सार्वजनिक या लोक नीतियों से यही अपेक्षा होती है कि उनमें जमीनी अनुभव का समावेश हो। वैसे तो इस कवायद में परामर्श की प्रक्रिया अपनाई जाती है और नीतिगत दस्तावेजों में अच्छे विचार झलकते भी हैं। फिर भी इन दस्तावेज में कतिपय कमियां रह जाती हैं। जैसे उनके लिए किस प्रकार का कौशल चाहिए। विभिन्न राज्यों के जमीनी हालात को लेकर क्या भिन्नता हो। तकनीकी विकल्प क्या होना चाहिए। वित्तीय संसाधनों का नियोजन एवं आवंटन कैसे होगा और जनता किस प्रकार नीतियों की क्रियान्वयन प्रक्रिया के मूल में होगी। समय पर गुणवत्तापरक परिणामों के लिए भरोसेमंद सार्वजनिक तंत्र तैयार करने के लिए ऐसे सार्वजनिक प्रबंधन को अपनाना आवश्यक होगा, जो अंतिम एवं निर्णायक पड़ाव से जुड़ी चुनौतियों का तोड़ निकालने में सक्षम हो। इसका सरोकार वितरण तंत्रों को दुरुस्त करने और गुणवत्तापरक सार्वजनिक सेवाओं की गारंटी से है।
जब केंद्रीकृत प्रयासों की बात आती है तो वे क्षेत्र और असुरक्षित लगते हैं, जिनकी भूमिका वंचित वर्गों की भलाई से जुड़ी है, क्योंकि उनकी राह में अंतिम पड़ाव पर ज्यादा चुनौतियां आती हैं। यह महसूस किया जाना चाहिए कि गरीबों की भलाई के लिए जो कमियां नजर आती हैं, उन्हें दूर करने के लिए सार्वजनिक स्तर पर कुछ प्रयासों की आवश्यकता है। सूचना विसंगतियों के मामले में बाजार की नाकामी से जुड़ा स्वास्थ्य क्षेत्र एक बड़ा उदाहरण है, लिहाजा उसके जवाब में एक सुसंचालित सार्वजनिक प्रणाली की उपस्थिति आवश्यक है। सिंगापुर के शैक्षणिक तंत्र को ही लें। वह सार्वजनिक ढांचे से जुड़ा है और अपनी उत्कृष्टता के लिए जाना जाता है। ऐसे में हम सार्वजनिक प्रणालियों और उनकी उत्कृष्टता को अनदेखा नहीं कर सकते। खासतौर से यह देखते हुए कि वंचित वर्गों को विभिन्न क्षेत्रों में उनकी सेवाएं मिलती हैं।
कमजोर परिसंपत्ति आधार अक्सर वंचित वर्गों की तकनीकी लाभ का फायदा उठाने की क्षमताओं को अशक्त करता है। कोविड काल में गरीबों और दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों को गुणवत्ता वाली ऑनलाइन शिक्षा में आई बाधाओं पर पहले ही काफी लिखा जा चुका है। आयुष्मान भारत की प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएम-जय) में जिन राज्यों ने द्वितीयक एवं तृतीयक कैशलेस उपचार सुविधाओं के लिए वंचित परिवारों की सूचनाओं को सुगठित कर एवं अंतिम पड़ाव की बाधाओं को दूर किया, उनका प्रदर्शन भी बेहतर रहा। देश के 63,974 गांवों में सात आधारभूत सुविधाएं प्रदान करने वाले ग्राम स्वराज अभियान ने भी व्यापक सामुदायिक संपर्क-सक्रियता के माध्यम से इनमें से कुछ चुनौतियों से निपटने का प्रयास किया है। वंचन वास्तव में पहुंच को घटाता है। ऐसे में बेहतर परिणामों के लिए सार्वजनिक प्रबंधन को सामुदायिक संपर्क की शक्ति को महसूस करना होगा। लोगों के नजरिये को ढालने के लिए आवश्यक होगा कि सार्वजनिक नीतियां मानव संसाधन चुनौतियों को प्राथमिकता दें। औपनिवेशिक भारत की डिलिवरी मशीनरी असल में नियामकीय स्वरूप की थी, न कि विकास कार्यों को गति देने वाली। शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में सूचना प्रौद्योगिकी, नियोजन, लोक निर्माण, अस्पताल और स्वास्थ्य प्रबंधन में नए प्रकार के कौशलों के सूत्रपात से एक नई शुरुआत भी की गई। जहां तमाम राज्य नए प्रकार के कौशलों की आवश्यकता को स्वीकार तो करते हैं, लेकिन उन्होंने अभी तक उनकी भर्तियों को औपचारिक रूप नहीं दिया है। बेहतर मानव विकास नतीजों के लिए हमें मजिस्ट्रेट की तुलना में मैनेजर यानी प्रबंधकों की अधिक आवश्यकता है। भले ही तकनीक ने लंबे समय से कायम कई चुनौतियों, मसलन पारदर्शिता, समयबद्धता, साक्ष्य-आधारित लाभार्थी चयन आदि-इत्यादि का समाधान किया हो, लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए कि तकनीक साधन है कोई साध्य नहीं। प्रत्येक तकनीकी हस्तक्षेप के साथ अंतिम पड़ाव पर कारगर सुविधाओं-समर्थन