इलस्ट्रेशन- बिनय सिन्हा
गूगल ने अगले पांच साल में 15 अरब डॉलर की राशि खर्च करके विशाखापत्तनम में एक डेटा सेंटर बनाने की प्रतिबद्धता जताई है। इस एआई आधारित केंद्र से करीब दो लाख नए रोजगार तैयार होंगे। यह भारत की करीब 4 लाख करोड़ डॉलर के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वाली अर्थव्यवस्था पर महत्त्वपूर्ण असर डालेगा। अन्य वैश्विक बहुराष्ट्रीय कंपनियां मसलन एमेजॉन और माइक्रोसॉफ्ट तथा एयरटेल और रिलायंस जैसी स्थानीय दिग्गज कंपनियां भी डेटा सेंटर में काफी निवेश कर रही हैं। यानी देश में बड़ी तादाद में डेटा सेंटर स्थापित होने जा रहे हैं।
दुनिया में अन्य जगहों पर भी ऐसा ही हो रहा है। हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर जैसन फर्मन का अनुमान है कि वर्ष 2025 की पहली छमाही में अमेरिका की जीडीपी वृद्धि का 92 फीसदी हिस्सा एआई से संबंधित निवेश के कारण संभव हुआ। यह राशि डेटा सेंटर में गई। इनमें नेटवर्किंग उपकरण, सर्वर, कूलिंग प्रणाली, फाइबर ऑप्टिक संपर्क और विद्युत क्षमता आदि सभी शामिल हैं। ये निवेश वास्तविक हैं लेकिन किसी को भी यह बात ठीक तरह से पता नहीं है एआई दीर्घावधि में समग्र वृद्धि में किस प्रकार योगदान करेगा। यकीनन राष्ट्रीय अंकेक्षण विधियों और मानकों के कारण शायद इनका सटीक आकलन कर पाना मुश्किल हो।
इस बारे में केवल अटकलें ही हमारे पास हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ के अनुसार एआई दुनिया भर में 40 फीसदी नौकरियों को प्रभावित करेगा। गोल्डमैन सैक्स के मुताबिक इससे अगले 10 वर्षों में वैश्विक जीडीपी में करीब 7 लाख करोड़ डॉलर का इजाफा होगा। मैकिंजी के अनुसार इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था में 17.1 लाख करोड़ डॉलर से 25.6 लाख करोड़ डॉलर का इजाफा होगा जो चीन के जीडीपी से भी अधिक है। ये आंकड़े इससे अधिक भी हो सकते हैं।
सितंबर में नीति आयोग ने अनुमान जताया था कि एआई उत्पादकता और क्षमताओं में इजाफा करके 2035 तक भारतीय अर्थव्यवस्था में 500 से 600 अरब डॉलर तक का अतिरिक्त योगदान देगा। सबसे तगड़ा असर सूचना प्रौद्योगिकी, वित्त और वित्त संबंधी सेवाओं पर होगा लेकिन इसके अलावा अनेक उद्योगों में भी एआई आधारित वृद्धि में तेजी आएगी।
सितंबर में ही गोल्डमैन सैक्स की तीन सदस्यों वाली एक रिपोर्ट में अनुमान जताया गया कि एआई से संबंधित गतिविधियों ने 2022 के अंत में चैटजीपीटी के आगमन के बाद से अमेरिका की ‘वास्तविक जीडीपी’ में 160 अरब डॉलर का योगदान किया। इसका मुख्य फोकस एआई अवसंरचना में अमेरिकी कंपनियों द्वारा किए गए लगभग 400 अरब डॉलर के निवेश पर है।
आयात को घटाने और महंगाई में आई तेज बढ़ोतरी को समायोजित करने के बाद, गोल्डमैन सैक्स का अनुमान है कि 2023 से जून 2025 के बीच एआई ने अमेरिका की जीडीपी में 160 अरब डॉलर का योगदान दिया। हालांकि, इसका अधिकांश हिस्सा आधिकारिक आंकड़ों में दिखाई नहीं देता, क्योंकि इसका प्रभाव ‘मध्यवर्ती’ था, जबकि आधिकारिक डेटा में केवल अंतिम मांग को ही शामिल किया जाता है।
