बीते कुछ सप्ताह में कई निजी कंपनियों ने मुझसे पूछा है कि उन्हें कहां सूचीबद्ध होना चाहिए? भारत में या अमेरिका में? इन चर्चाओं को देखते हुए यह स्पष्ट है कि हमें वेंचर कैपिटल/निजी इक्विटी क्षेत्र से कई नई सूचीबद्धताएं देखने को मिलेंगी। सूचीबद्धता की दिशा में यह कदम भारत और अमेरिकी बाजारों की मजबूती के कारण है। इसके अलावा वितरण के लिए ‘फंड सीमित भागीदारों’ के दबाव और इस तथ्य की भी इसमें भूमिका है कि कई कंपनियों के पास केवल नौ से 12 महीनों की नकदी बची है।
दुविधा एकदम स्पष्ट है: अंतरराष्ट्रीय निवेश बैंक वैश्विक सूचीबद्धता चाहते हैं क्योंकि यह उनकी मजबूती दिखाता है, वेंचर कैपिटल फर्म शुरुआती सूचीबद्धता मूल्य को अधिकतम करना चाहती हैं। इनमें से कई निजी कंपनियां विदेशी आधार वाली हैं इसलिए स्थानीय सूचीबद्धता के परिणाम मामूली नहीं हैं। ऐसे में सूचीबद्ध होना एक अहम निर्णय है जो दीर्घकालिक मूल्य निर्माण पर असर डालता है। इस बारे में कैसे सोचना चाहिए?
एक साधारण ढांचा यह है कि विदेशों में सूचीबद्धता के साथ आप घरेलू निवेशक आधार तथा कई उभरते बाजारों के निवेशकों से निकल सकते हैं। अगर आप स्थानीय स्तर पर सूचीबद्ध होते हैं तो आप कई विदेशी निवेशकों को बाहर कर देंगे जो स्थानीय इक्विटी में कारोबार नहीं करते।
कौन सा निवेशक आधार अधिक बुनियादी और महत्त्वपूर्ण है जो आपके कारोबार की सराहना कर सकता है? दोनों तरह की पूंजी किसी भी तरह की सूचीबद्धता के समर्थन के लिए पर्याप्त है। एक अन्य विचार है विभिन्न प्रकार के व्यवसायों को महत्त्व देने के लिए विभिन्न सूचीबद्धता क्षेत्राधिकारों की क्षमता का। क्या यह सही है कि अमेरिकी बाजार उच्च वृद्धि वाले अलाभकारी व्यवसायों को अधिक सराहते हैं?
मुझे अक्सर यह सुनने को मिलता है कि वर्षों के घाटे और नकारात्मक नकदी प्रवाह के कारण भारत के सार्वजनिक बाजारों ने कभी नेटफ्लिक्स या टेस्ला जैसे विध्वंसक को फंड नहीं किया होता। क्या आप ऐसे हैं?
