आप इस आलेख को एक विचार आलेख के रूप में पढ़ सकते हैं, एक युद्ध केंद्रित फिल्म की पटकथा के रूप में या फिर एक खबर के रूप में भी जिसे बेहद गहराई के साथ प्रस्तुत किया गया हो। लेकिन मैं इससे संबंधित रहस्य को यहीं समाप्त करते हुए आपसे आग्रह करूंगा कि आप ऐसा न करें। यह एक वैचारिक आलेख है और एक या दो शब्दों में इसका सार होगा: सावधान या खरीदार सावधान।
ऑपरेशन सिंदूर के लिए वीरता पुरस्कार की घोषणा स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर की गई थी। इसके तहत 15 वीर चक्र, 58 सेना पदक, 26 वायु सेना पदक और 5 नौ सेना पदक देने की घोषणा की गई। इसके अलावा कुल 290 मेंशन इन डिस्पैचेज की भी घोषणा की गई। एक हिस्सा जो नदारद था वह था प्रशस्तियों का। यह इंतजार 21 अक्टूबर की देर रात समाप्त हुआ जब समाचार कक्ष में खबर फैली कि सरकार ने प्रशस्तियों के साथ पुरस्कारों की पूरी घोषणा कर दी है। यह एक अहम खबर थी जो देर से सामने आई थी और मुझे महिला क्रिकेट विश्व कप का मैच देखना रोकना पड़ा। मुझे यह भी याद आया कि हमारे रक्षा संपादक चीन में थे और हमारे टाइम जोन अलग-अलग थे। बहरहाल मैंने जब उन्हें फोन किया उस समय चीन में रात के ढाई बज रहे होंगे। हम दोनों ही गजट अधिसूचना की लिंक नहीं खोल पा रहे थे। मैंने सोचा कि हमारे देश के इंटरनेट के लिए यह आम है।
ऐसे में मैंने आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) का सहारा लिया। मैंने ग्रोक से कहा कि वह गजट में छपी सभी प्रशस्तियां पढ़े और उन्हें मेरे समक्ष पेश करे। उसने मुझे ऐसे भंवर में उलझा दिया जहां से निकलना मुश्किल था। मैं इसमें गहरा और गहरा धंसता गया। मुझे आश्चर्य हो रहा था कि भारतीय मीडिया में किसी ने अब तक इस बात पर ध्यान क्यों नहीं दिया। मेरे मन में कुछ सवाल भी उठे। मसलन भारत सरकार ने अपनी प्रशस्तियों में इतना कुछ कब से लिखना शुरू कर दिया? मैंने अपने रक्षा संपादक को दोबारा फोन किया और उनसे पूछा कि क्या यह सब सच है? तब उन्होंने मुझे सलाह दी कि मैं इसका स्क्रीन शॉट रख लूं। मैंने जो स्क्रीन शॉट लिए वे करीब तीन मीटर लंबे थे। ग्रोक ने जो प्रशस्तियां मेरे सामने प्रस्तुत कीं उनमें से सबसे मजेदार इस प्रकार हैं:
वीर चक्र प्राप्त करने वाले आठ लड़ाकू विमान चालकों ने अपने मिशन को बहादुरी के साथ पूरा किया लेकिन वायु सेना पदक जीतने वाले पायलटों समेत कई के विमानों को मिसाइलों ने नुकसान भी पहुंचाया। ग्रोक ने ‘विमानों के पास विस्फोट से क्षति’ और ‘कई मिसाइलों के निशाने पर होने के बावजूद’ जैसी कई बातें बार-बार लिखी थीं। यह भी लिखा है कि एक युवा फ्लाइट लेफ्टिनेंट गुरुत्व बल को धता बताते हुए कई मिसाइलों से बच निकला और अपनी त्वरित सोच की बदौलत दूसरे विमानों से टकराने से भी बच सका।
