भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने राज्यों के बजट पर जो रिपोर्ट पेश की है उससे पता चलता है कि अधिकांश राज्यों ने राजकोषीय घाटे को तय सीमा में रखने के लिए खर्च में कटौती की है। वर्ष 2019-20 में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का समेकित राजकोषीय घाटा लक्ष्य के मुताबिक सकल घरेलू उत्पाद के 2.6 फीसदी तक सीमित रखा गया, हालांकि संशोधित अनुमान में इसके बढ़कर 3.2 फीसदी होने की बात कही गई।
संशोधित अनुमान की तुलना में प्रारंभिक अनुमानों के मुताबिक उनके राजस्व में 6 फीसदी की कमी आई जबकि राजस्व व्यय 11 फीसदी और पूंजीगत व्यय में 14 फीसदी की कमी आई। विशेषज्ञ राज्यों के इस व्यय संकुचन के भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव को लेकर यकीनन चर्चा करेंगे। परंतु आरबीआई की रिपोर्ट से एक और परेशान करने वाला तथ्य यह निकलता है कि राज्यों के बजट में वास्तविक अनुमान लगाने और उन्हें हासिल करने का अनुशासन लगातार कम हो रहा है। बीते कुछ वर्षों में केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने इस अनुशासन का बार-बार उल्लंघन किया है। अब राज्यों में भी यह प्रवृत्ति देखने को मिल रही है।
खासतौर पर बीते दो वर्ष में केंद्र सरकार की वास्तविक राजस्व प्राप्तियां उन संशोधित अनुमानों से भी काफी कम रहीं जो बजट पेश करने के तकरीबन एक वर्ष बाद पेश किए गए थे। सन 2018-19 में वास्तविक राजस्व प्राप्तियां संशोधित अनुमान से 10 फीसदी कम थीं। वहीं 2019-20 में यह 9 फीसदी कम रही।
व्यय के मोर्चे पर लक्ष्य से चूक 2018-19 में ही काफी स्पष्ट रही। राजस्व व्यय 6 फीसदी कम रहा। इसे व्यापक तौर पर सरकारी उपक्रमों पर बोझ डालकर हासिल किया गया। जबकि पूंजीगत व्यय 2.53 फीसदी कम रहा। इससे केंद्र को यह दिखाने में मदद मिली कि वास्तविक राजस्व घाटा जीडीपी के 3.4 फीसदी रहा जो संशोधित अनुमानों से कतई अलग नहीं था।
सन 2019-20 में वित्त मंत्रालय ने ऐसे व्यय प्रबंधन की मदद नहीं ली। ऐसे में राजकोषीय घाटे के लिए प्रारंभिक वास्तविक आंकड़ा जीडीपी के 4.6 फीसदी तक चढ़ गया जबकि संशोधित अनुमान में इसके 3.8 फीसदी रहने की बात कही गई थी। 2019 के पहले भी राजस्व और व्यय के आंकड़ों में अंतर देखा गया है लेकिन वह अपेक्षाकृत कम होता था और कभी इतना नहीं होता था कि राजकोषीय घाटे के आंकड़े बदलने पड़ें।
आरबीआई की रिपोर्ट राज्यों के बजट में भी अनुशासन की कमी दिखाती है। 2018-19 में राज्यों की वास्तविक राजस्व प्राप्ति संशोधित अनुमान से 8.4 फीसदी कम थी। गैर कर्ज पूंजीगत प्राप्तियों में 19 फीसदी तक की उच्च फिसलन दर्ज की गई। परंतु व्यय में कमी करके राज्य बचने में सफल रहे। उनका राजस्व व्यय 6 फीसदी और पूंजीगत व्यय 18 फीसदी कम रहा। परिणामस्वरूप राज्यों का संयुक्त राजकोषीय घाटा 2.4 फीसदी कम रहा जबकि संशोधित अनुमान में इसके 2.9 फीसदी रहने की बात कही गई थी। सन 2019-20 में राज्यों की संयुक्त राजस्व प्राप्तियां भी संशोधित अनुमान से 6 फीसदी तक कम रहीं। गैर ऋण पूंजीगत प्राप्तियां 25 फीसदी कम रहीं। परंतु राज्यों ने अपना व्यय स्थगित कर दिया जिसके कारण राजस्व व्यय में 11 फीसदी और पूंजीगत व्यय में 14 फीसदी की कमी आई। इसके चलते 2019-20 में राज्यों का वास्तविक राजकोषीय घाटा 2.6 फीसदी रह गया जिसके पहले 3.2 फीसदी रहने का अनुमान था। ऐसा लगेगा कि केंद्र की तरह राज्य भी हकीकत से परे राजस्व आंकड़े पेश कर रहे हैं और उन्हीं को आधार मानकर अगले वर्ष के व्यय कार्यक्रम घोषित किए जा रहे हैं। परंतु राजस्व वृद्धि के अनुमान गलत होने पर व्यय पर रोक लग जाती है ताकि राजस्व घाटे को तय दायरे में रखा जा सके। यह खराब राजकोषीय नियोजन का उदाहरण है।
