भारतीय बैंकिंग जगत के संभावित मुख्य अनुपालन अधिकारी (सीसीओ) रिजर्व बैंक से अपने बारे में शायद वही सुनना चाहेंगे जो एनोबार्बस ने क्लियोपेट्रा के बारे में कहा था, ‘उम्र उसे निस्तेज नहीं कर सकती, न ही रस्मो-रिवाज उसकी अपरिमित विविधता को फीका करते हैं (विलियम शेक्सपियर के नाटक एंटनी ऐंड क्लियोपेट्रा से)।’ परंतु आरबीआई को लगता है 55 वर्ष की उम्र के बाद अनुपालन अधिकारी पुराने और सीसीओ पद के अनुपयुक्त हो जाते हैं। लेखक-पत्रकार जॉनथन रॉख ने अपनी पुस्तक ‘द हैप्पिनेस कर्व: व्हाय लाइफ गेट्स बेटर आफ्टर फिफ्टी’ में लिखा है, ‘जिन्हें जीवन में कठिनाइयां नहीं होतीं, उन्हें लगता है कि वे उतने संतुष्ट क्यों नहीं हैं जितना उन्हें होना चाहिए? साल दर साल ऐसा क्यों हो रहा है?’ उन्हें लगता है कि उनके जीवन में कुछ तो गलत है। प्रश्न है कि क्या अनुपालन अधिकारी इसी श्रेणी में आते हैं? क्या उनकी जिंदगी में कुछ गड़बड़ी होती है? रॉख कहते हैं कि ऐसे लोगों के जीवन में कुछ गलत नहीं, वे बस गुजरते वक्त को महसूस कर रहे हैं जबकि उथलपुथल भरे जीवन वाले लोगों को इसका अहसास नहीं हो पाता।
सीसीओ की भूमिका के नए मानक, जवाबदेही और उम्र सीमा ने बैंकिंग क्षेत्र में हलचल पैदा की है। इसके ब्योरे में जाने के पहले देखते हैं कि लेखक और तंत्रिका विज्ञानी बिली गॉर्डन ने उम्रदराज होने की कला पर क्या लिखा है। उनके मुताबिक, ’55 की उम्र के बाद आपके मृत्यु प्रमाणपत्र पर अस्वाभाविक नहीं लिखा जाता। यदि आप सेहतमंद खाना खाते हैं और व्यायाम करते हैं तो आप बुजुर्ग होने के साथ जीवन पर सकारात्मक असर डाल सकते हैं।’
आरबीआई को क्यों लगता है कि 55 की उम्र के बाद भी कोई व्यक्ति अनुपालन का काम नहीं संभाल सकता। जबकि एक निजी बैंक का सीईओ 70 वर्ष तक काम कर सकता है। देश के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक का सीईओ 60 की उम्र के बाद पद पर रह सकता है। यही बात आरबीआई के डिप्टी गवर्नरों पर भी लागू होती है।
मध्य युग में लोग करीब 30 तक वर्ष जीते थे। गॉर्डन के मुताबिक जीवन संभाव्यता संस्कृति और परिस्थितियों पर निर्भर करती है। मनुष्य आरंभिक जीव विज्ञान की तुलना मेंं अब काफी लंबा जीवन जी रहा है। गॉर्डन के मुताबिक उम्र के साथ ही यह सवाल आता है कि क्या मैं अच्छा आदमी हूं? क्या मैंने दुनिया को बेहतर बनाया?