एस-400 के बेड़े की कमान संभाल रहे ग्रुप कैप्टन के साहस को रेखांकित किया जाता है क्योंकि उनकी सटीक सोच और दृढ़ संकल्प ने एक संभावित तबाही को टाल दिया। अब बात करते हैं मरणोपरांत वायु सेना पदक से समानित ‘कॉरपोरल’ सुरेंद्र कुमार की जो एस-400 के तकनीशियन थे। वे हमले में क्षतिग्रस्त हुए एक रडार की मरम्मत कर रहे थे तभी घायल होने के बाद शहीद हो गए।
सेना को मिले आधा दर्जन पुरस्कार उन अधिकारियों और जवानों को दिए गए जो दुश्मन के क्षेत्र में बहुत अंदर जाकर कार्रवाई कर रहे थे। कुछ तो बहावलपुर और मुरीदके के करीब से भारतीय वायु सेना के हवाई हमलों को मदद कर रहे थे।
एक विमान चालक ने विमानरोधी तोपों और मैनपैड मिसाइलों के हमलों के बीच मुरीदके पर बमबारी की। एक अन्य विमान चालक ने आतंकी ठिकानों के लिए सामान ले जा रहे दस्ते पर हमला किया। एक अन्य ने आतंकियों के बंकरों पर सटीक हमला किया। इनमें से हर एक में शामिल लोगों के नाम भी दिए गए।
वायु सेना के जिन जवानों को सम्मानित किया गया है उनमें से एक को युद्ध में क्षतिग्रस्त एस-400 की मरम्मत करने, एक को मिसाइल हमले में बचने के लिए, एक विमान चालक को महज एक वृक्ष के बराबर ऊंचाई पर उड़ते हुए हमला करने के लिए, एक स्क्वाड्रन लीडर को अत्यंत नीचे उड़ते हुए सीधी लड़ाई (डॉगफाइट) में पाकिस्तानी वायु सेना के मिराज विमान को मार गिराने के लिए सम्मानित किया गया। कइयों को क्षतिग्रस्त रोहिणी रडारों या हमले के बीच आकाश मिसाइल बैटरियों की मरम्मत करने के लिए पुरस्कृत किया गया।
इसने मुझे बताया कि मेंशन इन डिस्पैच के तहत आने वाले लगभग सभी नाम गोपनीयता के कारण छिपाए गए हैं। कुछ तकनीशियनों ने तोपों के हमलों के बीच जेट विमानों को तैयार किया या उनकी मरम्मत की, ‘एक महिला कंट्रोलर ने लड़खड़ाते राफेल विमान को जीरो विजिबिलिटी क्षेत्र में पहुंचाया।’
मेंशन इन डिस्पैच में शामिल कई सैन्य अधिकारी वे हैं जिन्होंने एक्सकैलीबर स्मार्ट शेल्स के साथ स्पेशलाइज्ड आर्टिलरी को दूसरी कमान से स्थानांतरित किया। मैं इन प्रमाणों का समापन नौ सेना पदक से सम्मानित, कमांडर प्रिया देसाई (जिनका कमीशन नंबर दिया गया है) के उदाहरण के साथ करूंगा जिन्होंने कलवरी पनडुब्बी स्क्वाड्रन का नेतृत्व करते हुए पाकिस्तानी अगोस्टा-बी का पीछा किया और उसे लगातार दबाव में बनाए रखा।
अब तक मैं समझ चुका था कि यह सब झूठ है। इनके गलत होने के तमाम संकेत थे। सीधे नजर आने वाली डॉगफाइट हुई ही नहीं। सीमा पार जाकर पैदल सेना या विशेष बलों द्वारा हमला करने की कोई खबर नहीं आई। क्या सरकार ने लड़ाकू विमानों, रडार या मिसाइल बैटरियों, खासकर एस-400 को किसी क्षति की बात स्वीकार की? क्या भारतीय नौ सेना में वरिष्ठ महिला अधिकारियों की कमांडिंग वाली पनडुब्बी स्क्वाड्रन है? आखिर सरकार द्वारा कुछ पुरस्कृतों के नाम घोषित करने और ज्यादातर के छिपाने का क्या तुक हैँ?
अपने दौर में हमने समाचार संपादकों से यह सबक सीखा था कि जो खबर बहुत अच्छी नजर आ रही हो उसे सच मत मानना। यही वजह है रिपोर्टर अपनी खोजी प्रवृत्ति हमेशा सक्रिय रखते हैं। लेकिन एआई ऐसी सफाई से फर्जीवाड़ा करे तो पत्रकार क्या करें?
