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कितने हिस्से पर हैं जंगल, सरकार भी अनजान

Last Updated- December 05, 2022 | 9:25 PM IST

अगर किसी से पूछा जाए कि देश के कुल क्षेत्रफल का कितना हिस्सा वास्तविक वन क्षेत्र है, तो सिवाय सरकारी आंकड़े के और कोई पुख्ता जानकारी शायद ही लोगों के पास उपलब्ध हो।


सच तो यह है कि सरकार की ओर से ही पिछले दो दशक से हर दो साल पर वन क्षेत्र का आंकड़ा जारी किया जाता है।नवीनतम सरकारी आंकड़े के मुताबिक, देश के करीब 20 फीसदी क्षेत्रफल पर वन मौजूद है, जबकि वन विभाग के अधीन कुल भूमि करीब 23 फीसदी है।


हालांकि सरकार की ओर से जारी आंकड़ों से इस बात का पता कतई नहीं चलता कि कितने हिस्से पर कॉमर्शियल प्लांटेशन किया गया है और कितना वास्तविक वन क्षेत्र है। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया का कहना है कि अगर एक हेक्टेयर में तकरीबन 10 फीसदी हिस्से पर पेड़ लगे हों, तो उसे वन माना जाता है। यानी कि अगर कोई व्यक्ति अपनी एक हेक्टेयर जमीन पर नारियल का पेड़ लगाता है, तो उसे भी वन क्षेत्र का हिस्सा माना जा सकता है।


हालांकि फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया भी इस बात से सहमत है कि वन क्षेत्र की गणना करने में कुछ व्यावहारिक समस्याएं हैं। मसलन-वन क्षेत्र के लिए कोई निर्धारित सीमा रेखा (बाउंड्री) नहीं है। ऐसे में यह पता लगाना मुश्किल होता है कि वन क्षेत्र में शामिल कितने हिस्से पर प्लांटेशन किया गया है। इस मामले को लेकर फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के संयुक्त निदेशक सिबल सेनगुप्ता राज्य वन विभाग से खफा भी नजर आते हैं।


दरअसल, उनका कहना है कि राज्य वन्य विभाग की ओर से उन्हें वन क्षेत्र की वास्तविक सीमा रेखा की जानकारी ही नहीं दी जाती है।सेनगुप्ता भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि सरकार की ओर से जारी वन क्षेत्र के आंकड़े में सेब के बगान और यूकेलिप्टस के पेड़ भी शामिल हैं।


इस बारे में पर्यावरण विज्ञानियों का कहना है कि सरकार वास्तविक वन क्षेत्र और प्लांटेंशन के बीच फर्क को समझ ही नहीं पा रही है। कुछ दिनों पहले सरकार की ओर से वन क्षेत्र से संबंधित रिपोर्ट पर ‘कल्पवृक्ष’ नाम के एक स्वयंसेवी संगठन ने यह कहते हुए उंगली उठाई कि इसमें वन भूमि का गैर-वन कार्यों में जो उपयोग किया जा रहा है, उसके बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है।


बेंगलुरु स्थित सेंटर फॉर इंटरडिसिप्लिनरी स्टडीज इन एन्वॉयरमेंट एंड डेवलपमेंट के फेलो शरदचंद्र लेले का कहना है कि अगर सर्वे का मकसद वन क्षेत्र के संरक्षण से है, तो इस तरह के भ्रामक आंकड़ों से लक्ष्य को हासिल करना संभव नहीं होगा। लेले ने यह भी कहा कि इस तरह से सर्वे करना वन संरक्षण कानून 1980 का उल्लंघन है, क्योंकि  इस कानून में स्पष्ट उल्लेख है कि चाय, कॉफी और रबड़ के प्लांटेशन को वन क्षेत्र में शामिल नहीं किया जा सकता है।


दरअसल, यूकेलिप्टस, बबूल आदि को पेड़ को भी वन विभाग वन क्षेत्र में शामिल कर रहे हैं, जो कानूनन सही नहीं है।सेनगुप्ता ने भी यह माना कि राज्यों से वन क्षेत्र की वास्तविक सीमा की सही जानकारी मिलना आसान नहीं है। हम लोग भी लंबे समय से विभिन्न राज्यों से वन क्षेत्र की सीमा का ब्योरा मांग रहे हैं, लेकिन राज्य सरकार उसे उपलब्ध कराने में रुचि नहीं ले रही है।


दरअसल, इसमें राज्य सरकार की भी अपनी समस्या है, क्योंकि वन विभाग को इसके बारे में राजस्व विभाग से जानकारी मिलती है, उसके बाद वन क्षेत्र की सीमा की जांच की जाती है, उसके बाद कहीं जाकर वास्तविक स्थिति का पता चलता है। यानी लंबी प्रक्रिया के बाद वन क्षेत्र की वास्तविक सीमा का निरर््धारण संभव हो पाता है। इसमें काफी वक्त लगता है।सेनगुप्ता ने बताया कि कर्नाटक, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और तमिलनाडु में वन क्षेत्र की सीमा तय करने के लिए डिजिटल रिकॉर्डिंग की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, लेकिन अन्य राज्यों में अभी तक यह कार्य पूरा नहीं हो पाया है।


हैरत की बात है कि इस बारे में कोई समय-सीमा भी तय नहीं की गई है।सेनगुप्ता इस बात से पूरी तरह इनकार करते हैं कि वन विभाग इस बात की सही जानकारी नहीं देता है कि देश का कितना हिस्सा वनाच्छादित है और वन क्षेत्र में कितनी कमी है। उनका कहना है कि अगर वनाच्छादित क्षेत्र में एक हेक्टेयर से ज्यादा की कमी आती है, फॉरेस्ट सर्वे में इसका जिक्र जरूर होना चाहिए, ।

First Published - April 15, 2008 | 12:53 AM IST

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