भारतीय अर्थव्यवस्था वित्त वर्ष 2019-20 की दूसरी तिमाही में लॉकडाउन प्रभावित पहली तिमाही की गहरी खाई से निकल आई है। महंगाई समायोजित सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) सितंबर 2020 में समाप्त तिमाही में जून 2020 तिमाही के मुकाबले 23.2 फीसदी अधिक था। यह इसी तुलनात्मक आधार पर जून 2020 तिमाही में 29.3 फीसदी लुढ़का था। इस गिरावट का स्तर असामान्य था।
आम तौर पर जून तिमाही में जीडीपी उससे पिछली तिमाही के मुकाबले करीब 3-4 फीसदी सिकुड़ता है। इसकी वजह यह है कि जीडीपी शृंखला पर सीजन का असर पड़ता है। इस सीजन आधारित जीडीपी शृंखला का एक रोचक पहलू यह है कि वर्ष 2013 के बाद सबसे बड़ी तिमाही दिसंबर से मार्च बन गई है। हालांकि गिरावट की तिमाही में कोई बदलाव नहीं हुआ है और वह जून में समाप्त तिमाही ही है। अगर सामान्य समय भी रहता तो भी जून तिमाही में पिछली तिमाही की तुलना में गिरावट के आसार थे।
लेकिन जून 2020 तिमाही इसलिए असामान्य थी क्योंकि कोविड-19 के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए देश में सख्त लॉकडाउन लगाया गया। हालांकि उस तिमाही में जीडीपी 29.3 फीसदी सिकुड़ा, लेकिन जीवीए (सकल मूल्य वर्धन) में कम (24.8 फीसदी) सिकुडऩ रही। इसमें सितंबर 2020 तिमाही में सुधार भी 19.4 फीसदी ही रहा।
जीडीपी शृंखला की तुलना में जीवीए शृंखला में मौसमी कारक काफी कम स्पष्ट है। हालांकि दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जीवीए में आय को मापा जाता है, जबकि जीडीपी में खर्च को मापा जाता है। एक तरफ जीडीपी और जीवीए शृंखला और दूसरी तरफ रोजगार शृंखला के बीच संबंध पर गौर करना रोचक है। हम जानते हैं कि भारत में इनके बीच संबंध कमजोर है। हम ज्यादातर देखते हैं कि जीडीपी और जीवीए में अच्छी बढ़ोतरी होती है, जबकि रोजगार स्थिर रहता है या गिरता भी है। भारत में कई दशकों तक रोजगार रहित वृद्धि दिखी है। शुरुआत में इसने ढांचागत बदलाव दिखाया क्योंकि लोग खेती को छोड़कर कारखानों और कार्यालयों में आए। इसका शुद्ध असर यह था कि रोजगार में लगभग कोई वृद्धि नहीं हुई, लेकिन 1990 के दशक में खेती से कारखानों के रुख के ढांचागत बदलाव से श्रम उत्पादकता बढ़ी। लेकिन हाल में ऐसा कोई ढांचागत बदलाव नजर नहीं आता है। इसके बावजूद रोजगार में कोई बढ़ोतरी नहीं हो रही है, लेकिन जीडीपी में काफी अच्छी बढ़ोतरी हो रही है।
जून, 2020 तिमाही में जब वास्तविक जीडीपी पिछली तिमाही की तुलना में 29.3 फीसदी सिकुड़ा और वास्तविक जीवीए 24.8 फीसदी संकुचित हुआ तो उसी तुलना के हिसाब से रोजगार 21 फीसदी कम हुआ। यह रोचक है। अगर बीते समय मेंं अर्थव्यवस्था उस अनुपात में अतिरिक्त श्रम के बिना अच्छी खासी वृद्धि हासिल करने में सफल रही तो इसने उस अनुपात मेंं श्रमिकों को गंवाए बिना संकुचन की क्षमता को भी दर्शाया है।
