देश के कई हिस्सों में सड़कों पर वाहनों की भरमार और इससे यातायात में होने वाली असुविधाओं से हम सभी अवगत हैं। लोग घंटों तक घर पहुंचने के लिए जद्दोजहद करते हैं और सड़कों पर अफरा-तफरी का माहौल रहता है। यह कहानी खत्म नहीं होती और हरेक साल दोहराई जाती है। ऐसा नहीं है कि सार्वजनिक प्राधिकरण इस गंभीर समस्या के प्रति असंवेदनशील हैं या कुछ करने की चाह नहीं रखते हैं। फ्रांस में एक कहावत काफी प्रचलित है- चीजें जितनी बदलती हैं उतनी ही वे जस की तस रहती हैं।
यातायात में व्यवधान और आपाधापी से समय और ऊर्जा दोनों की हानि होती है। इनका असर उत्पादकता एवं देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर होता है। हालांकि, इसका यह आशय भी नहीं निकाला जाना चाहिए कि सड़कों पर आवागमन सुगम एवं तेज होने से जीडीपी की वृद्धि दर में बड़ा बदलाव आ सकता है। यातायात व्यवस्था में सुधार नीतियों में छोटे-छोटे बदलावों का एक हिस्सा है। नीतियों में ये छोटे बदलाव जीडीपी वृद्धि दर में बड़ा बदलाव ला सकते हैं। जीडीपी वृद्धि दर जिस तेजी एवं क्षमता के साथ बढ़नी चाहिए उन अनुपात में नहीं बढ़ पाई है।
इस स्तंभ में कई सारी छोटी बातों में एक (यातायात व्यवस्था में सुधार) पर चर्चा हो रही है जो एक बदलाव ला सकती है। किसी भी स्थिति में यातायात व्यवस्था में सुधार के कई महत्त्वपूर्ण लाभ मिल सकते हैं, भले ही जीडीपी पर अकेले इसका बहुत असर दिखे या नहीं। सड़कों पर आवागमन सुगम नहीं रहने से आए दिन लोग तनाव, सड़कों पर कहासुनी और दुर्घटनाओं के शिकार होते रहते हैं। यातायात में सुधार के महत्त्व को देखते हुए यातायात व्यवस्था विकास अर्थशास्त्र और लोक नीति का महत्त्वपूर्ण हिस्सा होना चाहिए।
कुछ पाठक यह तर्क दे सकते हैं कि सड़कों पर यातायात व्यवस्था से जुड़ी समस्याएं भारत जैसे तेजी से उभरते एवं विकासशील अर्थव्यवस्था का एक जरूरी हिस्सा हैं जिनसे बचा नहीं जा सकता है। मगर ऐसा सोचना सही नहीं है। कई मानदंडों पर भारत तेजी से उभरते बाजार एवं विकासशील अर्थव्यवस्था की मानक छवि के साथ तालमेल नहीं बैठा पाता है। डिजिटल भुगतान केवल एक उदाहरण है। यह मामला प्राथमिकताओं का है जिसमें बदलाव होना जरूरी है। कम से कम यातायात प्रबंधन के संस्थान तो स्थापित किए ही जा सकते हैं।
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निवेश मूर्त या अमूर्त परिसंपत्तियां में किए जाते हैं। मूर्त परिसंपत्तियों में सड़क शामिल होते हैं। अमूर्त परिसंपत्तियों में एक सुदृढ़ प्रणाली भी शामिल होनी चाहिए ताकि यातायात परिचालन सुगम एवं सुरक्षित ढंग से हो सके। हम मूर्त परिसंपत्तियों पर काफी रकम खर्च कर रहे हैं मगर अमूर्त परिसंपत्तियों में बहुत कम निवेश कर रहे हैं। प्रायः ऐसा देखा जाता है कि चौड़ी सड़कों और फ्लाईओवर पर काफी रकम खर्च की जाती है मगर यातायात सुगम बनाने पर ध्यान नहीं जाता है। यह एक कारण है कि परिवहन क्षेत्र में बड़ा निवेश हमेशा संतुष्ट करने वाला और टिकाऊ नहीं होता है।
