जेफ बेजोस दुनिया भर में बेहद लोकप्रिय हस्ती हैं। उन्होंने ऐसी कंपनियां और उत्पाद बनाए हैं जिन्होंने न केवल अपने क्षेत्र में क्रांति ला दी है बल्कि लोगों के दृष्टिकोण,व्यवहार और जीवनशैली में भी बड़े बदलाव किए हैं। उन्होंने प्रबंधन और कारोबार के अपने तरीके में बदलाव किया है। उनका व्यक्तिगत जीवन और कद, मानव इतिहास में सबसे अमीर और सबसे सफल लोगों में से एक है। लेकिन क्या वह दुनिया की सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी के प्रमुख के तौर पर भारत में अधिक प्यार,सम्मान पाने में सक्षम होंगे?
हम भारतीय सेलेब्रिटीज को अपने करीबी लोगों की तरह बहुत प्यार देते हैं। लेकिन बेजोस के मामले में देश का रवैया थोड़ा अलग महसूस होता है। जब वह लगभग चार साल पहले भारत की यात्रा पर आए थे तब उन्होंने खुद को सुर्खियों में लाने के लिए सब कुछ किया। वह भारतीय परिधान पहने हुए नजर आए, उन्होंने नई दिल्ली के राजघाट पर महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि दी और टाटा ट्रक पर ड्राइवर की तरफ वाले दरवाजे की तरफ से झुककर फोटो भी खिंचवाई।
ये सब चीजें केवल दिखाने भर के लिए नहीं थीं। बेजोस ने भारत में बड़ा निवेश करने की घोषणा की। उन्होंने लघु एवं मध्यम उद्यमों को समर्पित एक बड़े कार्यक्रम को भी संबोधित किया और कहा कि यह शताब्दी भारत के नाम है।
हालांकि सरकार में बेजोस की पूरी भारत यात्रा को लेकर कोई उत्साह नहीं दिखा। हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू ने 22 जनवरी, 2020 को एक लेख प्रकाशित किया जिसका सारांश कुछ यूं है, ‘जेफ बेजोस की भारत की हाल की यात्रा के दौरान विरोध प्रदर्शन हुए, भारत की वित्त मंत्री ने प्रतिकूल टिप्पणी की और भारतीय प्रधानमंत्री ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया जबकि बेजोस ने 2025 तक एक अरब डॉलर खर्च करने के साथ ही लाखों नौकरियों के मौके तैयार करने का वादा किया।’
इसके विपरीत पिछले साल अप्रैल में ऐपल इंक के मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) टिम कुक के भारत आगमन पर काफी उत्साह देखा गया था जब वह देश में प्रौद्योगिकी क्षेत्र की इस दिग्गज कंपनी के पहले भारतीय स्टोर के उद्घाटन के मौके पर आए थे। कुक ने एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के सीईओ के तौर पर सामान्य तरह की चीजें कीं जैसे कि मुंबई में बॉलीवुड अभिनेत्री माधुरी दीक्षित के साथ वड़ा पाव खाया। उन्होंने देश में कंपनी जगत के दिग्गजों जैसे कि रिलायंस इंडस्ट्रीज के प्रमुख मुकेश अंबानी, उनके बेटे आकाश और बेटी ईशा सहित कई और प्रमुख कंपनियों के दिग्गज प्रमुखों से मुलाकात की। उन्होंने टाटा संस के अध्यक्ष एन चंद्रशेखरन सहित अन्य लोगों से भी मुलाकात की।
सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि सरकार ने दिल्ली में कुक का स्वागत खुली बांहों के साथ किया। आप कह सकते हैं कि ऐपल इंक, ‘मेक इन इंडिया’ के पोस्टर बॉय के तौर पर उभरी है जिसने चीन से आईफोन की असेंबली के कुछ हिस्से भारत में स्थानांतरित किए हैं, फिर भी भारत में एमेजॉन की भागीदारी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