सितंबर 2020 तिमाही के जीवीए/जीडीपी के नतीजे और रोजगार आंकड़े कई तरीकों से रोचक हैं। इस तिमाही की आकर्षक सुधार प्रक्रिया में श्रम में भी अच्छी बढ़ोतरी हुई है। इस तिमाही में रोजगार जून, 2020 तिमाही की तुलना में 23.2 फीसदी बढ़ा है। यह इसी अवधि में वास्तविक जीडीपी में विस्तार के बराबर है। यह भी 23.2 फीसदी रहा था। वास्तविक जीवीए वृद्धि तुलनात्मक रूप से कम (19.4 फीसदी) रही।
जीवीए की तुलना में रोजगार में अधिक वृद्धि का मतलब है कि सितंबर 2020 तिमाही में श्रम उत्पादकता घटी है। यह कारखानों से कृषि में श्रम के पलायन का नतीजा है। कारखाने और कार्यालय बंद हैं या उनके परिचालन का आकार घट गया है और असंगठित गैर-कृषि क्षेत्र में भी रोजगार के अवसर कम हो गए हैं, इसलिए ज्यादातर श्रमिकों वापस कृषि कार्यों में जुट गए हैं। इसके नतीजतन कृषि में रोजगार बढ़ा है।
निर्माण स्थलों, कारखानों, वर्कशॉप और बाजारों से कृषि की तरफ उल्टा पलायन जून 2020 तिमाही में शुरू हुआ। इस तिमाही में कृषि क्षेत्र में रोजगार इससे पहले की मार्च 2020 तिमाही के मुकाबले 90 लाख बढऩे का अनुमान है। इसका मतलब है कि कृषि में रोजगार 7.9 फीसदी बढ़ा है। हालांकि जून 2020 तिमाही में कृषि के महंगाई समायोजित जीवीए में 14.3 फीसदी का अहम संकुचन आया। कृषि में श्रमिकों की अतिरिक्त आवक से कृषि उपज में बढ़ोतरी नहीं हुई। उल्टे इसमें गिरावट आई। साफ तौर पर कृषि रोजगार में बढ़ोतरी महज छिपी हुई बेरोजगारी थी।
हालांकि सितंबर 2020 तिमाही के दौरान अर्थव्यवस्था में अहम सुधार आया है, लेकिन इस तिमाही में कारखानों से कृषि क्षेत्र में उल्टा पलायन नहीं रुका। कृषि में रोजगार सितंबर 2020 तिमाही में जून 2020 तिमाही के मुकाबले 13 लाख बढऩे का अनुमान है। रोजगार में एक फीसदी बढ़ोतरी हुई मगर सितंबर 2020 तिमाही में कृषि क्षेत्र में वास्तविक जीवीए वृद्धि जून 2020 तिमाही के मुकाबले 16.4 फीसदी कम रही।
यह सही है कि देश में अच्छे दक्षिण-पश्चिम मॉनसून से खरीफ की फसल का उत्पादन शानदार रहा है। सितंबर 2020 तिमाही में महंगाई समायोजित कृषि जीवीए पिछले साल की इसी तिमाही के मुकाबले 3.4 फीसदी के सम्मानित स्तर पर रहा। लेकिन पिछले साल की इसी तिमाही के मुकाबले रोजगार में वृद्धि काफी अधिक 10.6 फीसदी हुई है।
इस समय भारत में कृषि क्षेत्र में श्रम की कम उत्पादकता को मद्देनजर रखते हुए यह जरूरी है कि श्रम बल को फिर से कारखानों, कार्यालयों और बाजारों में लाया जाए। विनिर्माण क्षेत्र के तुलनात्मक रूप से शानदार प्रदर्शन से बंधी उम्मीद अस्थायी साबित हो सकती है क्योंकि इसमें से ज्यादातर सितंबर 2020 तिमाही में सूचीबद्ध कंपनियों के असाधारण लाभ को दर्शाता है। ये निकट भविष्य में टिकाऊ नजर नहीं आते हैं। श्रम को एक बेहतर सुधार की कहानी की दरकार है।
