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कोछड़ मामले की जांच सीबीआई के लिए निर्णायक

Last Updated- January 04, 2023 | 11:50 PM IST
ICICI Videocon case

पिछले हफ्ते एक विशेष अदालत ने आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व प्रबंध निदेशक (एमडी) और मुख्य कार्या​धिकारी (सीईओ) चंदा कोछड़ और उनके पति दीपक कोछड़ तथा वीडियोकॉन समूह के प्रवर्तक वेणुगोपाल धूत को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया था। चंदा भायखला महिला जेल में बंद हैं और उनके पति तथा धूत आर्थर रोड जेल में बंद हैं। आईसीआईसीआई बैंक द्वारा वीडियोकॉन समूह की कुछ इकाइयों को कथित तौर पर धोखे से ऋण देने के मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने उन्हें गिरफ्तार किया।

इस पूरे वाकये में नेटफ्लिक्स के किसी थ्रिलर वाले रोमांच से भरे सभी तत्त्व मौजूद हैं। जनवरी के मध्य में जैसलमेर में अपने बेटे की शादी की तैयारी कर रहे कोछड़ परिवार को बड़ा झटका लगा है ।सीबीआई ने 22 जनवरी, 2019 को आपराधिक साजिश, एक सरकारी अधिकारी पर अवैध रिश्वत लेने, धोखाधड़ी, आपराधिक कदाचार और आधिकारिक पद के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए प्राथमिकी दर्ज कराई। इसमें आरोप लगाया गया कि आईसीआईसीआई बैंक ने धूत की समूह की कंपनियों और धूत को फायदा देने के मकसद से 3,250 करोड़ रुपये के ऋण की मंजूरी दी और इसके बदले में फिर धूत ने दीपक कोछड़ की नूपावर रिन्यूएबल्स लिमिटेड में 64 करोड़ रुपये का निवेश किया।

इस बैंक ने जून 2009 और अक्टूबर 2011 के बीच वीडियोकॉन समूह को छह बड़े ऋण की मंजूरी दी जो मूलतः ऋण मंजूरी के मानदंडों का उल्लंघन करते हैं। एफआईआर में कहा गया है कि चंदा ऋण की मंजूरी देने वाली समिति के सदस्यों में से एक थीं। हालांकि सवाल यह है कि जांच एजेंसी ने उन्हें गिरफ्तार करने में इतना समय क्यों लगाया? क्या इन तीनों को किसी नए सबूत की वजह से गिरफ्तार किया गया है? पिछले महीने मीडिया में आई एक खबर में कहा गया था कि भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने सूचीबद्ध इकाइयों और उनके प्रमुख प्रबंधकीय कर्मियों के खुलासे और दायित्वों से संबंधित कुछ मानदंडों के उल्लंघन के संबंध में 2018 में बैंक और चंदा को जारी किए गए कारण बताओ नोटिस पर कोई निर्णय नहीं लिया।

नवंबर 2022 में, बंबई उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि बैंक द्वारा उनका कार्यकाल समाप्त करना प्रथम दृष्टया वैध था। कुछ हफ्ते बाद, उच्चतम न्यायालय ने बंबई उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। मार्च 2020 में बंबई उच्च न्यायालय के एक खंडपीठ ने बैंक द्वारा उनकी नौकरी खत्म होने से जुड़े फैसले को चुनौती देने वाली उनकी याचिका खारिज कर दी थी और इसे ‘कानून की नजरों में अवैध’ कहा था। बैंक ने वीडियोकॉन समूह को नियमों का उल्लंघन कर कर्ज देने में उनकी कथित भूमिका के चलते अप्रैल 2009 और मार्च 2018 के बीच उनको दी गई पारिश्रमिक से इनकार कर दिया और वे सभी बोनस और शेयरों के विकल्प वापस ले लिए जिससे उनके पति को फायदा हुआ।

