‘हमने सप्ताहांत पर आपात ढंग से काम किया, अंशधारकों को सुना और सिलिकन वैली बैंक यूके के ग्राहकों को भरोसा और सुरक्षा मुहैया कराने के लिए एक समुचित उपाय पर काम किया।’
‘मुझे यह कहने में खुशी हो रही है कि हम एक हल पर पहुंच गए हैं।’
‘अच्छी खबर यह है कि एसवीबी यूके के ग्राहक आज से अपनी जमा राशि निकाल पाएंगे और बैंकिंग कामकाज सामान्य तरीके से होंगे।’
‘ऐसा इसलिए कि सिलिकन वैली बैंक को एचएसबीसी को बेच दिया गया है…’
‘इसमें करदाताओं का पैसा शामिल नहीं है और ग्राहकों की जमा राशि की रक्षा की गई है…’
यूनाइटेड किंगडम (यूके) के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक जो खुद को टेक गीक (तकनीक के जानकार) मानते हैं, उन्होंने यह सब लिंक्डइन पर पोस्ट किया।
यह विशुद्ध रूप से बचाव का प्रयास था। अमेरिका के 16वें सबसे बड़े बैंक सिलिकन वैली बैंक (एसवीबी) का शुक्रवार 10 मार्च को पतन हो गया। जमाकर्ताओं में पैसे निकालने की होड़ मच गई और 2008 के वॉशिंगटन म्युचुअल के पतन के बाद अमेरिकी इतिहास में यह दूसरी बार था जब इतना बड़ा बैंक नाकाम हुआ।
फेडरल डिपॉजिट इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन ने समय नहीं गंवाया। उसने एसवीबी के ग्राहकों को शांत करने के लिए कदम उठाए। परदे के पीछे सौदेबाजी हुई और सोमवार को बैंक में सामान्य कामकाज हुआ।
भारत में भी वैसा ही दृश्य है। यहां संकटग्रस्त बैंकों के ग्राहकों की रातों की नींद उड़ जाती है जबकि भारतीय रिजर्व बैंक संबंधित बैंक के कामकाज को रोकने के बाद परदे के पीछे सौदेबाजी करके कम से कम समय में सौदेबाजी होने की घोषणा करता है।
जुलाई 2004 में ऐसा ही हुआ था जब ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स ने ग्लोबल ट्रस्ट बैंक लिमिटेड का अधिग्रहण किया था और भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) जो बैंकों के एक समूह का नेतृत्व करता है, उसने मार्च 2020 में येस बैंक को उबारा। परंतु यह समानता यहीं समाप्त हो जाती है। एसवीबी के पास जनवरी में 200 अरब डॉलर की संपत्तियां थीं और वह काफी बड़ा बैंक है।
अधिकांश बैंक जहां उच्च जोखिम वाली स्टार्टअप का समर्थन नहीं करते वहीं एसबीवी ऐसा करता था। लेकिन उसका पतन इसकी वजह से नहीं हुआ। बैंक नाकाम हुआ क्योंकि वह ब्याज दरों के जोखिम का बचाव नहीं कर सका।
भारतीय स्टार्टअप समेत कई टेक स्टार्टअप ने अपने फंड एसवीबी में रखे थे जिसने दीर्घकालिक प्रतिभूतियों में निवेश किया था। ब्याज दरों में इजाफे के साथ इन परिसंपत्तियों पर प्रतिफल बढ़ने लगा और मूल्य घटने लगा।
मार्च 2022 में अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने दिसंबर 2018 के बाद पहली बार नीतिगत दरें बढ़ाईं। बीते एक साल में उसने 4.5 से 4.75 फीसदी का इजाफा किया और आगे भी इजाफा हो सकता है। ऐसे में एसवीबी के पोर्टफोलियो में सरकारी प्रतिभूतियों का मूल्य कम हुआ।
जब निवेश का असुरक्षित घाटा बढ़ने लगा तो एसवीबी में अपना पैसा रखने वाली टेक स्टार्टअप का भरोसा डगमगाने लगा। जब ऐसी स्टार्टअप में निवेश कम हुआ तो उन्हें भी अपना पैसा निकालना पड़ा क्योंकि उनको परिचालन व्यय के लिए पैसे की जरूरत थी। एसवीबी के पास परिसंपत्तियां बेचने के अलावा कोई चारा नहीं था। वह घाटे में चला गया।
एक के बाद एक घटनाएं घटीं। घाटे के कारण पूंजी में कमी आने लगी लेकिन बैंक नई पूंजी नहीं जुटा पा रहा था। स्टार्टअप में पैसे निकालने की होड़ लग गई। इस प्रकार 40 वर्ष पुराने बैंक का पतन हो गया। उसने उच्च जोखिम वाली टेक स्टार्टअप का प्रबंधन कर लिया लेकिन ब्याज दर के जोखिम से नहीं बच पाया। यह परिसंपत्ति-जवाबदेही के बेमेल होने का मामला था।
