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भारत को जेपी मॉर्गन गवर्नमेंट बॉन्ड इंडेक्स-इमर्जिंग मार्केट्स (जीबीआई-ईएम) वैश्विक सूचकांक में शामिल किया गया है। इस वैश्विक सूचकांक में भारत का प्रवेश 28 जून, 2024 से शुरू होगा। जीबीआई-ईएम वैश्विक डायवर्सिफाइड सूचकांक में भारत का भारांश 10 प्रतिशत होगा। लेकिन यह एक ही बार में नहीं होगा। अगले साल जून से हर महीने इसमें एक-एक प्रतिशत का इजाफा होगा और मार्च 2025 तक यह 10 प्रतिशत हो जाएगा।
जून 2005 में पहले व्यापक वैश्विक स्थानीय उभरता बाजार सूचकांक के रूप में शुरू किया गया जीबीआई-ईएम उभरते देशों की सरकारों द्वारा जारी स्थानीय मुद्रा बॉन्ड का अनुकरण करता है। उसके पास 213 अरब डॉलर की प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियां हैं।
बाजार अक्टूबर 2021 से ही इसका इंतजार कर रहा था जब भारत को निगरानी सूची में रखा गया था और इस सूचकांक में शामिल किए जाने के लिए 60 प्रतिशत निवेशकों ने इसका समर्थन किया था। उस समय जेपी मॉर्गन ने कहा था कि सूचकांक में शामिल होने के लिए भारत को बाजार पहुंच, कारोबार और निपटान में सुधार करना होगा। लेकिन फरवरी 2022 में यूक्रेन पर हमले के बाद रूस को सूचकांक से बाहर कर दिया गया जिससे भारत की संभावनाएं और मजबूत हो गईं।
भारतीय रिजर्व बैंक ने पहली बार वित्त वर्ष 2014 में सूचकांक में शामिल किए जाने की संभावनाओं पर जेपी मॉर्गन के साथ चर्चा की थी। उस समय भारत चालू खाते के घाटे के बुरे दौर का सामना कर रहा था और अमेरिकी डॉलर की तुलना में रुपये के मूल्य में तेजी से गिरावट आई थी। परिपक्वता, निवेश की मात्रा और डेट साधन के स्वरूप के कारण भारतीय ऋण बाजार में विदेशी निवेश पर सख्त नियम थे। इसलिए ऐसा नहीं हो सका। लेकिन तब से परिदृश्य बदल गया है।
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लंदन स्टॉक एक्सचेंज समूह की सहायक कंपनी एफटीएसई रसेल ने भी भारत सरकार के बॉन्डों को अपनी निगरानी सूची में रखा हुआ है। जीबीआई-ईएम वैश्विक डाइवर्सिफाइड सूचकांक में शामिल किए जाने के बाद ब्लूमबर्ग ग्लोबल एग्रीगेट सूचकांक में भी भारत को शामिल किए जाने की संभावनाएं और मजबूत हो गई हैं। आईडीएफसी फर्स्ट बैंक के एक नोट में कहा गया है कि वाकई अगर ऐसा होता है तो इससे भारत में 15 से 20 अरब डॉलर का निवेश आ सकता है और भारत का वेटेज 0.6 फीसदी से 0.8 फ़ीसदी के बीच रह सकता है।
जीबीआई-ईएम वैश्विक डायवर्सिफाइड सूचकांक के साथ-साथ भारत को जेपी मॉर्गन के अन्य बॉन्ड सूचकांकों में भी शामिल किए जाने की उम्मीद है। इनमें एशिया (जापान छोड़कर) स्थानीय मुद्रा बॉन्ड सूचकांक, जिसे जेएडीई (जेड) ग्लोबल डायवर्सिफाइड सूचकांक भी कहते हैं, जेड ब्रॉड डायवर्सिफाइड इंडेक्स और स्थानीय मुद्रा सूचकांकों से संबंधित अन्य एग्रीगेट समूह सूचकांक शामिल हैं। इस तरह के सूचकांकों में भारत का वेट मार्च 2025 तक के अगले 10 महीनों में 15 से 20 प्रतिशत के बीच होगा। उभरते बाजारों के जेपी मॉर्गन सरकारी बॉन्ड सूचकांकों के पास 236 अरब डॉलर की प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियां हैं।
