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वैज्ञानिक प्रतिभाओं को हासिल करने का मौका

टीआरएल3 अवधारणा का प्रायोगिक सबूत है। शुरुआती चरण के ये टीआरएल 1 से टीआरएल 3 तक मिलकर बुनियादी और प्रारंभिक चरण के अनुप्रयुक्त शोध का गठन करते हैं।

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अजय शाह   
Last Updated- October 27, 2025 | 10:02 PM IST

अमेरिका द्वारा अपने बुनियादी अनुसंधान तंत्र को कमजोर किया जाना एक वैश्विक संकट उत्पन्न करता है लेकिन यह भारत के लिए एक अवसर भी पैदा करता है। बता रहे हैं अजय शाह और प्रल्हाद बुर्ली

विभिन्न समाजों को नवाचारी व्यवस्थाएं बनाने की आवश्यकता होती है जिनके जरिये युवा शोधार्थियों को संगठित किया जा सके, उन्हें वित्तीय मदद दी जा सके और उन्हें सही दिशा में बढ़ावा दिया जा सके। ऐसा ही एक मूल्यवान ढांचा है टेक्नॉलजी रेडिनेस लेवल यानी टीआरएल। नैशनल एरोनॉटिक्स ऐंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन यानी नासा की इस अवधारणा में किसी तकनीक की अवधारणा से लेकर उसके क्रियान्वयन तक को श्रेणीबद्ध किया गया है। टीआरएल1 बुनियादी सिद्धांत वाला प्रतिष्ठान है। टीआरएल2 तकनीकी अवधारणा का निर्माण है।

टीआरएल3 अवधारणा का प्रायोगिक सबूत है। शुरुआती चरण के ये टीआरएल 1 से टीआरएल 3 तक मिलकर बुनियादी और प्रारंभिक चरण के अनुप्रयुक्त शोध का गठन करते हैं। मझोले चरण में यानी टीआरएल 4-6 में प्रयोगशाला में वैधता देने और उसके बाद प्रासंगिक माहौल में एक उपयुक्त नमूना बनाने की प्रक्रिया की जाती है। यह शोध एवं विकास की बुनियाद है। टीआरएल 7-9 तक वास्तविक प्रणाली होती है जहां वाणिज्यिक उत्पादन शुरू किया जाता है।

यह वर्गीकरण केवल अकादमिक नहीं है। अलग-अलग टीआरएल के लिए अलग- अलग तरह के संगठनों और फंडिंग व्यवस्था की आवश्यकता होती है। टीआरएल 7 और उससे ऊपर की तकनीकों के लिए बाजार की राह एकदम स्पष्ट है। इस अंतिम चरण के विकास और उसे व्यावसायिक बनाने के लिए निजी पूंजी उपलब्ध होती है। जोखिम बहुत कम होता है। क्या हासिल होगा यह स्पष्ट होता है और समयसीमा अपेक्षाकृत छोटी होती है। दिक्कत शुरुआती चरणों में होती है।

टीआरएल 1-6 के लिए निजी फंडिंग बहुत कम मिलती है। यहां सरकारी फंडिंग की सख्त जरूरत है। पिछले 70 साल से अधिक समय से अमेरिकी सरकार दुनिया की इकलौती ऐसी सरकार है जो टीआरएल 1-6 के स्तर के शोध को मदद पहुंचाती है। उसने अमेरिकी विश्वविद्यालयों और प्रयोगशालाओं को फंडिंग की है जिससे ज्ञान को आगे बढ़ाने में मदद मिली है। इससे दुनिया को बहुत बेहतर उत्पाद मिले।