राज्यों के बजट पर आरबीआई की रिपोर्ट से दो और रुझान निकलते हैं। पहला, राज्यों के बजट का आकार केंद्रीय बजट के मुकाबले धीमी गति से बढ़ रहा है। सन 2011-12 में राज्यों का संयुक्त बजट 12.85 लाख करोड़ रुपये था जो केंद्र के 13 लाख करोड़ रुपये से कम था। हालांकि अगले वर्ष से राज्यों का बजट तेज गति से बढ़ा और 2016-17 तक इसमें 11 से 19 फीसदी की तेजी आई।
इसके विपरीत केंद्रीय बजट इस अवधि में अपेक्षाकृत धीमी गति से बढ़ा और सालाना वृद्धि दर 6 से 10 फीसदी रही। परंतु 2017-18 के बाद राज्यों के बजट में इजाफा धीमी गति से हुआ। ऐसा आंशिक तौर पर इसलिए हुआ क्योंकि वस्तु एवं सेवा कर की शुरुआत के बाद अनुमानित राजस्व वृद्धि में कमी आई और व्यय कम किया गया। दूसरी ओर केंद्रीय बजट में 8 से 16 फीसदी की दर से वृद्धि जारी रही। 2019-20 में राज्यों के बजट का आकार केंद्रीय बजट से केवल 24 फीसदी अधिक था। यह 2016-17 से अलग था जब राज्यों का बजट केंद्रीय बजट से 33 फीसदी बड़ा था। यह सिलसिला आगे भी जारी रहने की आशा है क्योंकि राज्यों ने बीते दो वर्ष में व्यय कटौती की है।
अर्थव्यवस्था के अहम क्षेत्रों मसलन स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचा और कौशल विकास तथा शिक्षा आदि में राज्य ही अधिक व्यय करते हैं। यदि राज्यों के बजट व्यय में कमी आई तो ऐसे क्षेत्रों का आवंटन प्रभावित होगा। यह देश की वृद्धि के लिए चिंतित करने वाली बात है। इसके अलावा यदि केंद्र के बजट में उसके आकार की तुलना में अच्छी बढ़ोतरी होती है और वह राज्यों के बजट के मुकाबले तेजी से बढ़ता है तो यह सार्वजनिक व्यय के बढ़ते केंद्रीकरण का उदाहरण हो सकता है। इसका देश के विकास और उसके शासन पर यकीनी असर होगा।
एक अन्य रुझान जिसमें बदलाव देखने को मिला है वह यह कि राज्यों के राजस्व में केंद्रीय राजस्व की तुलना में धीमी वृद्धि नजर आई है। सन 2011-12 और 2018-19 के बीच हर वर्ष राज्यों का कर राजस्व 7 फीसदी से कम दर से बढ़ा। परंतु इनमें से अधिकांश वर्षों में केंद्र का सकल कर राजस्व दो अंकों में बढ़ा। इसी प्रकार 2019-20 में जहां केंद्र का कर राजस्व 3 फीसदी से अधिक गिरा, वहीं राज्यों में यह गिरावट और अधिक हो सकती है।
राज्यों का अपने राजस्व प्रवाह में सुधार नहीं कर पाना उनकी वित्तीय ताकत और राजकोषीय स्वायत्तता को प्रभावित करेगा। ऐसे समय में जब केंद्र से राज्यों को होने वाला हस्तांतरण तमाम कारणों से दबाव में है, राज्यों को चाहिए कि वे अपनी व्यय योजनाओं को अक्षुण्ण रखने केलिए संसाधनों के नए स्रोत तलाश करें। राजकोषीय घाटे को तय दायरे में रखना अहम है लेकिन व्यय कटौती करके ऐसा नहीं करना चाहिए। इसके बजाय अधिक संसाधन जुटाने का प्रयास होना चाहिए। इसके लिए गैर कर राजस्व पर नजर डाली जा सकती है।
