उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) पर आधारित मुद्रास्फीति जनवरी माह में 6.52 फीसदी के साथ तीन महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई।
इसके साथ ही यह दर एक बार फिर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के तय दायरे से ऊपर निकल गई और इस बात ने अधिकांश विश्लेषकों को चौंका दिया।
इस इजाफे की एक बड़ी वजह खाद्य कीमतों में तेजी थी, खासतौर पर अनाज के दाम में सालाना आधार पर 16.1 फीसदी वृदि्ध हो गई। मासिक आधार पर अनाज की कीमतें 2.6 फीसदी बढ़ीं।
अनाज तथा अन्य उत्पाद संयुक्त सीपीआई बास्केट में 9.67 फीसदी भार रखते हैं। मूल मुद्रास्फीति में भी थोड़ा इजाफा हुआ और वह भी 6 फीसदी के ऊपर बनी हुई है। अनाज कीमतों में हुए इजाफे ने अर्थशास्त्रियों को चकित कर दिया है।
इसके अलावा आंकड़ों को समझने में भी कुछ अंतर है।
उदाहरण के लिए नोमुरा ने एक नोट में कहा, ‘आधिकारिक आंकड़ों का इस्तेमाल करने पर हमने पाया कि शीर्ष अनाज सूचकांक (शीर्ष से नीचे) तथा उसके घटकों (नीचे से ऊपर) में व्यापक विविधता है।’ उसने कहा कि आधिकारिक प्रविधि कहीं अधिक जटिल है लेकिन अब तक दोनों अनुमान सुसंगत हैं।
आंकड़ों को समझने में जो अंतर है वह समय के साथ दूर हो सकता है, लेकिन मुद्रास्फीति के जनवरी के आंकड़ों ने आरबीआई के चालू तिमाही के मौजूदा पूर्वानुमान को खतरे में डाल दिया है।
केंद्रीय बैंक ने गत सप्ताह जनवरी से मार्च तिमाही के मुद्रास्फीति संबंधी पूर्वानुमान को 20 आधार अंक कम करके 5.7 फीसदी कर दिया था। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि मौद्रिक नीति पर इस इजाफे का क्या असर होगा? साफ तौर पर कहा जाए तो मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने गत सप्ताह अपनी बैठक में नीतिगत रीपो दर में 25 आधार अंक की बढ़ोतरी की थी और यह 6.5 फीसदी के साथ चार वर्ष के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई।
एमपीसी ने भविष्य में दरों में और इजाफा करने का विकल्प भी खुला रखा। समिति ने यह संकेत नहीं दिया कि वह फिलहाल नीतिगत दरों को वर्तमान स्तर पर बनाए रखेगी। हालांकि अधिकांश बाजार प्रतिभागी इसकी उम्मीद कर रहे थे।
केंद्रीय बैंक ने वर्ष 2023-24 में मुद्रास्फीति की दर औसतन 5.3 फीसदी रहने का अनुमान भी जताया है। यह देखना होगा कि कहीं इसके दोबारा ऊपरी दायरे के पार चले जाने का जोखिम न उत्पन्न हो जाए।
ध्यान देने वाली बात है कि कई बाजार अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि अगले वित्त वर्ष में मुद्रास्फीति की दर रिजर्व बैंक के अनुमान से कम रहेगी।
साफ तौर पर अगर मुद्रास्फीति में इजाफा होता रहा तो मौद्रिक नीति में और सख्ती लानी होगी ताकि स्थिति पर नियंत्रण रखा जा सके। अप्रैल की बैठक के पहले एमपीसी के पास और अधिक आंकड़े होंगे और उसके कदम दो अहम कारकों पर निर्भर करेंगे।
पहला, मुद्रास्फीति में होने वाला यह इजाफा 2023-24 में मुद्रास्फीति के संभावित नतीजों पर किस प्रकार का असर पड़ेगा? अगर रबी की फसल के आगमन के साथ ही खाद्य कीमतों में नरमी आती है तो एमपीसी जनवरी और फरवरी के मुद्रास्फीति आंकड़ों को परखना चाहेगी।
बहरहाल अगर दबाव बना रहता है तो समिति को प्रतिक्रिया देनी होगी। दरों संबंधी कदम को प्रभावित करने वाला दूसरा कारक होगा वास्तविक नीतिगत दरों का वांछित स्तर। हालांकि केंद्रीय बैंक शायद खुलकर इसके बारे में बात न करे लेकिन दरें पिछले अनुमान से अधिक हो सकती हैं।
रिजर्व बैंक ने लगातार ऊंची बनी हुई मूल मुद्रास्फीति को लेकर चिंता जताई है लेकिन शीर्ष दर का लगातार ऊंचा बना रहना चीजों को और जटिल बनाएगा। जनवरी की उच्च शीर्ष मुद्रास्फीति दर ने नीतिगत अनिश्चितता बढ़ा दी है। इसने अप्रैल में दरों में एक और इजाफे की संभावना जगा दी है।