेवा के रूप में हो या इमारती लकड़ी के रूप में। वृक्षों के पनपने की कीमत चुकानी होती है। ऐसा करके ही वृक्ष आधारित नवीन भविष्य निर्मित किया जा सकता है जहां इमारती लकड़ी का इस्तेमाल घर बनाने में और अन्य का ईंधन के रूप में किया जा सकता है। यह एक ऐसी क्रांति होगी जिससे गरीबों के हाथ में पैसा आएगा, आजीविका सुनिश्चित होगी और साथ ही ऊर्जा सुरक्षा मिलेगी और हम जलवायु परिवर्तन से लड़ सकेंगे।
आज पूरी दुनिया प्राकृतिक उपायों के बारे में बात कर रही है लेकिन इसके लिए हमारे गरीब समुदायों को केंद्र में रखने का प्रयास नहीं किया जा रहा है। इसकी वजह समझना मुश्किल नहीं है। मामला दरअसल जमीन की राजनीतिक अर्थव्यवस्था का और वंचित वर्ग के लोगों का है। इन परिस्थितियों में जमीन और श्रम की कीमत चुकानी होती है। यह कीमत हमें हवा से कार्बन डाइऑक्साइड समाप्त करने जैसे सस्ते विकल्प के रूप में नहीं बल्कि इस हल से निकलने वाली आजीविका के रूप में चुकाना होता है। यदि ऐसा हुआ तो सस्ते कार्बन का प्रतिसंतुलन करना अव्यवहार्य हो जाएगा।
इसके बाद एक चुनौती यह आती है कि हमारे द्वारा ली जाने वाली हर सांस ऑक्सीजन नहीं बल्कि जहर है। हम हर वर्ष जाड़ों में इस पर चर्चा करते हैं क्योंकि तब प्रदूषण भारी हवा और नमी के कारण हमें नजर आता है। लेकिन बाद में हम यह बात भूल जाते हैं। यही कारण है कि इस वर्ष के जाड़े समाप्त होते ही भारत सरकार ने कोयला आधारित ताप बिजली घरों को प्रदूषण फैलाने का लाइसेंस देने के क्रम में नियम बदल दिए। दूसरे शब्दों में आप अनुपालन न करने के लिए कुछ राशि चुका सकते हैं और यह जुर्माना प्रदूषण नियंत्रण पर होने वाले खर्च से कम होगा। नियम बिजली कंपनियों के लिए ऑक्सीजन और हम सबके लिए मृत्यु के समान हैं।
सच्चाई यही है कि हमारी ऑक्सीजन को सिलिंडर में नहीं रखा जा सकता या हर अमीर भारतीय की पहुंच में आने वाली ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर मशीन भी ऐसा नहीं कर सकती। इसे हवा शुद्ध करने वो उन उपकरणों में भी नहीं रखा जा सकता जिन्हें हम पहले ही अपने घरों और कार्यालयों में लगा चुके हैं। इसके बजाय जरूरत यह है कि हम ऑक्सीजन की कद्र करें क्योंकि यही दुनिया में हमारे लिए सबसे अहम जीवन रक्षक प्रणाली है। इस पर्यावरण दिवस पर जहां महामारी के असर ने हमें नाराज और स्तब्ध कर रखा है तब हमें गैर जरूरी चीजों में नहीं उलझना चाहिए। आज हम बेहतर जानते हैं कि बातें करने से जिंदगियां नहीं बचतीं। हमें बातों पर अमल करना होगा। यह हमारे अस्तित्व का प्रश्न है, उससे कम कुछ भी नहीं।
(लेखिका सेंटर फॉर साइंस ऐंड एनवायरनमेंट से संबद्ध हैं)

First Published - June 14, 2021 | 9:04 PM IST

संबंधित पोस्ट