वह इस मामले में हार गईं, लेकिन नवंबर 2019 में दिल्ली की एक अदालत में उन्होंने जीत हासिल की, जिसके मुताबिक उन पर आधारित एक बायोपिक फिल्म को ऑनलाइन या ऑफलाइन दिखाने से रोक दिया गया था। चंदा भले ही उन्हें बदनाम करने के कथित प्रयास को नाकाम करने में कामयाब हुईं लेकिन उनकी वास्तविक जिंदगी भी फिल्म से कम रोमांचक नहीं है। इसका पहला दृश्य जुलाई 2016 में तैयार हुआ जब इन्फ्रा लाइव पत्रिका के एक ‘कोछड़्स रिन्यूएबल एम्पायर’ शीर्षक वाले लेख में आरोप लगाया गया था कि दीपक कोछड़ के धूत के वीडियोकॉन समूह के साथ संदिग्ध कारोबारी संबंध हैं।

दीपक का मुस्कुराता हुआ कटआउट मैगजीन के कवर पर नजर आ रहा था। दो साल से अधिक समय बाद चंदा को आचार संहिता के उल्लंघन की वजह से बैंक छोड़ना पड़ा। उनके इस्तीफा देने के तीन महीने बाद जनवरी 2019 में बैंक के निदेशक मंडल ने हितों के टकराव से निपटने में उनकी विफलता (वीडियोकॉन को ऋण देने पर निर्णय लेने वाली ऋण समिति की बैठकों से खुद को अलग नहीं करना) और जानकारी न देने की वजह से (वीडियोकॉन के साथ उनके पति के व्यावसायिक संबंधों से जुड़ी जानकारी) उनकी सेवा खत्म कर दी गई।

संपत्ति के लिहाज से देश के दूसरे सबसे बड़े निजी बैंक में 34 साल तक पूरे समर्पण भाव से काम करने और कड़ी मेहनत के साथ सेवाएं देने के बाद चंदा अपने साथ हुए इस तरह के बरताव से बेहद ‘निराश, आहत और हैरान’ थीं। अपनी ‘ईमानदारी और सम्मान’ पर गर्व करते हुए उन्हें पूरा भरोसा था कि सच्चाई की आखिरकार जीत होगी। चंदा को बैंक द्वारा बरखास्त किए जाने और उन्हें मिले बोनस को वापस लिए जाने का निर्देश मिलने और उनके शेयर विकल्पों से इनकार करने के बाद चंदा की यह पहली प्रतिक्रिया थी।

उन्होंने नवंबर 2019 में अदालत का रुख किया। इन्फ्रा लाइव की रिपोर्ट शेयरधारक सक्रिय कार्यकर्ता और भारतीय निवेशक संरक्षण परिषद के संस्थापक और ट्रस्टी अरविंद गुप्ता द्वारा लिखे गए एक पत्र पर आधारित थी। वह वीडियोकॉन और आईसीआईसीआई बैंक दोनों के शेयरधारक थे। पत्र में चंदा के पति और वीडियोकॉन के धूत के बीच वित्तीय संबंधों और वीडियोकॉन समूह को ऋण देने वाले बैंक में उनकी भूमिका को लेकर कई सवाल उठाए गए थे। उस वक्त आईसीआईसीआई बैंक के चेयरमैन एम के शर्मा ने लॉ फर्म सिरिल अमरचंद मंगलदास (सीएएम) को इस मामले में सलाह देने के लिए नियुक्त किया था। फर्म ने उन्हें क्लीन चिट दे दी।

भारतीय रिजर्व बैंक ने भी इसकी जांच की लेकिन इसने ऋण वितरण की प्रक्रिया में कुछ भी गलत नहीं पाया हालांकि इस बात की ओर इशारा जरूर किया कि दीपक और धूत के बीच व्यापारिक संबंध भारत से बाहर भी हैं। जनवरी 2018 तक सीबीआई इस मामले में सक्रिय हो गई। इंडियन एक्सप्रेस ने मार्च में दीपक-वीडियोकॉन संबंधों से जुड़ी एक रिपोर्ट पहले पन्ने पर प्रकाशित की थी। इस बार एक अज्ञात व्हिसल ब्लोअर ने एक और विस्तृत पत्र लिखा, जिसमें चंदा और उनके परिवार के कई कथित गलत कामों की जानकारी दी गई थी।

