यह विरोधाभासों से भरा महीना रहा है। डिज्नी को भारत में आए हुए 30 साल हो चुके हैं और अब करीब 83 अरब डॉलर हैसियत वाली यह कंपनी अपने कारोबार को बेचने या दूसरी कंपनी के साथ गठजोड़ करने के बारे में सोच रही है।
इस बीच, पहले सोनी पिक्चर्स नेटवर्क्स के नाम से जाने जाने वाली कल्वर मैक्स एंटरटेनमेंट ने अपने सफर को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई है। इसकी मौजूदगी भी भारत में लगभग 30 वर्षों से है। कैलिफोर्निया की कल्वर सिटी (डिज्नी के बरबैंक मुख्यालय के करीब) में 86 अरब डॉलर की सोनी कॉर्प की यह सहायक मनोरंजन कंपनी मौजूद है और इसने वर्ष 2021 के दिसंबर महीने में ज़ी एंटरटेनमेंट के साथ अपने विलय की घोषणा की।
इस विलय को भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग की मंजूरी मिल गई है, लेकिन ज़ी के संस्थापक सुभाष चंद्रा के पहले के सौदों के कारण यह कानूनी अड़चनों में फंस गया है। जब ऐसी अटकलें लगाई जा रही थीं कि यह विलय नहीं हो सकता है, तब सोनी ने इस साल मई में जापान में कंपनी के राजस्व से जुड़ी एक बैठक में भारत के मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) एन पी सिंह को मंच पर लाकर इसका जोर-शोर से समर्थन किया।
वर्ष 1995 में भारत में आने वाली कंपनी सोनी का मार्च 2022 में समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष में करीब 6,700 करोड़ रुपये का राजस्व रहा और यह भारत में डिज्नी के राजस्व के आधे से भी कम है, लेकिन यह लाभ में है। इसके 26 चैनलों में सोनी, मैक्स, सोनी सब, अपनी श्रेणी में अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। फिल्म कारोबार में भी इसकी हिस्सेदारी अच्छी है और इसके स्ट्रीमिंग ऐप, सोनी लिव (स्कैम 1992, रॉकेट बॉयज, गुल्लक जैसी सीरीज) के इस साल जनवरी में 2.4 करोड़ से अधिक ग्राहक थे।
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यह सब बेहद मजबूत और बड़े पैमाने की स्थानीय प्रोग्रामिंग, प्रबंधन और निर्णय लेने के चलते संभव हुआ है। ज़ी के साथ इसके विलय से यह भारत की शीर्ष तीन मीडिया कंपनियों में शामिल हो जाएगी जिसकी टेलीविजन दर्शकों की संख्या में 27 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी होगी।
वास्तव में कोई भी मीडिया निवेशक आपको बता सकता है कि भारत इतना आसान बाजार नहीं है। इसके कारोबार का दायरा बड़ा है लेकिन प्रति इकाई नकदी का स्तर बेहद खराब है और इसके अलावा इसमें मार्जिन कम है और इसके लिए बहुत प्रयास और धैर्य की आवश्यकता है। सोनी और रूपर्ट मर्डोक की 21 सेंचुरी फॉक्स (तब न्यूज कॉरपोरेशन) दोनों ने जल्द ही इसकी पहचान कर ली थी।
मर्डोक ने 1993 में रिचर्ड ली से स्टार टीवी खरीदने के बाद से ही यहां कारोबार शुरू करने की अपनी कोशिशें बंद नहीं कीं। इसमें सात साल लग गए लेकिन स्टार के ‘कौन बनेगा करोड़पति’ (केबीसी) के साथ अच्छे प्रदर्शन की शुरुआत की। इस प्रक्रिया में इसने उन दिनों के भारत में नई तरह की मीडिया की पेशकश की जिसमें भारत का पहला म्यूजिक चैनल, चैनल (वी) (1994), इसका पहला समाचार चैनल, स्टार न्यूज (1998), पहला निजी रेडियो स्टेशन, रेडियो सिटी (2001) शामिल है।