मेरे लिए अगर आपका कारोबार ग्राहक आधार के मामले में या नियामकीय माहौल के मामले में बहुत स्थानीय है तो चयन एकदम स्पष्ट है। आपको भारत को सूचीबद्ध करना होगा। अगर संभावित निवेशक को भारत की तथा स्थानीय कारोबारी माहौल की समझ रखनी है और आप अपने कारोबार और उसकी संभावनाओं को समझना चाहते हैं तो आपको देश में सूचीबद्ध होना चाहिए।
स्थानीय ई-कॉमर्स कारोबार या भारत के किसी फिनटेक उद्योग के बारे में सोचिए। इन कारोबारों की सराहना करने और सही मायनों में इनका मोल करने के लिए आपको प्रतिस्पर्धा और नियमों के संबंध में स्थानीय बारीकियों को समझना होगा। अधिकांश वैश्विक निवेशकों के लिए भारत सही जगह नहीं है। भारतीय इक्विटी की मौजूदा वैश्विक हिस्सेदारी 10 वर्ष के निचले स्तर पर है।
ज्यादा से ज्यादा उनके पास तीन या चार भारतीय शेयर होते हैं। वे इक्कादुक्का शेयरों के लिए भारत को समझने की कोशिश नहीं करेंगे। घरेलू और उभरते बाजारों के निवेशकों की पहुंच केवल घरेलू सूचीबद्ध शेयरों में होगी। उभरते बाजारों के निवेशकों के लिए भारत कभी इतना अधिक प्रासंगिक नहीं था। इस समय एमएससीआई ईएम इंडेक्स में दूसरा सर्वाधिक भार वाला शेयर है।
भारत को सही स्थिति में लाना ईएम फंड प्रबंधकों के लिए बनाने या बिगाड़ने वाला निर्णय होगा। वैश्विक निवेशकों की तरह भारतीय निवेशकों के पास जाने को कोई और जगह भी नहीं है। इस तरह के प्रोत्साहन ढांचे के साथ कौन अधिक समय बिताएगा? आपको कई तात्कालिक निवेशक मिलेंगे लेकिन इस बात की संभावना कम है कि आपको विदेशों में सूचीबद्ध होने पर पांच साल के नजरिये वाले निवेशक मिलेंगे।
वास्तव में अंतरराष्ट्रीय स्वरूप वाले कारोबार मसलन सेवा के रूप में सॉफ्टवेयर आदि पर विचार किया जाए जो वैश्विक स्तर पर बिकते हैं तो मानक अलग हो सकते हैं क्योंकि वहां भारत के बारे में ज्ञान जुटाने की कोई आवश्यकता नहीं है। वैश्विक फंडों ने ऐसे कई कारोबारी मॉडल देखे हैं। विदेशों में बेहर मूल्यांकन मिल सकता है क्योंकि वहां मूल्य और बिक्री के स्थापित मानक होते हैं।
यहां भी मैं घरेलू सूचीबद्धता की बात कहूंगा। यह संभव है कि भारतीय कंपनी विदेशी सूचीबद्धता में कहीं खो जाए। मैंने कई ऐसे मामले देखे हैं जहां भारतीय कंपनियां भीड़ में गुम हो जाती हैं। भारत में जहां ऐसी कंपनी को आरंभ में कम मूल्यांकन मिल सकता है, वहीं यह एक ऐसा विशिष्ट बिंदु है जो निवेशकों का ध्यान और विश्लेषकों की रुचि आकृष्ट करता है। कंपनी वृद्धि और मूल्यांकन के मानकों पर कथानक को आकार दे सकती है।
अगर आपकी कंपनी उस उद्योग में अग्रणी है जहां भारत को ढांचागत रूप से बढ़त हासिल है तो मूल्यांकन बढ़ सकता है। भारतीय आईटी, जेनेरिक, फार्मा और वाहन कलपुर्जा कंपनियों के शेयरों के मूल्यांकन पर विचार कीजिए। वे चार्ट से बाहर हैं और वैश्विक समकक्षों की तुलना में कहीं आगे हैं। यह सिलसिला वर्षों से चल रहा है।
आज इसे भारत के सॉफ्टवेयर सेवा क्षेत्र का मौका माना जा रहा है और ये कंपनियां 20 वर्ष पहले की आईटी सेवाएं होंगी। मैं कहूंगा कि भारत में सूचीबद्ध सॉफ्टवेयर सेवा कंपनियां वैश्विक समकक्षों की तुलना में बेहतर स्थिति में होंगी। विदेशों में सूचीबद्धता को लेकर शुरुआत में मनमाना मूल्यांकन हो सकता है, खासकर तब जबकि कंपनी मुनाफा न कमा रही हो लेकिन मूल्यांकन का यह अंतर मुनाफा आने के साथ ही सिमट जाएगा।