वर्ष 2023-25 के बीच आधिकारिक तौर पर एआई से संबंधित गतिविधियों पर करीब 45 अरब डॉलर की राशि व्यय की गई जो 29 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था के वार्षिक योगदान का केवल 0.1 फीसदी हिस्सा है। अमेरिका की अन्य रिपोर्ट भी एआई अधोसंरचना में हाल के दिनों में भारी भरकम निवेश की बात कहती हैं। एआई पर होने वाला पूंजीगत व्यय जनवरी से जून 2025 के बीच जीडीपी वृद्धि में 1.1 फीसदी का योगदान करने वाला रहा। परंतु वास्तविक योगदान शायद जीडीपी के आंकड़ों में सही ढंग से नजर न आए क्योंकि वृद्धि संबंधी योगदानों की प्रकृति मध्यवर्ती है।
भौतिक और तकनीकी निवेशों से परे सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि एआई को विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं में लागू करने से जो सकारात्मक बाह्य प्रभाव उत्पन्न होते हैं, वे अत्यंत मूल्यवान हैं। इन सभी डेटा सेंटर्स से उम्मीद की जाती है कि वे विभिन्न क्षेत्रों में नवाचार, उत्पादकता और कार्यकुशलता में वृद्धि को प्रेरित करेंगे और साथ ही मौलिक वैज्ञानिक अनुसंधान में भी योगदान देंगे।
उम्मीदें बहुत अधिक हैं और यही वजह है कि एनवीडिया और ओपनएआई जैसी कंपनियां इतना अधिक मूल्यांकन हासिल कर पा रही हैं और हर कोई एआई में इस कदर निवेश करने को उत्साहित है। अगर ये उम्मीदें पूरी नहीं हुईं तो यह एक बबल साबित होगा। उस हालत में तमाम डेटा सेंटर सही मायनों में वांछित उद्देश्यों को पूरा नहीं कर पाएंगे। वे फिजिकल ब्रिज के डिजिटल समकक्ष बनकर रह जाएंगे – चमकदार कलाकृतियां जो बहुत कम वास्तविक उद्देश्य की पूर्ति करती हैं।
नोबेल पुरस्कार विजेता डारोन ऐस्मोगलू ने ‘द सिंपल मैक्रोइकनॉमिक्स ऑफ एआई’ नामक एक हालिया पर्चे में इस विषय पर एक दिलचस्प बात कही है। उनका अनुमान है कि अमेरिका के श्रम बाजार में वर्तमान में किए जा रहे सभी कार्यों में से केवल लगभग 5 फीसदी कार्य ही अगले 10 वर्षों में लाभकारी रूप से एआई द्वारा किए जा सकते हैं। हालांकि एआई इस छोटे से हिस्से के अलावा कई अन्य कार्य भी कर सकता है, लेकिन लागत-लाभ विश्लेषण से पता चलता है कि अधिकांश कार्यों के लिए एआई को लागू करना और इस्तेमाल करना मौजूदा गैर-एआई तरीकों की तुलना में अधिक महंगा साबित होगा।
उनका अनुमान है कि एआई हर वर्ष अमेरिका की जीडीपी वृद्धि में लगभग 1 फीसदी का योगदान देगा। यह योगदान महत्त्वपूर्ण तो है, लेकिन अधिकांश उम्मीदों की तुलना में उतना क्रांतिकारी नहीं है। अगर ऐस्मोगलू सही हैं, और यही प्रभाव दुनिया भर में देखने को मिलता है, तो जैसे-जैसे हकीकत स्पष्ट होगी, एआई में निवेश कम हो सकता है। दूसरी संभावना यह हो सकती है कि ऐस्मोगलू गलत हैं और उन्होंने एआई के सकारात्मक प्रभाव को काफी कम आंका है। यही वह बात है जिस पर हर निवेशक दांव लगा रहा है।