जीपीएस से लेकर एमआरएनए टीके तक तमाम नई तकनीक अमेरिकी सरकार के शोध एवं विकास व्यय से निकली हैं। वर्तमान में भारत हर साल लगभग 350 अरब डॉलर का सेवा निर्यात करता है, जिसका श्रेय अमेरिकी सरकार के अनुसंधान एवं विकास खर्च को जाता है जिसने सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (सीपीयू), यूनिक्स और इंटरनेट जैसी क्रांतिकारी तकनीकों को जन्म दिया। वर्ष2022 में अमेरिका की संघीय सरकार ने बुनियादी अनुसंधान के लिए 45 अरब डॉलर और अनुप्रयुक्त अनुसंधान के लिए 48 अरब डॉलर से अधिक का निवेश किया था। अब यह शोध तंत्र संगठित रूप से कमजोर किया जा रहा है। डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने टीआरएल 1-6 स्तर की फंडिंग को निशाना बनाते हुए कई कदम उठाए हैं जो लोकप्रियता के नाम पर अभिजात्य संस्कृति पर हमले का हिस्सा हैं।

अमेरिका के प्रस्तावित 2026 बजट में बुनियादी अनुसंधान में 34 फीसदी और कुल अनुसंधान में 22 फीसदी की कटौती का उल्लेख है। इसमें नैशनल साइंस फाउंडेशन यानी एनएसएफ के बजट में 55.7 फीसदी की कटौती करके उसे 8.8 अरब डॉलर से घटाकर 3.9 अरब डॉलर तथा नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (एनआईएच) के बजट में 39.9 फीसदी की कटौती कर उसे 46 अरब डॉलर से 27.9 अरब डॉलर करने की बात शामिल है। यही दो एजेंसियां हैं जो टीआरएल 1-2 स्तर के शोध के लिए प्राथमिक तौर पर जिम्मेदार हैं। टीआरएल 3-6 के स्तर पर भी हालात बेहतर नहीं हैं। ऊर्जा विभाग के विज्ञान कार्यालय के बजट में 14 फीसदी कमी की गई है। नासा के विज्ञान शोध विभाग के बजट में 46.6 फीसदी की कमी की गई और इसे 7.3 अरब डॉलर से घटाकर 3.9 अरब डॉलर कर दिया गया।

यह केवल बजट कटौती नहीं है। यह काम करने वाले संगठनों को बाधित करने का प्रयास है। शोध प्रयोगशाला किसी नल की तरह नहीं होती जिसे चालू-बंद किया जा सके। यह एक जटिल संगठन होता है जो कई टीम के सहारे काम करता है। जब फंडिंग में कमी की जाती है तो ये टीमें बिखर जाती हैं। स्नातकोत्तर छात्र, विशेष रूप से वे जो अपने पीएचडी के अंतिम चरण में होते हैं, विज्ञान क्षेत्र को छोड़ देते हैं।

विशेषीकृत अनुसंधान सुविधाएं बंद कर दी जाती हैं और धीरे-धीरे नष्ट होने लगती हैं। दीर्घकालिक शोध परियोजनाएं बीच में ही रोक दी जाती हैं, जिससे वर्षों का शोध निष्फल हो जाता है और मूल्यवान डेटा अचानक छोड़ दिया जाता है। इसमें हिस्टेरेसिस प्रभाव होता है यानी, अगर ट्रंप के बाद फंडिंग पूरी तरह बहाल भी कर दी जाए, तो भी ज्ञान और संगठनात्मक पूंजी पहले ही खो चुकी होती है। इन क्षमताओं को फिर से स्थापित करने में एक दशक या उससे अधिक समय लग सकता है। हम दुनिया के सर्वश्रेष्ठ नवाचार तंत्र के तेज और सुनियोजित विनाश को देख रहे हैं।

अमेरिकी सरकार की वैश्विक बुनियादी शोध में अत्यधिक भूमिका को देखते हुए, इन कटौतियों का दुनियाभर में ज्ञान उत्पादन पर नकारात्मक असर पड़ेगा। टीआरएल 1-6 स्तर की फंडिंग में जो अंतर पैदा होगा, उसे आसानी से भरा नहीं जा सकता। हालांकि निजी क्षेत्र से अपेक्षा की जाती है कि वह स्वच्छ ऊर्जा जैसे उच्च मांग वाले क्षेत्रों में निवेश बढ़ाएगाा विशेष रूप से अपने डेटा सेंटर्स के लिए। बहरहाल, यह उस प्रारंभिक टीआरएल कार्य की भरपाई नहीं कर सकता जिसे सरकार फंड करती है।

