इस साल जनवरी में बेरोजगारी की दर में गिरावट आई और यह 1.3 प्रतिशत अंकों की महत्त्वपूर्ण गिरावट थी। यह दर दिसंबर 2021 के 7.9 प्रतिशत से घटकर जनवरी 2022 में 6.6 प्रतिशत हो गई। इसके साथ ही बेरोजगारों की संख्या में 66 लाख की भारी गिरावट आई। यह सब सुनना बहुत अच्छा लगता है। लेकिन, बेरोजगारी दर में गिरावट अधिक लोगों को नौकरी मिलने से नहीं आई। बेरोजगारों की संख्या में 66 लाख की कमी का मतलब यह नहीं है कि इन्हें रोजगार देने के लिए 66 लाख नौकरियों के मौके तैयार किए गए बल्कि निराश होकर इतनी तादाद में लोगों ने नौकरियों की तलाश करनी बंद कर दी। परिणामस्वरूप उन्हें बेरोजगार के रूप में नहीं गिना गया और वे श्रम बल के समूह से बाहर हो गए।
जनवरी में बेरोजगारों को काम देने के लिए रोजगार के मौके में विस्तार नहीं हुआ। इसके विपरीत 33 लाख रोजगार के मौके कम हुए। श्रम आंकड़ों में सबसे महत्त्वपूर्ण संकेतक रोजगार दर है जिसमें जनवरी महीने में कमी आई और यह दिसंबर के 37.6 प्रतिशत से कम होकर जनवरी में 37.2 प्रतिशत हो गई।
अगर श्रम बल की भागीदारी दर की बात करें तो यह दिसंबर 2021 के 40.9 प्रतिशत से घटकर जनवरी 2022 में 39.9 प्रतिशत हो गई। ये दोनों ही बातें श्रम बाजारों में वास्तविक दबाव को दर्शाती हैं। बेरोजगारी दर इस दबाव को दर्शाने में विफल रही। श्रम बाजार के दबाव का अंदाजा लेने के लिए बेरोजगारी दर का इस्तेमाल करना विश्वसनीय तरीका क्यों नहीं हो सकता है, यह इसका सटीक उदाहरण है।
आंकड़ों में कुछ और दिक्कतें हैं और यह दर्शाता है कि रोजगार के मोर्चे पर नुकसान के बावजूद जनवरी को बहुत खराब नहीं कहा जा सकता था क्योंकि व्यवसाय की प्रकृति और उद्योग वितरण के संदर्भ में रोजगार संरचना में बेहतर सुधार हुए। सबसे पहले हम व्यवसाय की प्रकृति की प्रमुख बातों पर गौर करते हैं। जनवरी में वेतनशुदा लोगों के बीच रोजगार में 57 लाख की वृद्धि हुई, वहीं दिहाड़ी मजदूरों और छोटे व्यापारियों के बीच रोजगार में लगभग समान तादाद में कमी आई। वेतनशुदा नौकरियों वाले क्षेत्र में रोजगार, नवंबर और दिसंबर 2021 में 7.7 करोड़ के स्तर पर रहने के बाद जनवरी में लगभग 8.3 करोड़ के स्तर तक पहुंच गया। इससे पहले सितंबर और अक्टूबर में यह 8.4 करोड़ जबकि 2019-20 में 8.6 करोड़ के स्तर पर था। अब वेतन वाली नौकरियों में कमी के रुझान नहीं हैं लेकिन यह लगभग 8 करोड़ के स्तर पर है और यह संख्या महामारी के पहले के स्तर से नीचे है।
ऐसा लगता है कि खेतिहर श्रमिकों के पास भी काम नहीं है क्योंकि रबी फसल की बुआई का मौसम जनवरी में समाप्त हो गया था। रबी की अधिकांश बुआई नवंबर और दिसंबर में होती है। जनवरी में रबी फसल के करीब दस प्रतिशत हिस्से की ही बुआई की जाती है। कृषि क्षेत्र में जनवरी में श्रमिक घटने लगे और इस क्षेत्र में करीब 25 लाख काम के मौके कम हो गए।