यह केवल निवेश, रोजगार सृजन, निर्यात और इसके बड़े आकार से जुड़ी बात नहीं है बल्कि छोटे कारोबार के सामने आने वाले स्पष्ट खतरे से जुड़ी आशंकाओं को खत्म करने के लिए एमेजॉन ने अपने कारोबार के लिए भी जोखिम लिया। इसने छोटे कारोबारों का डिजिटलीकरण करने और उन्हें न केवल देश में बल्कि विदेशों के बाजार के लिए भी एक मंच देने के लिए अभियान चलाए। इसमें सभी प्रकार के विक्रेता, कारीगर, बुनकर और कई अन्य शामिल हैं। कंपनी की भारतीय वेबसाइट पर भी छोटे कारोबारियों की सफलता से जुड़ी कहानियों का संकलन सोच-समझकर किया गया है, जिन कहानियों ने एमेजॉन की सफलता में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
इस बीच ई-कॉमर्स के प्रभाव से जुड़ी एक रिपोर्ट जारी हुई जिसमें एमेजॉन की भारत में मूल्य निर्धारण प्रक्रिया और इसके कारोबार संचालन से जुड़े सवाल फिर से खड़े हो गए। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने भी यह बहस फिर से शुरू कर दी लेकिन अगले ही दिन यह स्पष्ट किया कि सरकार डिजिटल कारोबार के खिलाफ बिल्कुल भी नहीं है बल्कि वह निवेश और प्रौद्योगिकी के लिए इच्छुक है। लेकिन उन्होंने पारदर्शिता की जरूरत, उचित कारोबार और ऑफलाइन तथा ऑनलाइन कारोबार के बीच उचित स्तर की प्रतिस्पर्द्धा पर जोर दिया।
यह सुनकर एमेजॉन के समर्थक लगभग हैरानी से भर गए और उनका पहला विचार यह था, ‘हमने इस बार ऐसा क्या कर दिया?’ कुछ वक्त से एमेजॉन ने भारत में अपना प्रोफाइल सामान्य ही रखा था। इसने लगभग एक साल से किसी बड़े निवेश की घोषणा नहीं की थी और न ही इसने कोई बड़ी सार्वजनिक घोषणा की है। आखिर बहुराष्ट्रीय खुदरा कंपनी एमेजॉन की भारत में छवि इतनी नकारात्मक कैसे हो गई। हालांकि एक तथ्य यह भी है कि फ्लिपकार्ट एमेजॉन की तरह ही अब एक विदेशी कंपनी है जिसका स्वामित्व अब वॉलमार्ट के पास है जो बड़ी दिग्गज रिटेल कंपनी है और यह भी छोटे दुकानों के लिए मूल खतरा है।
फ्लिपकार्ट को अब भी देश की स्टार्टअप की सफलता में एक पोस्टर बॉय के रूप में देखा जाता है, हालांकि इतने समय के बाद इसे स्टार्टअप कहना भी उचित नहीं होगा क्योंकि इसके संस्थापकों सचिन बंसल और बिन्नी बंसल का इससे कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन फ्लिपकार्ट को कमतर दिखाना भी स्टार्टअप तंत्र के लिए एक बड़े झटके के तौर पर देखा जा सकता है जो कुछ विफलताओं के बावजूद गर्व और खुशी का स्रोत है।
अमेरिका की दिग्गज रिटेल कंपनी वॉलमार्ट ने फ्लिपकार्ट या यहां तक कि फोनपे का नाम न बदलने में बेहद चतुराई बरती क्योंकि फोनपे एक तरह से फ्लिपकार्ट की खरीद से अप्रत्याशित बोनांजा साबित हुआ। बात केवल यही नहीं है कि वॉलमार्ट का नाम भारत में मशहूर नहीं है बल्कि इस ब्रांड का कोई चेहरा भी यहां नहीं है। उन्होंने अपना प्रोफाइल बढ़ा-चढ़ाकर नहीं रखा है और अपने काम पर पूरा जोर दिया है।
एक बड़े चुनावी लोकतंत्र में कारोबार करने का शायद यह सही तरीका भी है जहां कुछ चिंताएं कारोबार की सफलता और विफलता से कहीं बहुत आगे जाती हैं। अगर आप एक बड़ी अंतरराष्ट्रीय कंपनी हैं और जिसे कोई ऐसा व्यक्ति चला रहा है जिसकी बड़ी पहचान है तब चर्चा ज्यादा होने लगती है। गोयल की टिप्पणियों ने उम्मीद बढ़ा दी है कि सरकार आखिरकार अपनी बहुप्रतीक्षित ई-कॉमर्स नीति ला सकती है जिसमें विशिष्ट नियम भी होंगे। लेकिन अगर ऐसा होता है तब भी इस कहानी के नैतिक सबक में कोई बदलाव नहीं होगा।
हालांकि नीतियां मायने रखती हैं लेकिन धारणा भी उतनी ही मायने रखती है। आप खुद को ऐसा नहीं दिखना चाहते हैं कि आप एक ऐसे राष्ट्र बन रहे हैं जहां लोगों में सक्रियता नहीं है। हालांकि उस चिंता का समाधान करने के लिए, सरकार को पहले टीवी रिमोट पर प्रतिबंध लगाने वाली एक विनिर्माण नीति की पेशकश करनी होगी।