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लिस्टेड कंपनियों में कंपनी संचालन चुस्त-दुरुस्त बनाने पर सलाह-मशविरा करने के बाद Sebi ने दिशानिर्देश जारी किए

Last Updated- August 08, 2023 | 11:32 PM IST
Shooting sparrows with cannons?
Illustration: Binay Sinha

कंपनी संचालन मजबूत बनाने के लिए सेबी द्वारा किए गए संशोधन सार्वजनिक उद्घोषणा और निजता के बीच संतुलन सुनिश्चित करने में विफल रह सकते हैं। बता रहे हैं सिरिल श्रॉफ

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सूचीबद्धता अनिवार्यता एवं खुलासा आवश्यकता) (दूसरा संशोधन) नियमन 14 जुलाई, 2023 को प्रभाव में आया। सूचीबद्ध कंपनियों में कंपनी संचालन चुस्त-दुरुस्त बनाने पर सलाह-मशविरा करने के बाद ये दिशानिर्देश जारी हुए हैं। इन संशोधनों में शेयरधारकों में सूचना और निर्णय लेने की क्षमता विकसित करने से जुड़ी असमानता दूर करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

इनमें एक प्रमुख संशोधन नियमन 30ए के अंतर्गत अनिवार्य उद्घोषणा (खुलासा) से जुड़ा है। यह प्रावधान सूचीबद्ध कंपनी या इसकी होल्डिंग कंपनी, सहायक या संबद्ध इकाइयों के शेयरधारक, प्रवर्तक, संबंधित पक्ष, निदेशक, प्रबंधन स्तर के मुख्य अधिकारी या केएमपी द्वारा आपस में या सूचीबद्ध इकाई या तीसरे पक्ष के साथ हुए समझौतों की उद्घोषणा से संबंधित है। ये उद्घोषणाएं उस स्थितियों में करनी होंगी जब ऐसे समझौते सूचीबद्ध कंपनी के नियंत्रण पर प्रभाव डालते हैं या सूचीबद्ध इकाई पर किसी तरह की पाबंदी का नियंत्रण स्थापित करते हैं या फिर किसी देनदारी का निर्धारण करते हैं। सतही तौर पर यह लगभग साफ हो जाता है कि नियमन का दायरा कितना व्यापक है।

नियमन 30ए का शीर्षक केवल उन समझौतों का जिक्र करता है जो सूचीबद्ध इकाइयों पर लागू होते हैं मगर प्रावधान में निहित बातें वाजिब समझौतों को भी अपने दायरे में लेती हैं और यह मायने नहीं रखता है कि सूचीबद्ध कंपनी पक्षकार है या नहीं। नियमन 30ए कायदे-कानून बेहतर और अनुपालन नियम कड़ा बना कर कंपनी संचालन मजबूत बनाने के नियामक की प्राथमिकताओं से पूरी तरह इत्तफाक रखता है। बेहतर खुलासा नियमों और सार्वजनिक बाजार में विश्वास एवं सुरक्षा सुनिश्चित करने में पारदर्शिता एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मगर नियमन 30ए के सावधानी पूर्वक अध्ययन के बाद कुछ प्रश्न अवश्य पूछे जाने चाहिए।

पहला प्रश्न यह है कि क्या सार्वजनिक खुलासा अनिवार्यता का दायरा बढ़ाने से जुड़ी चिंताओं पर पूरा ध्यान दिया गया है? क्या क्रियान्वयन के व्यावहारिक पहलुओं को ध्यान में रखा गया है? और तीसरा प्रश्न यह है कि इसके अवांछित परिणामों से निपटने के क्या उपाय किए गए हैं?

आइए, नियमन 30ए के दायरे पर विचार करते हैं। प्रवर्तक एवं सार्वजनिक शेयरधारकों के समझौते समान स्तर पर रखे गए हैं और विशेष श्रेणियों के व्यक्तियों के बीच हुए आपसी समझौते इसमें शामिल किए गए हैं।

फरवरी 2023 के परिचर्चा पत्र में प्रवर्तकों के तीसरे पक्षों के साथ होने वाले समझौते का अप्रत्यक्ष रूप से जिक्र है। इस संबंध में खुलासे की शर्त वाजिब होती। मगर नियमन 30ए का दायरा जान बूझकर बढ़ाया गया है। भारतीय संदर्भ में इससे कई मूलभूत विषय खड़े होते हैं जहां एक विशिष्ट और पूर्व-निर्धारित नियंत्रक अंशधारक यानी प्रवर्तक मौजूद होता है।

प्रवर्तक द्वारा खड़ी की गई कंपनी में अंशधारक कंपनी के नियंत्रण से जुड़ी बातों से पूरी तरह वाकिफ होते हैं। सामूहिक नियंत्रण अंतर्निहित होता है और इसका श्रेय नियामकीय ढांचे को जाता है। नियंत्रण में बदलाव का कारण मौजूद नहीं होने की स्थिति (यह पहले से पेचीदा अधिग्रहण का क्षेत्र है) में प्रवर्तकों के बीच हुई आपसी व्यवस्थाओं को सार्वजनिक क्यों किया जाए? क्या इससे शेयरधारक का व्यवहार या कीमत सही मायने में बदल जाएगा? तो क्या जरूरी बातों को ध्यान में रखे बिना नियम तैयार किए गए हैं?

