इलस्ट्रेशन- बिनय सिन्हा
सरकार के प्रत्यक्ष कर संग्रह के नवीनतम आंकड़ों से कुछ निराश होने का कारण है। चालू वित्त वर्ष के पहले चार महीनों में प्रत्यक्ष कर संग्रह में 0.91 प्रतिशत की कमी आई है जो पूरे वर्ष के लिए बजट अनुमानों की 11.36 प्रतिशत की वृद्धि से कम है।
इन आंकड़ों को लेकर थोड़ा आश्चर्य हुआ। भारतीय उद्योग जगत ने वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही के लिए शानदार लाभ की घोषणा की है। हालांकि निगमित कर संग्रह वर्ष 2023 की अप्रैल-जून अवधि के दौरान 10 प्रतिशत गिर गया। निजी आयकर संग्रह में 6.6 प्रतिशत का इजाफा हुआ है पर यह बहुत उत्साहजनक नहीं है। कारण कि बजट में 2023-24 के लिए 14 फीसदी की सालाना वृद्धि दर का अनुमान लगाया गया है। वास्तव में चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में प्रत्यक्ष कर संग्रह का हिस्सा घटकर 4.6 प्रतिशत रह गया जबकि इससे पिछले वित्त वर्ष की इसी तिमाही में यह करीब 5 फीसदी था।
यहां यह याद रखना चाहिए कि वर्ष 2023-24 के केंद्रीय बजट में राजस्व के एक मुख्य स्रोत के रूप में प्रत्यक्ष करों की भारी वृद्धि पर दांव लगाया गया है जिससे कि सरकार अपनी महत्त्वाकांक्षी पूंजी खर्च योजना को वित्त उपलब्ध करा सके जिसके योजना आकार में 36 फीसदी का इजाफा हुआ है। अप्रत्यक्ष करों में सिर्फ 8.5 प्रतिशत की वृद्धि का बजट अनुमान रखा गया लेकिन प्रत्यक्ष करों के विपरीत अप्रत्यक्ष कर, जो केंद्र को मिलते हैं, लक्ष्य से बहुत चूके नहीं हैं और उन्होंने करीब 7 फीसदी की वृद्धि दर हासिल की है।
Also read: Opinion: चीन के संकटग्रस्त होने की हकीकत
वर्ष 2023-24 की अप्रैल-जून की अवधि के दौरान सीमा शुल्क राजस्व में 27 प्रतिशत की जोरदार वृद्धि हुई है। साथ ही, वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में 11 प्रतिशत से अधिक का इजाफा हुआ है। उत्पाद शुल्क, जो कि ईंधन उत्पादों पर निर्भर है, में करीब 10 प्रतिशत की गिरावट आई। इसके लिए आप पिछली शुल्क कटौती को जिम्मेदार ठहरा सकते हैं जो कि पेट्रोलियम पदार्थों की घरेलू खुदरा कीमतों पर कच्चे तेल के ऊंचे दामों के असर को कम करने के लिए की गई थी।
हालांकि इस दलील में थोड़ा तो दम है कि पहले चार महीनों या पहली तिमाही में कर राजस्व आमतौर पर धीमी गति से ही बढ़ता है और वर्ष के शेष महीनों में थोड़ा जोर लगाना पड़ता है। पिछले कुछ सालों के पहले चार महीनों के आंकड़े देखे जाएं तो वे एक अलग तरह की समस्या की तरफ इशारा करते हैं।
वर्ष 2023 में अप्रैल से जुलाई की अवधि के दौरान सकल कर संग्रह वार्षिक लक्ष्य के 26.6 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया गया जो कि पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि में हासिल 28 प्रतिशत से कम है। यहां तक कि कोविड से पहले यानी अप्रैल से जुलाई 2019 की अवधि के दौरान सकल कर संग्रह वर्ष 2019-20 के वार्षिक संग्रह का करीब 27 प्रतिशत था। निगमित कर और व्यक्तिगत आयकर संग्रह में भी मोटे तौर पर इसी तरह का रुझान रहा। लिहाजा, यह विश्वास करने का कोई कारण नहीं है कि प्रत्यक्ष कर संग्रह की उच्च रफ्तार इस कमी को वर्ष 2023-24 के बाद के महीनों में पूरा कर देगी।
इसके बजाय एक बेहद जरूरत इस बात की व्यापक जांच करने की है कि प्रत्यक्ष कर संग्रह क्यों भारतीय अर्थव्यवस्था की जोरदार तेजी, जो 2023-24 की पहली तिमाही के जीडीपी के आंकड़ों में दिखी है, को प्रदर्शित करने में विफल रहा? कर विभाग पहले ही हरकत में आ चुका है और संभावित करवंचकों को नोटिस भेजने की योजना बना रहा है। लेकिन इससे यह समझने में मदद नहीं मिलेगी कि बढ़ते लाभ या आमदनी और प्रत्यक्ष करों के कम संग्रह के बीच यह जाहिर सा विरोधाभास क्यों है। और जरूरी भी नहीं कि इस कदम के नतीजे तुरंत ही मिल जाएं।