भारत संचालन और पूंजी किफायत के मामले में भी विसंगतिपूर्ण प्रीमियम देता है। तमाम क्षेत्रों की बात करें तो बेहतर संचालन वाली सूचीबद्ध भारतीय कंपनियां जिनमें पूंजीगत किफायत और वृद्धि है, वे वैश्विक समकक्षों की तुलना में बेहतर प्रीमियम पर काम करती हैं।
भारतीय शेयर बाजार भी ढांचागत रूप से सूचीबद्धता के अनुकूल है। फिलहाल हमारे बाजार में घरेलू निवेशकों से 35 अरब डॉलर की राशि आ रही है। यह राशि म्युचुअल फंड, बीमा, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन और राष्ट्रीय पेंशन योजना से आती है।
अगले पांच साल में यह आंकड़ा बढ़कर 60 अरब डॉलर हो जाएगा। अगर इसमें 20 अरब डॉलर के विदेशी पोर्टफोलियो निवेश को शामिल करें तो यह राशि 80 अरब डॉलर हो जाती है। भारतीय बाजारों को ढांचागत ढंग से खुला होना चाहिए और गुणवत्तापूर्ण सूचीबद्धता का स्वागत करना चाहिए।
ऐसे चरणबद्ध आवक के साथ बाजारों में हर प्रकार और आकार की नई सूचीबद्धता की खपत की क्षमता होनी चाहिए। भारतीय बाजारों ने भी परिपक्वता के हर चरण पर हर तरह के कारोबार की सराहना का भाव दिखाया है। मुनाफे पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जा सकता है लेकिन गैर मुनाफे वाली कंपनियों को भी तवज्जो दी जाती है, बशर्ते कि उनके पास पैसे कमाने की स्पष्ट राह हो।
भारत में सूचीबद्धता को कमजोर करने वाली एक बात है यहां के रहवास की जरूरत जिसके कर के क्षेत्र में गंभीर परिणाम होंगे। मैं उम्मीद करूंगा कि हमारे नीति निर्माता इस मसले को हल कर सकें। हम एकबारगी व्यवस्था कर सकते हैं जहां विदेशों में आधार बनाने वाली भारतीय कंपनियां रियायती कर देकर भारत आ सकें।
इससे यह सुनिश्चित होगा कि हमारी बेहतरीन कंपनियां देश में सूचीबद्ध होंगी। इससे हमारे पूंजी बाजार मजबूत और प्रासंगिक होंगे। मजबूत पूंजी बाजार देश के लिए प्रतिस्पर्धी बढ़त वाले हैं और उन्हें जीवंत बनाने का हर प्रयास की सराहना की जानी चाहिए। ऐसी नीति एकबारगी अरबों रुपये का कर भी जुटा सकती है क्योंकि कई कंपनियां स्वदेश लौटेंगी और रियायती दर पर कर चुकाएंगी।
मुझे उम्मीद है कि चुनाव के बाद बजट में इसी दृष्टि से कुछ सोचा जाएगा। सूचीबद्धता सार्वजनिक बाजार में किसी कंपनी का परिचय होता है। इसकी सफलता या विफलता से उसकी प्रतिष्ठा तय होती है। अधिकांश संस्थापक शुरुआती बिकवाली में बिक्री नहीं करते। संस्थापकों को शुरुआती बिक्री मूल्य को अधिकतम मूल्य में परिवर्तित करने की आवश्यकता नहीं होती। उन्हें लंबी अवधि के परिसंपत्ति निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
संस्थापकों को इस बात पर विचार करना चाहिए कि अगले पांच वर्षों में उन्हें कहां अधिक बाजार पूंजीकरण हासिल होगा। उन्हें इस बारे में नहीं सोचना चाहिए कि सूचीबद्धता पर कहां अधिक मूल्यांकन होगा। संस्थापकों को सूचीबद्धता को निवेशकों पर नहीं छोड़ना चाहिए जो कम समय के परिदृश्य को ध्यान में रखकर कारोबार करते हैं।
(लेखक अमांसा कैपिटल से संबद्ध हैं)