यह चिंता इस वास्तविकता से और अधिक बढ़ गई है कि शेयरधारकों के समझौतों की तुलना में प्रवर्तकों द्वारा किए गए समझौते संभवतः वृहद पारिवारिक व्यवस्था या नियमावली होती है जिसमें अत्यधिक पेचीदा एवं संवेदनशील मामलों का भी जिक्र होता है। ये मूल रूप से गोपनीय एवं परिवार के निजी मामले हैं। क्या पहले से अधिक पारदर्शिता परिवार के प्रमुख के निजी धन के उत्तराधिकार ढांचे को सार्वजनिक करना वाजिब करार देती है? क्या तब नियामक को दिखाने के लिए साक्ष्य वाले दस्तावेज पेश करने होंगे ? समय पूर्व खुलासा किए जाने के बाद टकराव पैदा करने वाले दावों से कैसे निपटा जाएगा? ये एक रियलिटी शो की तरह लगेंगे मगर इससे सार्वजनिक बाजारों में शेयरधारकों का प्रवेश का सबसे प्रमुख लक्ष्य- मूल्य वर्धन- प्रभावित हो जाएगा।

समानता एवं पारदर्शिता को आधार बनाकर विरोध जताए जाने से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। नियमन 30ए में 14 जून 2023 तक अस्तित्व में सभी व्यवस्थाओं के खुलासे पर जोर दिया गया है और पिछली कोई अंतिम तारीख का प्रावधान नहीं दिया गया है। भविष्य में जो समझौते होंगे वे मौजूदा खुलासा नियम-शर्तों से वाकिफ होंगे मगर इस नियम में अब फंसे मौजूदा समझौते को ऐसी कोई सुविधा नहीं दी जाएगी। गोपनीयता से जुड़ा मूलभूत आधार पूरी तरह उलट दिया गया है। भविष्य में होने वाले पारिवारिक व्यवस्था केवल सुनने में अच्छी होंगी।

नियमन 30ए का एक असर यह होगा कि खुलासे के डर से उत्तराधिकार योजनाओं पर कहीं न कहीं असर जरूर होगा। इसका यह मतलब नहीं कि इसका नतीजा चौंकाने वाला ही हो मगर निश्चित समझौतों और स्पष्टता के अभाव में, साथ ही अपर्याप्त विकल्पों के इस्तेमाल से विवादों की अधिकता एवं मूल्य ह्रास दोनों की आशंका बढ़ गई है। भविष्य में होने वाले विवाद तो अपनी जगह है ही, मौजूदा विवाद के मामले में नियमन 30ए एक अजीब स्थिति पैदा करता है।

मध्यस्थता प्रक्रिया गोपनीय हो सकती है मगर यह दस्तावेज की एक प्रमुख बात नहीं रह जाएगी।दो चरणों वाला खुलासा ढांचा क्रियान्वयन के मोर्चे पर भी डमगमा सकता है। जो लोग नियमन के दायरे में आए हैं उन पर खुलासे की अनिवार्य शर्त लागू करने के लिए कोई कंपनी कौन सा ढांचा उपयोग में ला सकती है?

प्रवर्तक से सार्वजनिक शेयरधारक से लेकर कर्मचारियों तक विभिन्न लोगों के कारण यह समस्या और बढ़ जाती है। विभिन्न क्षेत्रों में और अंतरराष्ट्रीय पक्षों के बीच हुए वैश्विक समझौते एवं परिसंपत्ति एक अलग तरह की चुनौती हो सकते हैं। गोपनीयता से जुड़ी चिंताएं प्रतिस्पर्धा बढ़ाने वाली सूचनाओं एवं लाभों तक पर असर डाल सकती हैं। क्या सार्वजनिक शेयरधारक के रूप में एक अंतरराष्ट्रीय फंड के लिए आंतरिक व्यवस्था का खुलासा करना जरूरी होगा? या कई पीढ़ियों वाले परिवार को संचालन या विमर्श ढांचा रणनीतिक दृष्टिकोण से फायदेमंद हो सकता है?

सभी शेयरधारकों के लिए बाजार को सुरक्षित एवं पारदर्शी स्थान बनाने के लिए पारदर्शिता नियमों को मजबूत करना आवश्यक एवं स्वागत योग्य कदम है। इसके साथ सार्वजनिक उद्घोषणा की खूबियों और निजता की सुरक्षा में संतुलन कायम करना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। पारदर्शिता कोई अंतिम सत्य नहीं है और इस पर उचित पाबंदी एवं नियंत्रण लगाना भी जरूरी है।

वृहद उपायों के बजाय जानबूझकर सामग्री, समय एवं अपवाद का निर्धारण नियमन 30ए को संवैधानिक चुनौती के समक्ष खड़ा कर सकता है। इसे भारतीय संविधान के अंतर्गत अनुच्छेद 14, 19 और 21 के आधार पर चुनौती दी जा सकती है। नियमन 30ए को तार्किक एवं आनुपातिकता दोनों आधारों पर चुनौती दी जा सकती है। सूचीबद्ध कंपनियों के साथ अब तक हुए समझौतों के लिए उद्घोषणा करने की आखिरी तारीख 31 जुलाई, 2023 थी। सूचीबद्ध कंपनियों की तरफ से संबंधित सार्वजनिक खुलासे 14 अगस्त, 2023 तक किए जा सकेंगे। नियमन 30ए एक सही कदम है या नहीं इसका पता खुलासों की गुणवत्ता, उपयोगिता और इनके प्रभाव से ही चलेगा।

(लेखक सिरिल अमरचंद मंगलदास में मैनेजिंग पार्टनर हैं। लेख में उनके व्यक्तिगत विचार हैं)

First Published - August 8, 2023 | 9:11 PM IST

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