इसने प्रो कबड्डी लीग के माध्यम से भारत के एक पुराने खेल को नया रूप देने की कोशिश की और बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता अमिताभ बच्चन की स्टारडम को बरकरार रखने में भी मदद की। इसके अलावा टेलीविजन के नियमों को बेहतर बनाने के लिए इसने उसे बदल दिया। इसके बाद से इसने शायद ही कभी अपने नेतृत्वकर्ता की स्थिति छोड़ी है। इसके 60 चैनल हैं जिनकी भारत के सभी टीवी दर्शकों में 20 फीसदी की हिस्सेदारी है। करीब 4 करोड़ सबस्क्राइबर और करीब 8.8 करोड़ विजिटर के साथ डिज्नी+हॉटस्टार शीर्ष पांच स्ट्रीमिंग ऐप्स में से एक है।
मर्डोक का कद जिस तरह बढ़ा और स्टार का निर्माण जिस तरीके से हुआ उसकी वजह से ही यह उपलब्धि हासिल कर सकी। वैश्विक स्तर पर विवादास्पद खबरों के लिहाज से नहीं बल्कि मनोरंजन के लिहाज से फॉक्स एक बेहद उद्यमी कंपनी है। यह जिस बाजार में काम करता है, उसमें इसका प्रसार होता है। स्टार ने स्थानीय प्रबंधकों को काम पर रखा, उन्हें स्वतंत्रता देने के साथ ही उन्हें बड़े दांव लगाने के लिए प्रोत्साहित भी किया है।
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स्टार के हर सीईओ ने मेरी किताब ‘द मेकिंग ऑफ स्टार इंडिया (पेंगुइन रैंडम हाउस, 2019)’ में इस बात का समर्थन किया है। वर्ष 2018 में, जब फॉक्स की मनोरंजन संपत्ति वैश्विक स्तर पर डिज्नी को 71.3 अरब डॉलर में बेची गई थी तब स्टार इंडिया इस सौदे का हिस्सा था। इसका मूल्य तब लगभग 15 अरब डॉलर आंका गया था और इसको लेकर भारी उत्साह था। रॉबर्ट इगर, जो हाल ही में डिज्नी के सीईओ बनकर लौटे थे, वह उन दिनों कंपनी के प्रमुख थे और उन्होंने अपने साक्षात्कारों और अपनी किताब में बाजार के साथ-साथ स्टार इंडिया के तत्कालीन सीईओ उदय शंकर की सराहना की थी।
यह डिज्नी का भारत में तीसरा प्रवेश है। इसने 1993 में केके मोदी समूह के साथ गठजोड़ कर देश में पांव जमाने की कोशिश की थी। हालांकि इसमें खटास जैसी स्थिति बन गई। इसने रोनी स्क्रूवाला के यूटीवी में एक हिस्सेदारी खरीदी और बाद में इसका अधिग्रहण किया। हालांकि इसका हश्र भी कुछ नहीं निकला।
वर्ष 1996 से 2004 तक स्टार एशिया के प्रमुख रहे ब्रूस चर्चिल ने 2018 में स्टार बुक के लिए साक्षात्कार के दौरान कहा, ‘बहुत सी अमेरिकी कंपनियां अंतरराष्ट्रीय बाजारों को बिक्री के अवसर के रूप में देखती हैं। न्यूज कॉर्प की शुरुआत ऑस्ट्रेलिया में हुई थी और इसने ब्रिटेन में एक सफल कारोबार बनाया और फिर इसने अमेरिका का रुख किया। हम जानते थे कि हम स्थानीय चीजें तैयार कर एक अंतरराष्ट्रीय कारोबार खड़ा कर सकते हैं। हम ऑस्ट्रेलिया के कागजात ब्रिटेन लेकर नहीं गए। कुछ कंपनियां अमेरिकी दृष्टिकोण को अपनाने की वजह से अधिक दोषी हैं।’