आरबीआई ने शायद 55 की उम्र पार कर चुके उन अनुपालन अधिकारियों के मन में यह भावना भर दी है जो सीसीओ बनने का इरादा रखते थे। बैंकों में अनुपालन की शुरुआत अगस्त 1992 में धोखाधड़ी और गलत व्यवहार पर बनी एक समिति की अनुशंसा के बाद हुई। तीन वर्ष बाद मार्च 1995 में अनुपालन अधिकारियों की भूमिका तय हुई। सन 1997 में एक समीक्षा के बाद आरबीआई ने बैंकों को सलाह दी कि वे अंकेक्षण एवं निगरानी के प्रभारी महाप्रबंधक को अनुपालन अधिकारी बनाना चाहिए जो चेयरमैन के अधीन हो। इसका प्राथमिक दायित्व था हर तिमाही अनुपालन प्रमाण पत्र तैयार करना और आरबीआई तथा वित्त मंत्रालय के सभी निर्देशों का पालन। यह व्यवस्था सन 2000 में समाप्त कर दी गई।
अप्रैल 2005 में पहली बार बैंकिंग निगरानी की बेसेल समिति ने बैंकों के अनुपालन पर एक पत्र जारी कर कुछ सिद्धांत तय किए। कुछ महीनों में आरबीआई ने बैंकों के अनुपालन अधिकारियों की बैठक बुलाई और एक कार्य समूह बनाया। अनुपालन पर व्यापक दिशानिर्देश बने और बैंकों को अंकेक्षण समिति की सलाह से उनका क्रियान्वयन करना था।
सन 2015 में एक बार फिर अनुपालन चर्चा में आया जब आरबीआई ने तथाकथित जोखिम आधारित निगरानी की शुरुआत की। हितों के टकराव को रोकने तथा अनुपालन की स्वायत्तता सुनिश्चित करने के लिए उसे अंकेक्षण से अलग किया गया। आरबीआई ने स्पष्ट किया कि अनुपालन केवल अनुपालन विभाग का काम नहीं है बल्कि वह बैंक की संस्कृति है।
अनुपालन को बचाव की दूसरी पंक्ति बताते हुए आरबीआई ने इस वर्ष जून में कहा कि सीसीओ बैंकों के बोर्ड की जोखिम प्रबंधन समिति (आरएमसीबी) को रिपोर्ट करेगा और जोखिम प्रबंधन के पहली पंक्ति के बचाव तथा आंतरिक अंकेक्षण के तीसरी पंक्ति के बचाव से स्वतंत्र होगा। सीसीओ का चयन आरएमसीबी करेगी और जरूरत पडऩे पर उसे हटाएगी भी। आरबीआई के सितंबर के परिपत्र ने सीसीओ के लिए 55 की उम्र तय करते हुए कहा कि सीसीओ महाप्रबंधक और सीईओ और/अथवा बैंक बोर्ड या अंकेक्षण समिति को रिपोर्ट करेगा।
जून के पर्चे ने सीसीओ को स्पष्ट करते हुए कहा कि अधिकारी को बैंक के अनुपालन जोखिम की पहचान, प्रबंधन, अनुपालन जोखिम को कम करना और अन्य अनुपालन कर्मचारियों की गतिविधियों की निगरानी करना होगी। सीसीओ में अनुपालन जोखिम समझने की क्षमता होनी चाहिए ताकि वह बोर्ड, आरएमसीबी और बैंक प्रबंधन के साथ अहम अनुपालन मसलों पर सकारात्मक संवाद कर सके।
सितंबर के परिपत्र में उसकी भूमिका की बारीक जानकारी है। इसके मुताबिक सीसीओ की नियुक्ति तीन वर्ष से कम समय के लिए होनी चाहिए। उसे बाहर से नियुक्त किया जा सकता है। यह महाप्रबंधक के स्तर का वरिष्ठ पद है जो सीईओ से दो स्तर से नीचे नहीं है।
सरकारी बैंकों में ऐसे अधिकारी कम ही हैं जो 55 की उम्र से पहले महा प्रबंधक बनते हैं। उम्र का मानक पूरा कर सीसीओ बनने वाले लोग पुनर्नियुक्ति के लिए सीईओ पर निर्भर करेंगे क्योंकि वे 55 की उम्र के बाद अन्य बैंकों के लिए अस्पृश्य हो जाएंगे। मुझे नहीं लगता दुनिया में कहीं और सीसीओ के लिए उम्र की सीमा है।
आरबीआई का पूरा ध्यान अनुपालन की महत्ता पर है लेकिन उसने कभी नहीं कहा कि सीसीओ की योग्यता क्या होनी चाहिए। मुख्य वित्तीय अधिकारी और मुख्य सूचना अधिकारी के पदों के लिए उसने बैंकों को बताया है कि संभावित प्रत्याशी कैसे होने चाहिए।
अप्रैल 2002 में आरबीआई द्वारा बोर्ड की निगरानी भूमिका की समीक्षा के लिए गठित बैंकों और वित्तीय संस्थानों के निदेशकों के सलाहकार समूह ने कंपनी सचिव को अनुपालन का केंद्र माना। उसने कहा कि बैंकों को एक काबिल कंपनी सचिव को बोर्ड में नियुक्त करना चाहिए और एक अनुपालन अधिकारी होना चाहिए जो सचिव को रिपोर्ट करे। इससे नियामकीय और लेखा जरूरतों के साथ अनुपालन सुनिश्चित होगा। अन्य योग्यताओं के साथ क्या सीसीओ को एक अर्हता प्राप्त कंपनी सचिव भी होना चाहिए?
(लेखक बिज़नेस स्टैंडर्ड के सलाहकार संपादक, लेखक एवं जन स्मॉल फाइनैंस बैंक के वरिष्ठ परामर्शदाता हैं)