जब कृषि क्षेत्र में काम के मौके कम हुए तब जनवरी में उद्योग में 58 लाख लोगों को काम मिला। वहीं दूसरी तरफ सेवा क्षेत्र से 66 लाख रोजगार के मौके कम हुए। ये आंकड़े काफी बड़े हैं और ये इस महीने के दौरान श्रम बाजारों में एक बड़े बदलाव का संकेत देते हैं। श्रमिक कृषि क्षेत्र और सेवा क्षेत्र की खराब गुणवत्ता वाली नौकरियों से भी बाहर हो गए और वे उद्योग से जुड़ गए। कृषि क्षेत्र में भी श्रमिक, फसलों की खेती करने के बजाय खेती से जुड़ी अन्य गतिविधियों में स्थानांतरित हो गए। वहीं सेवा क्षेत्र में भी व्यक्तिगत गैर-पेशेवर सेवाओं की श्रेणी में नौकरियां कम हो गईं और वित्तीय सेवाओं में बढ़ गईं। उद्योग के भीतर, विनिर्माण, संयंत्र और खदानों के साथ-साथ निर्माण क्षेत्र में नौकरियां बढ़ गईं।
विनिर्माण क्षेत्र ने 18 लाख रोजगार के मौके तैयार किए। विनिर्माण क्षेत्र ने लगातार दूसरे महीने नौकरियों में बढ़ोतरी की और दिसंबर में इस क्षेत्र में 14 लाख नौकरियों के मौके बढ़े। हाल में जारी औद्योगिक उत्पादन सूचकांक के आंकड़े के मुताबिक इस महीने के दौरान औद्योगिक उत्पादन में 7.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
हम जनवरी में भी विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार में निरंतर वृद्धि देखते हैं जब इसके आंकड़े 3.2 करोड़ तक पहुंच गए थे। मार्च 2020 के बाद से इस क्षेत्र में रोजगार का यह सबसे अधिक आंकड़ा है। हालांकि, विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार के आंकड़े अब भी 2019-20 में इस क्षेत्र द्वारा 4.1 करोड़ लोगों को दिए गए रोजगार की तुलना में काफी कम है। करीब 4.1 करोड़ के आंकड़े तक पहुंचना काफी मुश्किल लगता है क्योंकि इसके लिए नई क्षमता तैयार करने के लिए बड़े पैमाने पर निवेश की आवश्यकता होगी और अब हालात इसके लिए अनुकूल नहीं हैं। वहीं निर्माण उद्योग में जनवरी महीने में 28 लाख नौकरियों के मौके तैयार हुए तब उद्योग में रोजगार 6.75 करोड़ के स्तर तक पहुंच गया। यह 2019-20 में महामारी से पहले 6.1 करोड़ रोजगार की तुलना में अधिक है। लॉकडाउन की वजह से इस क्षेत्र से आधे रोजगार कम हो गए थे लेकिन आवाजाही से जुड़े प्रतिबंधों में ढील मिलने से लोगों को फिर से जल्दी काम मिल गया।
इस उद्योग में रोजगार असंगठित होता है। ऐसे में किसी भी बाहरी असर की प्रतिक्रिया में श्रमिकों को काम से निकालना और रखना दोनों ही आसानी से होता है। सितंबर 2020 के बाद से निर्माण उद्योग से 6.7 करोड़ लोग जुड़े हैं। इस उद्योग ने महामारी से पहले की तुलना में औसतन अधिक लोगों को काम मुहैया कराया है। बेहतर गुणवत्ता वाली नौकरियों के लिहाज से देखा जाए तो जनवरी में रोजगार संरचना में बदलाव उत्साहजनक है, हालांकि रोजगार की मात्रा निराशाजनक थी। फरवरी के पहले दो हफ्तों में इन आंकड़ों में तेजी से पता चलता है कि रोजगार एक चुनौती बनी हुई है।
(लेखक सीएमआईई के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी हैं)