दुनिया के अन्य देशों की तरह गत सप्ताह भारत के शेयर बाजारों पर भी असर पड़ा और बैंक शेयरों के दाम गिरे। यह सितंबर 2008 के लीमन ब्रदर्स होल्डिंग इंक जैसा मामला था। इतनी घबराहट का माहौल था कि एक सदी से अधिक पुराना एसवीसी कोऑपरेटिव बैंक को विज्ञापन जारी करके कहना पड़ा कि वह एक भारतीय बैंक है और उसका अमेरिका के एसवीबी बैंक से कोई लेनादेना नहीं।
भारतीय बाजारों ने जरूरत से ज्यादा प्रतिक्रिया दी और भारतीय बैंकों को यकीनन एसवीबी प्रकरण से सबक भी लेने चाहिए। भारतीय और अमेरिकी बैंकों में काफी अंतर है लेकिन जब जोखिम का गलत आकलन हो तो नतीजे एक जैसे हो सकते हैं।
असुरक्षित ऋण, मॉर्गेज और सूक्ष्म, लघु और मझोले उपक्रमों को दिए गए ऋण में समस्याएं नजर आनी शुरू भी हो गई हैं। अगर कोई कर्जदार 90 दिन से अधिक समय तक कर्ज की किस्त नहीं चुका पाता तो वह फंसे हुए कर्ज में बदल जाता है। 90 दिन तक यह संकटग्रस्त लेकिन मानक ऋण बना रहता है।
कुछ प्रकार के ऋण में तनाव नजर आने लगा है। इसकी प्राथमिक वजह है ब्याज दरों में इजाफा। ऐसे सभी ऋण फ्लोटिंग दर वाले ऋण हैं जो या तो आरबीआई की रीपो दर जैसे किसी बाहरी मानक से जुड़े होते हैं या बैंक की मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड से।
एसबीआई के मुख्य अर्थशास्त्री सौम्यकांति घोष ने हाल ही में कहा कि आरबीआई की नीतिगत दरों में मई 2022 से अब तक 2.5 फीसदी का इजाफा हुआ है। इस बीच खुदरा निवेशकों के लिए ब्याज की लागत 16 फीसदी बढ़ी। कर्जदारों को या तो ऊंची किस्त चुकानी होंगी या ऋण की अवधि बढ़ानी होगी।
लेकिन एक ऋण की अवधि में इजाफा करने की सीमा है और वह कर्जदार के कर्ज और उसकी आयु पर निर्भर करती है। मिंट की एक खबर के मुताबिक दरों में इजाफे के बाद आवास ऋण की अवधि बढ़कर 50 वर्ष तक हो गई है।
एक लाख से अधिक उपक्रमों पर हुए एक सर्वेक्षण के मुताबिक बीते पांच सालों में तीन चौथाई एमएसएमई का कारोबार या तो स्थिर है या फिर कम हुआ है। या फिर वे बंद हो गई हैं। बीते पांच सालों में प्रतिक्रिया देने वाली कंपनियों में से 72 फीसदी या तो स्थिर थीं, उनका काम कम हो रहा था या वे बंद हो चुकी थीं।
केवल 28 फीसदी ने कहा कि उनका कारोबार बढ़ रहा है। यह चेतावनी की तरह है। इंडियन एक्सप्रेस ने सर्वे के हवाले से कहा कि 76 फीसदी प्रतिभागियों ने कहा कि उन्हें मुनाफा नहीं हो रहा है।
ब्याज की उच्च लागत ने सस्ते आवास क्षेत्र को भी प्रभावित किया है। उद्योग जगत के विश्लेषक प्रॉप टाइगर के आंकड़ों के मुताबिक जनवरी से सितंबर तिमाही में कुल बिकने वाले मकानों में किफायती आवासों की संख्या कोविड पूर्व के स्तर से 11 फीसदी घट गई। 2019 में देश के सात सबसे बड़े अचल शक्ति बाजारों में कुल बिकने वाले मकानों में 51 फीसदी सस्ते मकान थे।
कुछ बैंकों ने जोखिम प्रबंधन के सख्त कायदे लागू करने के पहले ऋण बढ़ाने के लिए उदारतापूर्वक कर्ज बांटा था। उन्हें आने वाले समय में कीमत चुकानी होगी। जनवरी 2022 से जनवरी 2023 के बीच बैंकिंग उद्योग के पर्सनल लोन में 20.4 फीसदी वृद्धि हुई। इसे मॉर्गेज और टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं के लिए लिया गया ऋण शामिल है। इस अवधि में बड़े उद्योगों का ऋण 8.5 फीसदी बढ़ा।
एसवीबी का पतन आरबीआई पर दबाव नहीं डालेगा। हालांकि भारत में दरों में इजाफे का चक्र अमेरिका जैसा तेज नहीं है, लेकिन इसे कम करने का शोर बढ़ रहा है। हालांकि मुद्रास्फीति भी तय दायरे के बाहर चली गई है। क्या अप्रैल में मौद्रिक नीति की अगली बैठक में आरबीआई बढ़ोतरी पर लगाम लगाएगा? हमें प्रतीक्षा करनी होगी।