पश्चिम में उद्योग चौराहे पर खड़ा है क्योंकि निवेश बाहर निकालने का रास्ता ही नहीं मिल रहा है। भारत को ऐसी गलती करने से बचना चाहिए। बता रहे हैं आकाश प्रकाश
वेंचर कैपिटल (वीसी) पर नजर डालें तो बेहद दिलचस्प उद्योग है। पिछले 30 साल में यह सबसे बेहतरीन रिटर्न देने वाली परिसंपत्ति श्रेणी है और रिटर्न का सबसे अधिक वर्गों में बंटवारा भी इसी में नजर आता है। वेंचर कैपिटल की सफलता एंडाउमेंट मॉडल को खड़ा करने और आगे बढ़ाने में अहम किरदार अदा करती है, जो कम तरलता से भी अधिक रिटर्न हासिल कर लेता है।
निवेश के मामले में येल एंडाउमेंट की सफलता वीसी पर दांव खेलने का ही परिणाम है। इस परिसंपत्ति श्रेणी में होना तब समझदारी है, जब आप उन शीर्ष 10 फंडों में निवेश करते हैं, जहां रिटर्न बहुत जबरदस्त रहा है। अगर आपका शीर्ष 10 फंडों में निवेश नहीं है तो आपको शेयर जैसा रिटर्न ही मिलेगा, जहां कम तरलता के लिए आपको कुछ भी नहीं मिलता।
बीते 10 साल का उदाहरण लें तो नैस्डैक 100 ने 5.2 गुना रिटर्न दिया है। वहां भी शीर्ष 10 तकनीकी शेयरों ने नौ गुना रिटर्न दिया। गिने-चुने वीसी फंड ही उनसे बेहतर रिटर्न दे पाए हैं और उसके बाद उन फंडों में एक दशक या उससे भी ज्यादा वक्त के लिए नकदी की किल्लत हो जाती है।
बहरहाल यह उद्योग चौराहे पर खड़ा प्रतीत होता है,जहां कई फंडों की अवधि बढ़ती जा रही है और वितरण एकदम निचले स्तर पर है। निवेशक लंबे समय के लिए रकम आवंटित करने के उनके निर्णय पर प्रश्न उठा रहे हैं और नए फंडों को पूंजी जुटाने में मुश्किल आ रही है। यह उद्योग भी तेजी और मंदी के सिलसिले का गवाह बन चुका है। 2014 में इसमें 100 अरब डॉलर का नया वीसी निवेश था, जो 2021 में बढ़कर 700 अरब डॉलर तक पहुंच गया था।
आज नया निवेश करीब 350 अरब डॉलर है जो उच्चतम स्तर का आधा है फिर भी अतीत के लिहाज से निवेश का यह अच्छा स्तर है। वास्तविक समस्या निवेश निकालने की है। अमेरिका में 2021 में 700 अरब डॉलर का निवेश निकाल लिया गया था मगर अब फंड 75 अरब डॉलर सालाना से भी कम निवेश निकाल पा रहे हैं।
निवेश निकाल पाना इसलिए मुश्किल हो रहा है क्योंकि ब्याज दर ऊंची होने के कारण निजी इक्विटी की दिलचस्पी ही नहीं दिख रही है। अमेरिका तथा यूरोपीय संघ में नियामकीय सख्ती बढ़ने के कारण बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों के लिए छोटी स्टार्टअप को खरीदना मुश्किल हो रहा है। नई तकनीकी कंपनियों को शेयर बाजार में लाने के लिए आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (IPO) भी लगभग सूख गए हैं।
कैलेंडर वर्ष 2022 के बाद से अमेरिका में केवल 14 तकनीकी कंपनियां सूचीबद्ध हुई हैं यानी औसतन छह कंपनी सालाना से भी कम। जब वैश्विक वित्तीय संकट बहुत गहराया था और 2000 में तकनीकी बुलबुला जब फूट गया था तब भी हर साल 15 से 20 नई तकनीकी कंपनियां बाजार में सूचीबद्ध हो रही थीं। नई तकनीकी कंपनियों के सूचीबद्ध होने में ऐसी सुस्ती कभी नहीं देखी गई है!