इसकी वजह से सेबी हरकत में आई और चंदा को वीडियोकॉन समूह के साथ अपने पति के कारोबारी संबंधों की जानकारी देने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसके बाद बैंक के बोर्ड ने अप्रैल 2009 और मार्च 2018 के बीच की अवधि की व्यापक जांच करने के लिए उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश बीएन श्रीकृष्ण की नियुक्ति की। सीएएम ने तुरंत अपनी रिपोर्ट वापस ले ली क्योंकि यह इस धारणा पर आधारित थी कि दीपक और धूत के बीच कोई संबंध कभी नहीं था क्योंकि चंदा ने पहले कभी इसका जिक्र नहीं किया था।

बाकी बातें अब इतिहास है। 1 जून, 2018 को चंदा अनिश्चितकालीन छुट्टी पर तब तक के लिए चली गईं जब तक कि श्रीकृष्ण समिति की जांच पूरी नहीं हो गई। एक पखवाड़े से कुछ अधिक समय बाद, 18 जून को बैंक ने आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के प्रबंध निदेशक संदीप बख्शी को तत्काल प्रभाव से पांच साल के लिए बैंक के पूर्णकालिक निदेशक और मुख्य परिचालन अधिकारी के रूप में नियुक्त किया।

अक्टूबर में बख्शी को एमडी और सीईओ बनाया गया और जनवरी 2019 में चंदा को बता दिया गया कि अब बैंक को उनकी कोई जरूरत नहीं है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सीबीआई आरोपों को कैसे साबित करती है। अब तक वित्तीय धोखाधड़ी और गड़बड़ी से जुड़े जटिल मामलों की जांच में देश की प्रमुख जांच एजेंसी सीबीआई का रिकॉर्ड बिल्कुल बेदाग नहीं है। अरुण जेटली और पीयूष गोयल दोनों ने पहले भी सीबीआई के ‘जांच’ की कड़ी आलोचना की थी। अभी ज्यादा वक्त नहीं बीता है जब सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ सेवानिवृत्त वरिष्ठ बैंकरों को हमारी जांच एजेंसियों ने गिरफ्तार किया और मुंबई के लोअर परेल के जे आर बोरिचा मार्ग पर मौजूद आर्थर रोड जेल में डाल दिया था, जहां उन्हें विचाराधीन कैदियों की तरह कई रातें बिताईं थीं। क्या जांच एजेंसियां बैंकरों का दोष साबित कर पाई हैं? क्या उनमें से किसी को भी दोषी ठहराया गया है?

चंदा के बचाव में, कोई भी यह तर्क भी रख सकता है कि वीडियोकॉन समूह आखिर ऋण हासिल करने के लिए उनके पति के हितों का ख्याल क्यों करेगा? आखिरकार, समूह ने पूरे बैंकिंग उद्योग से पैसा लिया है और इस सूची में आईसीआईसीआई बैंक की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत भी नहीं है। इसलिए, अगर यह काम के बदले काम कराने वाली बात के तौर पर भी देखा जाए जिसके चलते अगर चंदा को रकम मिली, तो क्या अन्य बैंकों के साथ भी इस कंपनी ने ऐसी ही व्यवस्था नहीं की होगी? अगर ऐसा नहीं है तो यह बात स्वीकार करनी चाहिए कि कंपनी को आईसीआईसीआई सहित सभी बैंकों से बिना किसी शर्त के पैसा मिला था।

बॉस के रूप में चंदा ने कभी भी बैंक के मुख्यालय में लिफ्ट का इंतजार नहीं किया। आलम यह था कि जब उनकी नीली मर्सिडीज बेंज ई-क्लास ई 350 डी परिसर में आती तब कोई न कोई लिफ्ट का बटन दबाने और उसे रोकने के लिए हमेशा मौजूद रहता था। सुरक्षा विभाग यह सुनिश्चित किया करता था कि दफ्तर में प्रवेश करने और बाहर निकलते समय उन्हें लिफ्ट के लिए कतार में न लगना पड़े। इसके अलावा उनके साथ किसी को लिफ्ट में जाने की अनुमति नहीं दी जाती थी। क्या भायखला महिला जेल में पद्म भूषण बैंकर चंदा के साथ अन्य लोग भी वह जगह साझा कर रहे होंगे?

First Published - January 4, 2023 | 11:05 PM IST

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