की भी उतनी ही आवश्यकता होती है। आईटी-प्रत्यक्ष लाभ अंतरण और आधार से जुड़े भुगतानों के लिए स्थानीय स्तर पर भी गंभीर प्रयासों की आवश्यकता पड़ती है, जिनमें फ्रंटलाइन वर्कर्स, पंचायत, महिलाओं के स्वयं सहायता समूह बेहतर परिणाम सुनिश्चित करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति सभी स्तरों पर व्यापक परामर्श के बाद तैयार हुए नीतिगत दस्तावेज का एक उम्दा उदाहरण है। हालांकि इसकी सफलता इसके वास्तविक क्रियान्वयन की राह में आने वाली चुनौतियों से निपटने में इच्छाशक्ति पर निर्भर करेगी। इसमें शिक्षक और शिक्षक विकास, समुदाय एवं स्कूल संपर्क, लचीलापन और स्कूल की आवश्यकतानुसार नवाचार और वित्तीयन के विकेंद्रीकरण की आवश्यकता होगी। सार्वजनिक तंत्र के संचालन को सुधारने के लिए कई नए कौशल समुच्चय आवश्यक हैं। अपेक्षित परिणामों के लिए उपयुक्त क्षमता विकास भी जरूरी है।
हमें नियमन को लेकर नजरिया पूरी तरह बदलना होगा। मानकों से कोई समझौता किए बिना उसकी भूमिका को नकारात्मक से सुविधाजनक बनाना होगा। नियामकीय चुनौतियों के समाधान के लिए सामूहिक परामर्श-संवाद प्रक्रिया अपनाई जाए। स्वीकृति या अस्वीकृति के लिए अधिक पारदर्शी कारण गिनाए जाएं। अनुपालन की प्रक्रिया सुगम बनाई जाए। ये सभी पहलू गुणवत्ता और विश्वास पर आधारित नियमन प्रक्रिया का मार्ग प्रशस्त करेंगे। तमिलनाडु में एक समुन्नत स्वास्थ्य काडर है। ऐसे में तमाम स्वास्थ्य संबंधी पहलों को वह अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर तरीके से करने में सक्षम है। इसी प्रकार जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान जैसे नए संस्थानों की स्थापना के प्रयास से कुछ बुनियादी मुद्दे उभरते हैं कि दूरदराज के इलाकों में प्रभावी शिक्षक विकास के लिए संकाय गुणवत्ता कैसे कायम रखी जाए। असल में हमें समाधान से पहले समस्या को समझना होगा। हमें उन नागरिक समाज संगठनों के साथ साझेदारी की संभावनाएं तलाशनी होंगी, जिन्हें शिक्षक विकास में महारत हासिल हो।
यदि हम किसी व्यक्ति के समक्ष उपलब्ध विकल्पों की स्वतंत्रता प्रयोग के मामले में मानव विकास को अभिन्न अंग मानते हैं तो सार्वजनिक सेवाओं तक पहुंच को लेकर कोई समझौता नहीं हो सकता। वास्तविक अंतर पैदा करने के लिए ऐसे सभी प्रयासों में उत्कृष्ट कौशल और क्षमताओं को भुनाना आवश्यक होगा। प्रत्येक भारतीय नागरिक में विद्यमान मानवीय संभावनाओं के विकास और उनके लिए अवसर सृजित करने हेतु उत्कृष्टता के पर्याय व्यक्तियों एवं संस्थानों से साझेदारी करनी होगी। आजीविका मिशन के अंतर्गत महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों से जोड़ने पर जोर देते हुए उनके साथ चुनी हुई पंचायतों की शक्ति को संयुक्त करना होगा। भारतीय संविधान की ग्यारहवीं और बारहवीं अनुसूची के दायरे में विकेंद्रीकरण के साथ मानव संसाधन पर जोर भी प्रभावी शासन के लिए आवश्यक होगा। जहां तकनीक जवाबदेही के लिए विकल्प उपलब्ध कराती है तो सामाजिक ऑडिट सामुदायिक निगरानी को संस्थागत रूप प्रदान करता है।
सार्वजनिक प्रबंधन को इस चुनौती का समाधान करना होगा कि कोई भी गरीब परिवार पीछे न छूट जाए। बेहतर से बेहतर तकनीक के बावजूद वास्तविक लाभार्थियों का चयन चुनौतियों भरा है। सामाजिक-आर्थिक गणना इस दृष्टि से एक बढ़िया शुरुआत है, जिसमें वंचित होने के पैमाने पर लाभार्थियों का सहजता से चयन संभव है, भले ही उनकी जाति, पंथ या धर्म कुछ भी हो। फिर भी इसमें कुछ वंचित परिवारों के छूटने की आशंका शेष रह जाती है। ऐसे में ग्राम सभा के माध्यम से सहभागिता-सक्रियता आधारित पहचान अभियान और तकनीक की जुगलबंदी इस चुनौती का समाधान करने में सक्षम होगी। यही कुछ अंतिम पड़ाव से जुड़ी चुनौतियां हैं, जिनका समाधान करना आवश्यक है ताकि हम सुनिश्चित हो सकें कि कोई भी पीछे नहीं छूट जाएगा।
(लेखक सेवानिवृत्त लोक सेवक हैं। यहां व्यक्त विचार निजी हैं।)