भारत में बेरोजगारी दर (Unemployment rate) जनवरी 2023 में कम होकर 7.1 प्रतिशत रह गई। दिसंबर में यह दर 8.3 प्रतिशत थी। न केवल दिसंबर के स्तर से बल्कि इससे पहले दो महीनों के स्तरों से भी बेरोजगारी दर में यह एक बड़ी गिरावट मानी जा सकती है।
दिसंबर से पहले दो महीनों के दौरान बेरोजगारी दर 8 प्रतिशत के करीब रही थी। हालांकि कमी दर्ज होने के बावजूद यह दर ऊंचे स्तर पर बनी हुई है।
ऐसा प्रतीत होता है कि अब भारत में बेरोजगारी दर 7 प्रतिशत से ऊपर रहने का चलन शुरू हो गया है। यह भारत जैसे देश के लिए ऊंची बेरोजगारी दर है जो दुनिया की सर्वाधिक तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था होने का दावा करता है।
द इकॉनमिस्ट (4 फरवरी, 2023 अंक) के अनुसार केवल नौ देशों में बेरोजगारी दर भारत की तुलना में अधिक है। ये देश ग्रीस, इटली, स्पेन, तुर्किये, ब्राजील, चिली, कोलंबिया, मिस्र और सऊदी अरब हैं।
द इकॉनमिस्ट ने 43 देशों की एक सूची जारी की है जिनमें बेरोजगारी दर नियंत्रित करने के मामले में 30 से अधिक देशों ने भारत से अच्छा प्रदर्शन किया है। इनमें कई देश ऐसे थे जहां मंदी आने की आशंका तक जताई जा रही थी।
द इकॉनमिस्ट में जनवरी में भारत की अनुमानित बेरोजगारी दर 7.1 प्रतिशत की तुलना दूसरे देशों के ताजा आंकड़े से की गई है। अन्य देशों के उपलब्ध आंकड़े दिसंबर 2022 तक के हैं।
अगर दिसंबर की 8.3 प्रतिशत बेरोजगारी दर से तुलना की जाए तो केवल पांच देशों- ग्रीस, स्पेन, तुर्किये, कोलंबिया और दक्षिण अफ्रीका का प्रदर्शन भारत की तुलना में खराब रहा होगा।
संयोग से भारत जनवरी 2023 की बेरोजगारी दर के आंकड़े सबसे पहले देने वाला देश था। भारत में बेरोजगारी दर के मासिक अनुमान में थोड़ा उतार-चढ़ाव दिखा है।
असंगठित क्षेत्रों में अनौपचारिक रोजगारों की हिस्सेदारी अधिक रहने से यह उतार-चढ़ाव दिखा है। तुलनात्मक रूप से एक लंबी अवधि में बेरोजगारी दर आकलन अधिक दुरुस्त तरीके से किया जा सकता है।
इस लिहाज से सीएमआईई के कंज्यूमर पिरामिड्स हाउसहोल्ड सर्वे (सीपीएचएस) का वेव (4 महीने का अवधि) एक अच्छी समय सीमा मानी जा सकती है। कोविड महामारी के बाद लगाए गए लॉकडाउन के बाद सीपीएचएस के चारों वेव (सितंबर-दिसंबर 2021 से लेकर सितंबर-दिसंबर 2022 तक ) में बेरोजगारी दर लगातार सात प्रतिशत से ऊपर रही थी।
चारों वेव के दौरान औसत बेरोजगारी दर 7.4 प्रतिशत थी और यह 7.3 से 7.5 प्रतिशत के दायरे में रही थी। भारत में बेरोजगारी दर का लगातार सात प्रतिशत से ऊपर रहना चिंता का विषय है।
इस संदर्भ में बेरोजगारी दर की सीमाएं और जनवरी 2023 में इसमें गिरावट के सही अर्थ को समझना भी जरूरी हो जाता है। दिसंबर 2022 की तुलना में जनवरी 2023 में बेरोजगारी दर में गिरावट संभवतः मोटे तौर पर अस्थायी कारकों का नतीजा हो सकता है।