सुबह तक गजट का लिंक खुल गया और हमने पाया कि 15 वीर चक्र के अलावा कोई प्रशस्ति जारी ही नहीं की गई। इसके अतिरिक्त सभी नाम भी मौजूद थे। कोई नाम नहीं छिपाया गया था। वायु सेना के एनसीओ सुरेंद्र कुमार को मरणोपरांत वायु सेना पदक दिया गया था लेकिन वह मेडिकल अटेंडेंट थे। उनके साथ एक और नाम (जीवित वायु सैनिक) था। अब मैंने ग्रोक से पूछा कि मुझे गजट में कमांडर प्रिया देसाई नहीं मिल रही हैं। क्या यह उसका कारनामा है?
मुझे जवाब मिला, ‘इस भ्रम के लिए माफी चाहता हूं।’ उसने कहा कि प्रिया देसाई नाम का कोई नहीं है। उसने गलती सुधारने के लिए मुझे धन्यवाद भी दिया। मैंने अब कॉरपोरल सुरेंद्र कुमार का जिक्र किया और उसने वही प्रशस्ति दोहरा दी। उसकी भाषा इतनी सरकारी लग रही थी कि मुझे वायु सेना से इसके बारे में पूछना पड़ा। वहां से उत्तर मिला कि ऐसा कुछ भी जारी नहीं किया गया है। मैंने ग्रोक को बताया कि कुमार मेडिकल अटेंडेंट और सार्जेंट थे और उनकी रैंक कॉरपोरल से ऊपर थी। ग्रोक ने फिर से माफी मांग ली और सही जानकारी दी कि उन्हें और उनके साथियों को उधमपुर में एक मेडिकल आउटपोस्ट पर हमले के बाद अपने साथियों को बचाने के लिए सम्मानित किया गया। यहां हम कुछ अनुमान आसानी से लगा सकते हैं।
पहला, एआई चालाक ही नहीं बल्कि बहुत अधिक चालाक है। वह आपको तथ्य देने का वादा करता है लेकिन आपकी जरूरत के मुताबिक कहानियां गढ़ सकता है। वह आपका ध्यान खींचना चाहता है। उस पर ध्यान देना मतलब समय को खर्च करना। बहरहाल, वह चाहे जितना चतुर हो जाए, कभी पत्रकारों की जगह नहीं ले सकता है।
दूसरा, एआई दुष्प्रचार, फेक न्यूज और सूचनाओं के साथ छेड़खानी को एक अलग स्तर पर ले जा रहा है। हम एक्स (पहले ट्विटर) पर जाकर अपना गुस्सा जताते हैं कि हमारे समाचार चैनलों ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान क्या किया। हम इसे व्हाट्सऐप विश्वविद्यालय बताकर इसका मखौल उड़ाते हैं। लेकिन ग्रोक के साथ हमारी यह भिड़ंत बताती है कि हमने तो मानो अभी कुछ देखा ही नहीं है।
तीसरा, एआई को आसानी से मूर्ख बनाया जा सकता है। तमाम सनसनीखेज बातें मसलन जिन पर पाकिस्तान हमें यकीन दिलाना चाहेगा। मसलन, एस-400 का क्षतिग्रस्त होना, वायु सेना के विमानों का क्षतिग्रस्त होना, हवाई अड्डों पर हमले आदि की बातें और हथियारों के ब्योरे इतने विस्तार से आए जो कभी हमारी सरकार ने जारी ही नहीं किए गए थे।
ये कभी भारतीय मीडिया में भी नहीं आए। तो ग्रोक ने यह जानकारी कहां से जुटाई? असल में ग्रोक के साथ इस तरह छेड़छाड़ की गई है कि वह आपको बातें मिर्च-मसाला लगाकर बताए। ऐसी बातें जिन पर पाकिस्तान में चर्चा होती है। और उसने इसे विश्वसनीय बनाने के लिए इसके साथ भारतीय सैनिकों की तारीफ के पुल भी बांध दिए गए। एआई ने लड़ाई को नया मुकाम दे दिया है। पांचवी पीढ़ी यानी फिफ्थ जेनरेशन की जंग तो हम देख ही रहे हैं, इस नई चुनौती को हम ‘सिक्स्थ जेनरेशन’ की लड़ाई का नाम दे सकते हैं।