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नेपाल की उथल-पुथल, भारत के लिए सबक: दक्षिण एशियाई एकीकरण पर पुनर्विचार

दक्षिण एशिया को यूरोपीय संघ की तरह एक साथ लाने के प्रयास से पीछे हटना एक भूल है

Last Updated- September 19, 2025 | 11:19 PM IST
Nepal Protests
नेपाल सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और कार्यालयों का मुख्यालय 'सिंह दरबार' प्रदर्शनकारियों द्वारा आग लगाए जाने के बाद | फोटो: PTI

हाल ही में श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में हुई हिंसक घटनाओं का एक बड़ा कारण युवा पीढ़ी के लिए विकास और रोजगार के अवसरों की कमी रहा है। यह युवा पीढ़ी अधिक शिक्षित है, क्षेत्रीय और वैश्विक रुझानों से अधिक परिचित है और इंटरनेट एवं सोशल मीडिया की बदौलत आपस में और व्यापक दुनिया के साथ अधिक जुड़ी हुई है। इंटरनेट एवं सोशल मीडिया के जरिये ऐसी भावनाएं और बवंडर उत्पन्न होते हैं जिनका कोई वास्तविक मकसद नहीं होता है मगर वे निराशा और आक्रोश व्यक्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं।

एक अनुमान के अनुसार नेपाल के 73 फीसदी घरों में मोबाइल फोन हैं और 55 फीसदी आबादी नियमित रूप से इंटरनेट का उपयोग करती है। अधिकांश विकासशील देशों की तरह यह अनुपात उस पीढ़ी के लिए अधिक होगा जिसे अब ‘जेनजी’ (जेनेरेशन ज़ी) कहा जा रहा है। यह एक सशक्त पीढ़ी है, लेकिन हमेशा इतनी सक्षम नहीं है कि उनकी ऊर्जा राष्ट्र निर्माण, आर्थिक एवं सामाजिक सुधार के कार्यों और उनमें मानवता का हिस्सा होने की भावना जागृत करने में इस्तेमाल किया जा सके।

इसके लिए गुणवत्तापूर्ण राजनीतिक नेतृत्व की आवश्यकता है मगर अफसोस की बात है कि यह उपलब्ध नहीं है। यह समझना बेहद जरूरी है कि हमारे उप-महाद्वीप के पड़ोसियों एवं कुछ अन्य देशों जैसे इंडोनेशिया में जो उथल-पुथल हुई है वह लोकतांत्रिक देश हैं, चाहे उनमें कितनी भी खामियां क्यों न हों।  

ऐसा लगता है कि लोकतंत्र का झुकाव कुलीन तंत्र और कभी-कभी तानाशाही की ओर हो जाता है, भले ही उनकी चुनावी प्रणाली सक्रिय बनी रहे। चुनावों में धन बल के बढ़ते उपयोग और राजनीतिक ओहदों का इस्तेमाल अमीर बनने तथा अगले चुनाव में इस्तेमाल के लिए और अधिक धन जुटाने के लिए करने से समृद्ध और ताकतवर अभिजात वर्ग आम जनमानस में लोकप्रियता से अलग-थलग होने लगता है। इसमें आश्चर्य करने जैसी कोई बात नहीं है। 

नेपाल में वायरल हुए ‘नेपो-बेबी’ मीम ने देश के राजनीतिक अभिजात वर्ग की संतानों की अमीर और शानदार जीवनशैली की ओर ध्यान खींचा जबकि दूसरी तरफ देश के साधारण युवाओं के पास कोई नौकरी या आर्थिक अवसर नहीं थे। आम तौर पर ऐसा होता है कि यदि लोगों के विरोध का खतरा उत्पन्न होता है तो उन्हें संकीर्ण राष्ट्रवाद या पहचान से जुड़ी चिंता में उलझा दिया जाता है। नेपाल में भी हमने यह देखा है जहां दोनों देशों के बीच मजबूत आम जन संबंध और गहरी सांस्कृतिक समानताएं कभी-कभी जानबूझकर भारत विरोधी भावनाओं के शिकंजे में आ जाती हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि नेपाल में हालात इस कदर बिगड़ गए थे कि इस बार के उथल-पुथल में आमतौर पर दोहराया जाने वाला भारतीय साजिश का पक्ष गायब था। ऐसा लगता है कि राजनीतिक औजार के रूप में हालात से ध्यान हटाने की कवायद की भी अपनी सीमाएं हैं। 

इससे पहले कि एक विपरीत मानसिकता हावी हो जाए जिसमें पड़ोसी देशों में हो रही उठापटक में हमेशा किसी विदेशी ताकत का हाथ देखा जाता हो तो इस मानसिकता की तह तक जाना जरूरी है। ऐसा लगता है जैसे उन देशों के लोग सभी प्रकार की शक्तियों से रहित हैं। यह रवैया इस बात का कोई भी गंभीर और गहन विश्लेषण करने से रोकता है कि भारत के हितों के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण इस परिधि में कौन सी ताकतें काम कर रही हैं।