मांग और आपूर्ति दोनों इसकी वजह हैं। अब संस्थापक अपनी निजी हिस्सेदारी का बड़ा हिस्सा वीसी और ग्रोथ इक्विटी फर्मों को बेच सकते हैं। इस तरह उनके लिए और बीज निवेशकों तथा कर्मचारियों के लिए भी नकदी आ जाती है। इस तरह शेयर बाजार में जाने और आईपीओ लाने की जरूरत ही खत्म हो जाती है। कई प्रमुख वीसी कंपनियां उन परिसंपत्तियों में इजाफा कर रही हैं, जिन्हें वे संभालती हैं।
इस तरह वे शुरुआती निवेश करने वालों पर ही निर्भर नहीं हैं बल्कि अधिक स्रोतों से पूंजी हासिल कर रही हैं। इन असूचीबद्ध कंपनियों खास तौर पर मशहूर स्टार्टअप के शेयरों की अच्छी खासी मांग है। वे प्राइवेट कंपनी रहते हुए भी ऊंचे मूल्यांकन पर अरबों डॉलर की नई पूंजी जुटा सकती हैं।
ओपन एआई इसका उदाहरण है, जो आज 150 अरब डॉलर मूल्यांकन पर पूंजी जुटा रही है। इसलिए ऐसी कंपनियां लंबे अरसे तक प्राइवेट बनी रह सकती हैं। अगर आप शेयर को बाजार में सूचीबद्ध कराए बगैर ही उस पर नकदी हासिल कर सकते हैं, शेयर बाजार में मिलने वाले मूल्यांकन से अधिक मूल्यांकन पर नई पूंजी जुटा सकते हैं और आपका बोर्ड आपके साथ खड़ा है तो यह समझना आसान है कि संस्थापक अपनी कंपनी को प्राइवेट ही क्यों रखना चाहते हैं? वे उन नियामकीय बोझ और खुलासों की शर्त से बच सकते हैं, जो सूचीबद्ध कंपनियों के साथ जुड़ी रहती है।
मांग की बात करें तो यह सही है कि सक्रिय फंड प्रबंधन जूझ रहा है, इसलिए बुनियादी शेयर चुनने वाले कई छोटे फंड बंद हो गए हैं। इनमें से कई फंड मिड कैप के माहिर थे और छोटे आईपीओ खरीदने में आगे थे। जो बड़ी फंड कंपनियां बची रहीं और जिन्होंने छोटी कंपनियों को खरीद लिया, उनकी दिलचस्पी छोटे आईपीओ में बहुत कम है और आरंभिक सार्वजनिक निर्गम के लिए न्यूनतम आकार तथा राजस्व का पैमाना ऊपर चला गया है।
2019 समाप्त होने के बाद से नैस्डैक 120 फीसदी ऊपर चढ़ा है मगर मुनाफा नहीं दे रही तकनीकी कंपनियों और सॉप्टवेयर ऐज ए सर्विस कंपनियों में केवल 20 फीसदी उछाल आई है। इन दोनों श्रेणियों की असूचीबद्ध यूनिकॉर्न कंपनियों के साथ सबसे अधिक समानता दिखती है। इनके कमजोर प्रदर्शन के कारण शेयर बाजार के फंड नई सूचीबद्ध हो रही कंपनियों में ज्यादा निवेश नहीं कर रहे हैं।
अधिकतर फंड अब भी उन चर्चित आईपीओ में निवेश किए बैठे हैं, जिन्हें उन्होंने पिछले कुछ साल में खरीदा है और जो आज भी निर्गम मूल्य से नीचे चल रहे हैं। अगर हम अमेरिका में 2020 से सूचीबद्ध हुए सभी तकनीकी आईपीओ को देखें तो उनका बाजार मूल्य 140 अरब डॉलर घट गया और मीडियन आईपीओ मूल्य भी निर्गम मूल्य से 40 फीसदी नीचे चला गया है।
ऐसे में हमारे पास आज करीब 1,500 यूनिकॉर्न (1 अरब डॉलर से अधिक मूल्यांकन वाली असूचीबद्ध कंपनियां) हैं। 1 अरब डॉलर मूल्यांकन की बात करें तो सूचीबद्ध कंपनियों की तुलना में असूचीबद्ध तकनीकी कंपनियां ज्यादा हैं! इन सभी के आईपीओ लाए जाएं तो उन्हीं में 25 साल लग जाएंगे! जाहिर है कि इनमें से कई कंपनियां कभी सूचीबद्ध ही नहीं होंगी और न ही वास्तव में उनकी कीमत अरबों डॉलर है।
