लॉकडाउन में ढील देने की शुरुआत हो चुकी है जबकि महामारी का प्रसार बढ़ता जा रहा है। ऐसे में सवाल यह है कि आने वाले वर्ष में हमारी स्वास्थ्य नीति कैसी होनी चाहिए? जन स्वास्थ्य की बात करें तो आबादी और पैमाने के आकलन में अहम अंतर है जो बेहतर निजी निर्णय का सबब बनेगा और सामाजिक दूरी के नियम तय करने की प्रक्रिया के विकेंद्रीकरण में भी। स्वास्थ्य सेवा क्षमता में व्यापक विस्तार करना समझदारी होगी। इसके लिए निजी स्वास्थ्य सेवा कंपनियों को साथ लेना होगा।
भारत ने मार्च के अंत में दुनिया के सबसे व्यापक और कड़ी शर्तों वाले लॉकडाउन के साथ शुरुआत की। अप्रैल के मध्य से प्रतिबंधों में कमी की प्रक्रिया शुरू की गई। रोजगार दर जो फरवरी के अंत में करीब 40 फीसदी थी वह मध्य अप्रैल तक घटकर 26 फीसदी थी और अब पुन: 29 फीसदी हो गई है। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में इसमें और सुधार होगा। रोजमर्रा का जीवन तेजी से सामान्य होने की दिशा में बढ़ रहा है।
इस बीच महामारी हमारे साथ बनी हुई है। संक्रमण और मौत के आंकड़ों में भी तमाम दिक्कतें हैं। हमें उनका इस्तेमाल करते हुए सतर्कता बरतनी चाहिए। हालांकि आंकड़े बताते हैं कि देश में बहुत बड़ी तादाद में लोग इससे संक्रमित हो चुके हैं और महामारी लगातार फैल रही है। उम्र आधारित संक्रमण की मृत्यु दर को अगर देश की आबादी पर लागू किया जाए तो बड़ी तादाद सामने आएगी। भविष्य के लिए जोखिम प्रबंधन वाला रुख सही होगा। हमें नहीं पता कि इसका नतीजा कितना बुरा होगा लेकिन इसकी आशंका अवश्य है। ऐसे में हमें आज से ही स्वास्थ्य नीति केे क्षेत्र में व्यापक प्रयास करने होंगे ताकि अगले एक वर्ष में महामारी का बेहतर प्रबंधन किया जा सके।
स्वास्थ्य नीति दो बातों पर निर्भर करती है एक बचाव और दूसरा इलाज। बचाव की बात करें तो आइसोलेशन और सामाजिक दूरी के मानक तरीके बहुत कारगर नहीं साबित हुए हैं। हां, केरल और तमिलनाडु कुछ हद तक इसके अपवाद हो सकते हैं।
जन स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहतर काम कैसे हो सकता है? हमेंं शहरोंं और जिला स्तर पर विकेंद्रीकृत तरीके से काम करना होगा ताकि पीसीआर और ऐंटीबॉडी टेस्टिंग के बारे में अनुमान लगाया जा सके और पता चले कि बीमारी का कितना प्रसार हुआ है? किस तरह के लोगों में प्रतिरक्षा विकसित हुई है? हम सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता हासिल करने से कितनी दूर हैं? यह आकलन एक साथ एक उपनगर और एक गांव में किया जाना चाहिए।
ये सारी जानकारी आवश्यक क्यों है? जब हर व्यक्ति के पास ऐंटीबॉडी और संक्रमित लोगों के बारे मेंं पूरी जानकारी होगी तो वह अपने रोजमर्रा के जीवन को लेकर भी बेहतर निर्णय कर पाएगा। दूसरी बात हर समुदाय इस आंकड़े का इस्तेमाल करके इस बारे में बेहतर निर्णय ले पाएगा कि चीजों को कैसे नए सिरे से शुरू करना है। बेहतर निर्णय लेने से महामारी को धीमा किया जा सकता है। लोग व्यक्तिगत स्तर पर तथा अपने पास पड़ोस को लेकर चाहे जितने बेहतर निर्णय लें बीमारी फैलेगी और काफी संभव है कि स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में हमारी क्षमताओं मेंं और अधिक इजाफा करना होगा। प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य सुविधा सुधारने के लिए काफी कुछ करना होगा।