पिछले छह वर्षों में पांच में जनवरी में बेरोजगारी दर दिसंबर की तुलना में कम रही है। दिसंबर और जनवरी में औसत अंतर 77 आधार अंक था। इस साल बेरोजगारी दर दो महीनों के दौरान 116 आधार अंक कम हुई है। जनवरी 2023 में बेरोजगारी दर में कमी अस्थायी कारकों से कहीं अधिक दूसरी बातों का नतीजा हो सकती है।
जनवरी में सामान्यतया बेरोजगारी दर कम होती है क्योंकि रोजगार बढ़ता है और बेरोजगार लोगों की संख्या में कमी आती है। पुराने आंकड़ों पर विचार करें तो दिसंबर की तुलना में बेरोजगार लोगों की संख्या करीब 3.3 प्रतिशत कम होती है और रोजगार जनवरी में करीब 37 लाख बढ़ता है। इससे दिसंबर की तुलना में जनवरी में बेरोजगारी दर कम हो जाती है।
हालांकि, जनवरी 2023 में रोजगार में 9.5 लाख की कमी आई। पुराने रुझान इस बात का समर्थन तो नहीं करते हैं। पुराने रुझान या आंकड़ों ने जनवरी में रोजगार बढ़ने के संकेत दिए थे।
यह संभव है कि जनवरी में गिरावट दिसंबर में रोजगार में सामान्य से अधिक बढ़ोतरी में महज आई कमी का नतीजा है। दिसंबर 2022 में रोजगार में 81 लाख की बढ़ोतरी हुई थी। यह बढ़ोतरी असामान्य थी और संभवतः इसी वजह से जनवरी में आंकड़ों में कुछ कमी आई।
जनवरी 2023 में रोजगार के आंकड़े 40.93 करोड़ रहे, जो कोविड महामारी से पूर्व जनवरी 2020 के 41.05 करोड़ के करीब रहे। नोटबंदी के बाद अब तक यह रोजगार का सर्वाधिक आंकड़ा रहा है।
नवंबर 2016 में नोटबंदी के बाद रोजगार के तीन सर्वाधिक मासिक आंकड़े जनवरी 2020 (41.05 करोड़), दिसंबर 2022 (41.02 करोड़) और जनवरी 2023 (40.93 करोड़) में दिखे हैं। कमी के बावजूद जनवरी 2023 में पिछले दो महीने में बेरोजगारी दर कोविड महामारी के बाद किसी भी अवधि और नोटबंदी के बाद की अधिकांश अवधि की तुलना में अधिक रही है।
दिलचस्प बात है कि जनवरी में बेरोजगार लोगों की संख्या में 57 लाख की भारी कमी दर्ज की गई। इसकी यह वजह नहीं थी कि उन्हें नौकरी मिल गई थी। अगर ऐसी बात रही होती तो रोजगार में जरूर बढ़ोतरी हुई होती। हम पहले ही चर्चा कर चुके हैं कि रोजगार में 9.5 लाख की कमी आई है।
इसका अभिप्राय यह हुआ कि जनवरी में श्रम बल में 66 लाख की कमी आई। ऐसा आंशिक रूप से रोजगार में कमी और मोटे तौर पर बेरोजगार लोगों की संख्या में कमी आने की वजह से हुआ।
जनवरी में एक बड़ी संख्या में बेरोजगार श्रम बाजार से बाहर हो गए। इससे जनवरी में श्रम भागीदारी दर दिसंबर की 40.5 प्रतिशत से कम होकर जनवरी में 39.8 प्रतिशत रह गई। श्रम भागीदारी दर में उतार-चढ़ाव और इसमें आ रही कमी भारत के लिए एक बड़ी समस्या है।
रोजगार की उपलब्धता कम होने पर श्रमिक श्रम बाजारों से बाहर निकलने लगते हैं। जब वे बाहर निकलते हैं तो उनकी गिनती बेरोजगारों में नहीं होती है, इसलिए बेरोजगारी दर में ऊपरी तौर पर कमी दिखती है और ऐसा प्रतीत होता है कि श्रम बाजार में सुधार हुआ है, मगर यह एक छलावा है। जनवरी में बेरोजगारी दर में गिरावट किसी तरह का राहत नहीं दे रही है। यह श्रम भागीदारी दर में कमी का संकेत दे रही है।