वीसी निवेश लगातार अधिक बने रहने और निवेश निकालने की दर कम होने के कारण आज उद्योग के पास नकदी की भारी किल्लत हो गई है और निवेशकों को कम वितरण हो रहा है। हमेशा ऐसा नहीं था। 2010 से 2021 तक एक साल छोड़ दें तो नकदी प्रवाह सकारात्मक ही रहा यानी निवेशकों ने जितना निवेश किया, उससे अधिक रिटर्न कंपनियों ने उन्हें दिया।
निवेश की वापसी में इस रिकॉर्ड किल्लत के कारण ऐसी कई एंडाउमेंट, फाउंडेशन और पेंशन योजनाओं के लिए नकदी की कमी हो गई है, जो हमेशा से वीसी की सबसे बड़ी निवेशक रही हैं। बड़ी कंपनियों को छोड़ दें तो आज वेंचर कैपिटल के लिए नई रकम जुटाना मुश्किल हो गया है।
उद्योग को तब परेशानी होती है, जब सात से आठ साल में निवेशकों का पूरा निवेश लौटा देने वाले फंड पूंजी लौटाने में 13 साल से अधिक समय लें। बेशक फंड पूरा निवेश लौटा दे मगर उसे लौटाने में अधिक समय लगने पर निवेशकों के लिए रिटर्न की आंतरिक दर कम हो जाती है।
भारत में स्थिति अलग है। हमारा आईपीओ बाजार सबके लिए खुला है और तीन साल में 250 से अधिक कंपनियां सूचीबद्ध हुई हैं। स्टार्टअप को सूचीबद्ध करने के लिए आज भारत सबसे उम्दा जगह है। ज्यादातर स्टार्टअप हमारे बाजारों में सूचीबद्ध होने के लिए वापस भारतीय कंपनी की शक्ल ले रही हैं।
फंडों में छोटे निवेशकों की रकम पहुंचने और सक्रिय प्रबंधन की लगातार कामयाबी के कारण नई कंपनियों को सूचीबद्ध कराने यानी नए निर्गमों की अच्छी खासी मांग है। लेकिन हमें पक्का करना होगा कि वीसी के निवेश के बल पर सूचीबद्ध हो रही नई कंपनियों के शेयर की कीमत ऐसी हो, जिससे छोटे निवेशकों को कमाई का मौका मिल जाए वरना वे इससे दूर ही रहेंगे।
वेंचर कैपिटल दिग्गजों को भी संस्थापकों पर सूचीबद्ध होने का दबाव बनाना होगा। मगर ऐसा तभी होगा, जब संस्थापकों और कर्मचारियों की नकदी की जरूरतें द्वितीयक तरीकों से पूरी नहीं होने दी जाएं। बोर्ड भी ज्यादातर कंपनियों के संस्थापकों को समझाए कि आखिरी लक्ष्य सूचीबद्धता ही होना चाहिए। वे हमेशा प्राइवेट बनकर नहीं रह सकतीं!
हमारे देश में वीसी तंत्र और स्टार्टअप की स्थिति अच्छी है। हमें पश्चिम से सीखना चाहिए और आईपीओ के जरिये निवेश निकालने का रास्ता बंद करने की उनकी गलती दोहराने से बचना चाहिए क्योंकि इससे निवेशकों को रकम वापस नहीं मिल पाती।
अंतिम निवेशकों के लिए निवेश पर रिटर्न की आंतरिक दर अच्छी रहे ताकि ने आगे भी फंडों में पैसा लगाते रहें। जब तक और वीसी फंड नहीं जुटाए जाते रकम जुटाने की व्यवस्था मजबूत नहीं होगी। यह सिलसिला लगातार चलता रहना चाहिए ताकि स्टार्टअप को जरूरी मदद और पूंजी मिल सके।
(लेखक अमांसा कैपिटल से जुड़े हैं)