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यह इस बात का सबसे अच्छा स्पष्टीकरण है कि डिज्नी यहां आने के तीन दशक बाद भी भारत में संघर्ष क्यों कर रही है। दरअसल कंपनी बेहद, अमेरिका-केंद्रित है और बाहर के किसी भी बाजार को केवल अपनी मौजूदा बौद्धिक संपदा के लिए अतिरिक्त राजस्व के अवसर के रूप में देखा जाता है। विडंबना यह है कि इसका डिजाइन भारत जैसे स्थानीय बाजार के लिए तैयार नहीं किया जाता है।
सभी वैश्विक प्रोग्रामिंग उपलब्ध होने के बावजूद, करीब 90 फीसदी टिकट सिनेमाघरों में बिकते हैं और टीवी तथा ओटीटी पर दर्शकों का एक बड़ा वर्ग, भारतीय कीमत के लिहाज से जुड़ा है। डिज्नी ने भारत में दिग्गज और सक्रिय कंपनी का अधिग्रहण किया लेकिन इसने इससे कुछ भी हासिल नहीं किया और न ही इसने (संभवतः) इस बात की सराहना की कि यहां तक पहुंचने के लिए इसे क्या करना पड़ा।
इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि अधिग्रहण और उसके बाद की परिचालन से जुड़ी अव्यवस्था ने इस पटकथा में अहम भूमिका निभाई। बरबैंक के नियंत्रण में होने वाले छोटे-छोटे निर्णयों से तंग आकर कई वरिष्ठ प्रबंधकों ने पद छोड़ दिया है। किसी का कहना है, ‘स्टार केवल एक कॉलोनी बन गई है।’
इसने अधिक स्पष्ट रूप से दिखाया है कि वार्नर, सोनी, पैरामाउंट जैसी अन्य अमेरिकी मीडिया कंपनियों ने काफी अच्छा प्रदर्शन क्यों किया है, जबकि डिज्नी एक सौदे से दूसरा करार के बीच ही भटक रही है। इसने 30 वर्षों में इस बाजार के बारे में कुछ भी नहीं सीखा है।
कई विश्लेषकों ने और मीडिया लेख में यह तर्क दिया गया है कि डिज्नी फिल्मों के बजाय अब स्ट्रीमिंग पर जोर दे रही है और इसी वजह से यह निर्णय लिया गया है। मुफ्त डीटीएच सेवा, डीडी फ्रीडिश की तेज रफ्तार को देखा जाए तो यह भारत के लिए सच नहीं हो सकता है। लेकिन हमें इस बात को कुछ वक्त के लिए छोड़ देना चाहिए।
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अगर डिज्नी भारत में स्ट्रीमिंग कारोबार से जुड़ी रहती है तब इसकी प्रबंधन शैली के बारे में क्या कहा जा सकता है? अगर वह अमेरिकी आईपी को भुनाए जाने पर जोर देती है, आकर्षक फिल्मों और खेल से जुड़े इवेंट के प्रसारण अधिकारों के लिए बोली नहीं लगाती है और इसके बजाय इस बात पर जोर देती रहती है कि बरबैंक से ही लोगो और रंग में बदलाव लाने के फैसले की मंजूरी ली जाए तब आखिरकार यह डिज्नी +हॉटस्टार कहां खड़ा होगा?
जब डिज्नी इंडिया का स्टार के साथ विलय हुआ तब यह स्टार के आकार का दसवां हिस्सा थी। विलय ने इसे भारत की दूसरी सबसे बड़ी मीडिया कंपनी बना दी। अगर डिज्नी के लिए अधिग्रहण के बाद से चार वर्षों में एक बड़े बाजार की प्रमुख लाभदायक कंपनी के साथ कारोबार भुनाना मुश्किल हो गया है तब इसके बारे में क्या कहा जा सकता है कि यह छोटे स्ट्रीमिंग कारोबार के साथ कैसा प्रदर्शन करेगी?