हम सदैव इस बात पर इतराते हैं कि भारत में विश्व स्तरीय राजमार्ग तैयार हो रहे हैं। मगर इसके लिए अवसर लागत काफी अधिक होती है। यह जरूरी नहीं है कि हमारे पास विश्व स्तरीय राजमार्ग हों लेकिन अच्छी सड़कें जरूर होनी चाहिए। अच्छी सड़कें बनाने और एक विश्व स्तरीय राजमार्ग बनाने में लागत का एक बड़ा अंतर हो सकता है। यानी विश्व स्तरीय राजमार्ग बनाने के बजाय अच्छी सड़कें बनाने से रकम की भी बचत होगी जिसका इस्तेमाल बड़े एवं छोटे शहरों में सड़क एवं यातायात व्यवस्था में सुधार के लिए किया जा सकता है। इससे एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचने में लगने वाला समय काफी कम हो जाएगा।
भारत के शहरों में वाहन खड़ी करने की जगह काफी कम है इसलिए लोग प्रायः सड़कों के एक हिस्से पर ही वाहन खड़ा करना शुरू कर देते हैं। इसका सीधा असर यातायात पर होता है और वाहनों के आवागमन में असुविधा होती है। मगर सबसे पहले तो यह यह प्रश्न उठता है कि देश में कार, बसें, ट्रक, तिपहिया वाहन आदि खड़े करने के लिए जगह (पार्किंग) क्यों कम है? इसका कारण यह है कि शहरों का नक्शा तैयार करते वक्त पार्किंग के लिए जगह नहीं छोड़ी जाती है। शहरों का नक्शा तैयार करने वाले सोचते हैं कि उन्हें घर बनाने के लिए जगह, कारोबारी प्रतिष्ठान आदि के लिए जगह उपलब्ध करने पर अधिक ध्यान देना चाहिए और पार्किंग जैसी जरूरतों पर बहुत माथापच्ची करने की आवश्यकता नहीं है। उनकी सोच अपनी जगह सही हो सकती है मगर हमें एक वृहद दृष्टिकोण पर विचार करने की आवश्यकता है।
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भारत के कुल भू क्षेत्रफल का केवल 0.2 प्रतिशत हिस्सा ही दस शीर्ष शहरों में इस्तेमाल होता है। यह आंकड़ा दर्शाता है कि शहरों के लिए जगह बढ़ाने के लिए काफी संभावनाएं मौजूद हैं। इससे मौजूदा एवं नए शहरों में पार्किंग के लिए भी जगह बढ़ाने का रास्ता खुल जाता है। अगर सड़कों पर कम वाहन खड़े रहते हैं तो इससे सड़कों की प्रभावी चौड़ाई भी बढ़ सकती है। ऐसा होने से यातायात भी सुगम हो जाएगा।
चालकों को लाइसेंस आवंटित करने के विषय पर भी विचार किया जा सकता है। फिलहाल लाइसेंस देने समय केवल इस बात का ध्यान रखा जाता है कि कोई व्यक्ति वाहन चला सकता है या नहीं। मगर हमें इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि लाइसेंस चाहने वाला व्यक्ति यातायात व्यवस्था में दूसरे लोगों को दिक्कत पहुंचाए बिना वाहन चला सकता है या नहीं। लाइसेंसिंग पॉलिसी में बदलाव से सड़कों पर यातायात व्यवस्था में सुधार करने में कुछ हद तक मदद मिल
सकती है।
इस स्तंभ में यातायात व्यवस्था से जुड़ी केवल कुछ समस्याओं एवं उनके संभावित समाधान पर विचार किया गया है। इनके अलावा भी कई समस्याएं हैं। वास्तव में नई एवं बड़ी सड़कें बनाने के बजाय यातायात सुगम एवं सुरक्षित बनाने के लिए मौजूद व्यवस्थाओं को और प्रभावी बनाने पर खर्च किया जाना अधिक जरूरी है।
(लेखक अशोक विश्वविद्यालय के अतिथि प्राध्यापक हैं।)