देश में स्वास्थ्य सेवा का काफी हिस्सा निजी है। ऐसे में हमें दो में निजी क्षेत्र की स्वास्थ्य सुविधाओं का भरपूर इस्तेमाल करना होगा और व्यापक क्षमता हासिल करने के तरीके तलाशने होंगे। कुल मिलाकर एक विशालकाय स्वास्थ्य सेवा समस्या से जूझना होगा। खेद की बात है कि देश में निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र गहरी कठिनाइयों से जूझ रहा है। मरीजों को अपनी स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताओं को टालना पड़ रहा है क्योंकि उन्हें संक्रमण का डर है। राजस्व में कमी ने कई स्वास्थ्य सेवा कंपनियों के लिए वित्तीय मोर्चे पर भारी तनाव उत्पन्न कर दिया है। स्वास्थ्य सेवा नीति में इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि कोविड-19 को लेकर सामान्य सहायक चिकित्सा सुविधाओं की क्षमता बढ़ाई जा सके। जबकि मौजूदा वित्तीय और मानव संसाधन संबंधी समस्याओं के कारण क्षमता को काफी नुकसान पहुंचा है।
सरकारी संगठन यदाकदा बल प्रयोग निजी स्वास्थ्य सेवा इकाइयों का अधिग्रहण करते हुए भी देखे गए हैं। यह रुख तीन कारणों से निराश करने वाला है। पहला, एक विमानन कंपनी में विमान के अलावा भी कई तरह के काम और कई सेवाएं होती हैं। ठीक उसी तरह एक अस्पताल में भी उसके बुनियादी ढांचे और चिकित्सा उपकरणों के अलावा भी काफी कुछ होता है। अस्पताल सूचनाओं और प्रोत्साहन का एक जटिल संजाल होता है। यदि कोई राज्य सरकार उसके बुनियादी ढांचे का अधिग्रहण करती है तो उसकी संस्थागत क्षमता को तगड़ा नुकसान पहुंच सकता है क्योंकि संस्थान के समक्ष वित्तीय और मानव संसाधन का भीषण संकट उत्पन्न हो सकता है। दूसरी बात, देश के निराशाजनक परिदृश्य में देखा जाए तो हमें जितनी स्वास्थ्य सेवा क्षमता चाहिए, वह फिलहाल मौजूद नहीं है। ऐसी क्षमता एवं विकसित करने लायक प्रबंधकीय कौशल से लैस लोग केवल निजी क्षेत्र में हैं। परंतु राज्य का बल प्रयोग उनकी ऊर्जा और उनके जुनून को प्रेरित नहीं करता। तीसरा, सरकार की ओर से ऐसा कोई भी कदम निजी क्षेत्र को गलत संदेश देता है। इससे निजी क्षेत्र के लोगों के मन में देश में आने वाले दशकों का संगठनात्मक ढांचा बनाने की इच्छाशक्ति कमजोर पड़ती है।
हम इस मामले मेंं बेहतर प्रदर्शन कैसे कर सकते हैं? स्वास्थ्य सेवा नीति को यह पहचानने की जरूरत है कि देश में स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में 70 फीसदी दायित्व निजी फर्म निभाती हैं। यह अहम क्षेत्र फिलहाल एक संकट से गुजर रहा है और उसे इससे निजात की जरूरत है। नीति निर्माताओं को यह समझना होगा और निजी स्वास्थ्य फर्म द्वारा मुनाफे के लिए काम करने को खराब समझना बंद करना होगा। उन्हें मौजूदा हालात में बेहतर भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित करना होगा। स्थानीय और राज्य सरकारों को निजी स्वास्थ्य फर्म से कहना चाहिए कि वे कोविड-19 मामलों के लिए नई सुविधाएं बनाने के लिए स्वेच्छा से आगे आएं। इसके लिए सरकार का सार्वजनिक वित्त प्रबंधन सहज होना चाहिए। सरकार को एक इसकी शुरुआत तक एक तयशुदा कीमत चुकानी चाहिए ताकि निजी फर्म को जोखिम न हो। यदि आने वाले वर्ष में बड़े पैमाने पर लोगों को अस्पताल में भर्ती करना पड़ा तो ये चिकित्सा सुविधाएं हमारे काम आएंगी।
इसके लिए धन की आवश्यकता होगी। मोटे अनुमान बताते हैं कि इसके लिए निजी फर्मों को बहुत बड़े पैमाने पर धन उपलब्ध कराना होगा ताकि वे जांच और स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करा सकें। राजकोषीय योजना की भी आवश्यकता होगी जिसके माध्यम से ये संसाधन शहरों और जिलों तक पहुंच सकें।
(लेखक नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनैंस ऐंड पॉलिसी, नई दिल्ली में प्रोफेसर हैं।)