टीआरएल 7 स्तर पर मौजूद निजी पूंजी उन विचारों को व्यावसायिक रूप देने के लिए होती है जो टीआरएल 1-6 की शोध प्रक्रिया से निकलते हैं। परंतु जब ऐसे विचार ही कम होंगे, तो उन्हें व्यावसायिक रूप देने के अवसर भी घटेंगे। इसका असर आने वाले दशकों तक उत्पादकता वृद्धि और वैश्विक जीडीपी वृद्धि में गिरावट के रूप में दिखाई देगा। हमने ऐसा पहले भी होते हुए देखा है। 1920 के दशक में जर्मनी विज्ञान के क्षेत्र में विशेष रूप से भौतिकी और रसायन में निर्विवाद वैश्विक नेता था। लेकिन 1933 में सत्ता में आई नाजी सरकार एक लोकप्रिय सरकार थी, जिसने बहुसांस्कृतिक अभिजात वर्ग के खिलाफ जनाक्रोश को भुनाया।

अनुमान है कि जर्मनी के लगभग 25 फीसदी भौतिक विज्ञानी, जिनमें अल्बर्ट आइंस्टीन, मैक्स बॉर्न और लियो सिलार्ड जैसे 11 नोबेल पुरस्कार विजेता (पूर्व या भविष्य के) शामिल थे, जर्मनी छोड़कर चले गए। गॉटिंगेन विश्वविद्यालय जैसे विश्व के श्रेष्ठ अनुसंधान संस्थान नष्ट हो गए और इसमें सिर्फ एक साल लगा। 1934 में महान गणितज्ञ डेविड हिल्बर्ट ने नाजी शिक्षा मंत्री से कहा, ‘गॉटिंगेन में गणित? अब वहां ऐसा कुछ नहीं बचा है।‘ यह बताता है कि ज्ञान और नवाचार की नींव को कमजोर करना कितना नुकसानदायक हो सकता है।

उस दौर में अमेरिका शोधकर्ताओं के लिए उम्मीद का केंद्र बनकर उभरा और वे वहां जाकर काम कर सके। दुनिया भर की सरकारों और परोपकारियों को इन हालात को समझना चाहिए। उन्हें टीआरएल 1-6

के बीच फंडिंग की कमी को दूर करने के लिए आगे आना चाहिए। उन्हें अमेरिका छोड़ने वाले लोगों को वीजा, नौकरी और वित्तीय मदद देने के लिए तैयार रहना होगा, चाहे वे किसी भी देश के हों। भारत में एजेंडा होना चाहिए: (अ) अनुसंधान राष्ट्रीय शोध फाउंडेशन (अनुसंधान एनआरएफ) का निर्माण, ताकि भारत में सार्वजनिक या निजी क्षेत्र की शोध एवं विकास संस्थाओं को प्रभावी रूप से वित्तपोषित किया जा सके। (बी) टीआरएल 1-6 स्तर के अनुसंधान के लिए सार्वजनिक संसाधनों का आवंटन। (सी) वीजा नियमों में संशोधन, ताकि शोध प्रतिभाओं लिए भारत में प्रवास आसान हो सके।

1989 में जब सोवियत संघ का पतन हुआ तब भारत के पास ऐसा ही अवसर था कि वह पूर्वी यूरोप के शोधकर्ताओं को अपने साथ कर सके। हमने वह अवसर गंवा दिया क्योंकि भारत खुद कमजोर था और मुश्किलों से घिरा था। इस बार हमें बेहतर प्रदर्शन करना चाहिए।
(लेखक एक्सकेडीआर फोरम में क्रमश: शोधकर्ता और स्वतंत्र शोधकर्ता हैं)

First Published : October 27, 2025 | 9:55 PM IST