Also read: तकनीकी तंत्र: एक यूरोप में अलग-अलग चुनाव
केंद्र की समूची कराधान संरचना के मूल रुझान में बदलाव को समझना ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। वर्ष 2008-09 के बाद से केंद्र के कुल सकल कर संग्रह में प्रत्यक्ष करों का हिस्सा अप्रत्यक्ष करों की तुलना में हमेशा ही ज्यादा रहा है। इसके अपवाद दो वर्ष रहे हैं। एक, वर्ष 2016-17 (नोटबंदी वाला साल) और दूसरा, 2020-21 (कोविड-19 से बुरी तरह प्रभावित वर्ष)। लिहाजा, यह समझ आता है कि वित्त मंत्रालय का ध्यान प्रत्यक्ष करों की ओर ज्यादा हो गया है जिससे निगमित कर और व्यक्तिगत आयकर में संग्रह के बेहतर नतीजे मिले हैं, खासतौर पर पिछले दो साल में।
पिछले कुछ सालों में दो बड़े निर्णय लिए गए। एक निगमित कर की दरों में धीमे धीमे कटौती और छूट मुक्त कर व्यवस्था का विकल्प चाहने वाले व्यक्तिगत आयकरदाताओं के लिए कर की कम दरें। निगमित कर की दरों में चरणबद्ध कटौती वर्ष 2019-20 में पूरी हुई जबकि व्यक्तिगत आयकर की नई व्यवस्था पिछले वर्ष ही लागू हुई। यह संभव है कि निगमित कर की कम दरों से कंपनियों पर कर का प्रभाव कम हो गया हो जिससे वास्तविक संग्रह पर असर आया हो।
कंपनियों के लिए प्रभावी कर दर का वित्त मंत्रालय का विश्लेषण बताता है कि यह वर्ष 2014-15 में करीब 24.67 थी जो वर्ष 2020- 21 में पहले ही घटकर 22 फीसदी पर आ चुका है। प्रभावी कर दर के वर्ष 2021- 22 और 2022- 23 में और कम हो जाने की उम्मीद है। यह अध्ययन किए जाने की जरूरत है कि इसका निगमित कर पर क्या प्रभाव पड़ा और इसी को ध्यान में रखकर कराधान योजना के लक्ष्य तय किए जाने चाहिए।
प्रत्यक्ष कर संग्रह में तीन और रुझान महत्त्वपूर्ण हैं। इस अवधि के दौरान सेवा कंपनियों के लिए प्रभावी कर दर वर्ष 2014-15 के 27 प्रतिशत से घटकर 21 फीसदी रह गई जबकि विनिर्माण कंपनियों के लिए यह 22 प्रतिशत से बढ़कर 25 फीसदी हो गई। यह तब हुआ है जब नई विनिर्माण कंपनियों के लिए कर की दर में 15 प्रतिशत और सरचार्ज की कमी की गई है। विनिर्माण क्षेत्र की तुलना में सेवा क्षेत्र बेहतर कर रहा है, इसका भी निगमित कर संग्रह की रफ्तार पर विपरीत असर हो सकता है।
Also read: युवा भारतीयों का अंतहीन संघर्ष
एक और दिलचस्प आंकड़ा यह बताता है कि कैसे 500 करोड़ रुपये से अधिक का सालाना मुनाफा कमाने वाली कंपनियों की प्रभावी कर दर में सबसे ज्यादा कमी आई है और यह 2014-15 के 23 प्रतिशत से घटकर 2020-21 में 19 फीसदी रह गई है। केंद्र के कुल निगमित कर संग्रह में आधी से ज्यादा हिस्सेदारी उन कंपनियों की है जिनका सालाना लाभ 500 करोड़ रुपये से अधिक है। अगर उनकी प्रभावी कर दर और कम होती है तो समूचे कर संग्रह पर इसका असर काफी होगा।
तीसरी बात, व्यक्तिगत करदाताओं को दी जा रही छूट का हिस्सा लगातार बढ़ रहा है। यह हिस्सा 2014-15 में कुल व्यक्तिगत आयकर संग्रह का करीब 19 प्रतिशत था जो 2020-21 में बढ़कर 26 फीसदी से अधिक हो गया है। अगर ज्यादा लोग छूट मुक्त आयकर व्यवस्था का विकल्प चुनते हैं तो यह हिस्सा कम होने की संभावना है। पर क्या वास्तव में यह घटा है?
ज्यादा राजस्व जुटाने के लिए प्रत्यक्ष करों पर केंद्र का अधिक जोर स्वागत योग्य पहल है। लेकिन प्रत्यक्ष कर संग्रह में हाल में आई गिरावट के बाद सरकार को इस पर गंभीरता से सोचना चाहिए कि यह दौर अल्पकालिक है या फिर कर व्यवस्था में ज्यादा गहरी और बुनियादी खामियां हैं। प्रभावी कर दर की राह, सेवा कंपनियों के लिए प्रभावी कर दर में तीव्र कमी और व्यक्तिगत करदाताओं के लिए कर छूट में सतत वृद्धि ऐसे महत्त्वपूर्ण बिंदु हैं जिन पर गहनता से जांच की जरूरत है। महज जांच शुरू करने या पूछताछ करना ही काफी नहीं होगा और कई मामलों में तो यह उलटा भी पड़ सकता है।