नेपाल में राजनीतिक बदलाव के बीच भारत का नजरिया क्या होना चाहिए? पहली बात, नेपाल के लोगों की भावनाओं के साथ जुड़े रहें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के पदभार ग्रहण करने का स्वागत कर और काठमांडू की सड़कों से भारी मलबा हटाने में मदद करने के लिए नेपाली युवाओं की प्रशंसा कर सही दिशा में कदम बढ़ाया। हिंसक दंगाइयों, लुटेरों और नेपाली युवाओं के बीच अंतर करना जरूरी था। इससे एक सकारात्मक संकेत जाता है। 

दूसरी बात, इस प्रक्रिया में खुद को शामिल करने की ललक से बचा जाना चाहिए। ऐसे समय आते हैं जब प्रत्यक्ष तौर पर नहीं दिखना अधिक विवेकपूर्ण नीति होती है। मगर मांगे जाने पर समर्थन और सलाह देने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। तीसरी बात, पुनर्निर्माण और आर्थिक पुनरुद्धार के भारी भरकम कार्य में सहयोग करने के लिए तैयार रहें क्योंकि इसमें कोताही बरतने से एक सफल राजनीतिक बदलाव पटरी से उतर जाएगा और फिर एक उथल-पुथल की स्थिति पैदा हो जाएगी। 

हमें मालदीव और श्रीलंका में हाल में हुए राजनीतिक बदलाव के प्रति भारत की प्रतिक्रिया की तुलनात्मक सफलता से सीख लेनी चाहिए। श्रीलंका को उसके गहरे आर्थिक एवं वित्तीय संकट के अंधेरे दिनों में भारत के त्वरित समर्थन से काफी मदद मिली। वहां भारत के प्रति असहज दिखने वाली एक राजनीतिक पार्टी के सत्ता में आने के बावजूद दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों में अधिक सकारात्मक मोड़ आए हैं। मालदीव में भारत ने उस समय पहल नहीं कि जब ‘भारत को बाहर करो’ अभियान ने वर्तमान राष्ट्रपति को सत्ता में पहुंचा दिया। इसके बजाय निकटता और परस्पर आर्थिक सहयोग के तर्क को हावी होने दिया। फिलहाल दोनों देशों के संबंध संतुलित लग रहे हैं। 

बांग्लादेश और नेपाल दोनों के मामले में यह आलोचना हुई है कि भारत बेखबर रहा और चेतावनी की अनदेखी की गई। यह भी आरोप लगाया गया कि पड़ोसी देश में पिछले कुछ समय से चल रहे घटनाक्रम पर ध्यान देने या उसे रोकने या फिर अंदाजा लगाने की कोशिश नहीं की गई। इस पर चर्चा की जा सकती है कि भारत के पास ऐसी राजनीतिक घटनाओं को रोकने की शक्ति और प्रभाव हैं या नहीं। लेकिन यह कई स्तरों पर निरंतर राजनीतिक जुड़ाव की कमी को जरूर उजागर करता है कि भारत को अपने आसपास हो रहे घटनाक्रम से भिज्ञ रहने की आवश्यकता है। नेतृत्व स्तर सहित राजनीतिक सहभागिता, आकस्मिक होती है, जो अधिकतर संकट के कारण उत्पन्न होती है। बाकी समय अधिकारियों के स्तर पर ही संबंधों का प्रबंधन किया जाता है। मानव संसाधन और साधन दोनों की कमी के कारण अफसरशाही से प्रबंधन भी कारगर नहीं रह गया है। ‘पड़ोस प्रथम’ एक आकांक्षा बनी हुई है, लेकिन हमारी विदेश नीति में यह बात परिलक्षित नहीं हो पा रही है। 

भारत के अपने पड़ोस के साथ संबंधों के द्विपक्षीय और क्षेत्रीय दोनों आयाम हैं। भारतीय उप-महाद्वीप एक एकल भू-राजनीतिक, भू-आर्थिक और सुरक्षा क्षेत्र है। राजनीतिक सीमाओं के पार जातीय और पारिवारिक रिश्तों-नातों के विस्तार के साथ एक साझा इतिहास और संस्कृति है। भारत क्षेत्र का सबसे बड़ा और सबसे शक्तिशाली देश होने के नाते क्षेत्रीय एकीकरण से बहुत कुछ हासिल कर सकता है। यूरोपीय संघ या कम से कम आसियान (दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्रों का संघ) की तर्ज पर दक्षिण एशिया को एक साथ लाने के आधे-अधूरे प्रयास हुए हैं। लेकिन अब ऐसा लगता है कि इस प्रयास से पूरी तरह मुंह मोड़ लिया गया है। यह एक गलती है। ‘पड़ोस प्रथम’ नीति के लिए द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देने के साथ-साथ एक क्षेत्रीय परिप्रेक्ष्य भी जरूरी है।

(लेखक पूर्व विदेश सचिव हैं।)

First Published - September 19, 2025 | 11:19 PM IST

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