भारत का सरकारी बॉन्ड बाजार चीन और ब्राजील के बाद उभरती अर्थव्यवस्थाओं के बीच सबसे बड़ा- करीब 1.2 ट्रिलियन डॉलर का है। लेकिन इसे वैश्विक सूचकांक में शामिल होने में इतना लंबा समय लग गया।
जून 2021 से आरबीआई अपने कुछ रिपोर्टिंग मानदंडों को बेहतर बना रहा था और सरकारी बॉन्ड खरीदने के लिए विदेशी निवेशकों को ज्यादा गुंजाइश दे रहा था। उसने बैंकों को यह भी इजाजत दे दी थी कि वह मार्जिन जरूरत के लिए विदेशी निवेशकों को उधार दे सकते हैं।
इससे पहले 2020 में रिजर्व बैंक ने कुछ खास किस्म के बॉन्डों पर विदेशी स्वामित्व की सीमा हटा ली थी और इसकी जगह पूरी तरह पहुंच का रास्ता (एफएआर) शुरू किया था। अभी इस तरह के 23 बॉन्ड हैं जिनकी कुल बकाया राशि 330 अरब डॉलर है। ये सब बॉन्ड जीबीआई-ईएम वैश्विक सूचकांक समूह में शामिल होने के पात्र हैं। जेपी मॉर्गन के एक नोट में अनुमान लगाया गया है कि जीबीआई-ईएम वैश्विक डायवर्सिफाइड में 10 प्रतिशत और जीबीआई-ईएम ग्लोबल सूचकांक में 8.7 प्रतिशत की अधिकतम अनुमति सीमा तक भारत का वेट पहुंच जाएगा।
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सूचकांक में शामिल होने के लिए पात्र बॉन्डों की सांकेतिक राशि (नोशनल अमाउंट) कम से कम एक अरब डॉलर और परिपक्वता ढाई साल होनी चाहिए। इसलिए शुरुआत में वही बॉन्ड इसके लिए पात्र होंगे जिनको एफएआर का दर्जा हासिल है और जो 31 दिसंबर 2026 के बाद परिपक्व हो रहे हैं।
वैश्विक बॉन्ड सूचकांक में भारत को शामिल किए जाने की देरी पर विश्लेषक कई कारण देते रहे हैं। इनमें एक है कराधान की ऊंची दर। अगर किसी बॉन्ड को 1 साल के भीतर बेच दिया जाता है तो उस पर 30 प्रतिशत तक पूंजी लाभ कर लगता है। इसके अलावा विदेशी निवेशकों को ब्याज आय पर 20 फीसदी का विदहोल्डिंग कर भी देना होता है।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेश का खाता खोलने की मौजूदा प्रक्रिया भी काफी जटिल है। इसमें नो योर कस्टमर जैसे सख्त केवाईसी नियम शामिल हैं। लेकिन एक बात तय है कि भारत बुनियादी ढांचे-कारोबार, निपटान और पारदर्शिता- के लिहाज से सबसे आधुनिक बाजार है और ज्यादातर विकसित अर्थव्यवस्थाओं से बेहतर है।
भारतीय क्लीयरिंग कॉरपोरेशन, जो सरकारी बॉन्ड बाजार का निपटान संभालता है, के नवीनतम आंकड़ों को देखें तो विदेशी निवेशकों के पास करीब 8.4 अरब डॉलर के बॉन्ड हैं जो उनके खरीदने की अनुमति सीमा 15 फीसदी से कम है। उनकी सीमा करीब 60 अरब डॉलर है जिसमें राज्य विकास ऋण या एसडीएल भी शामिल हैं। एसडीएल में तो उनका निवेश न के बराबर यानी उनकी सीमा के एक प्रतिशत से भी कम है।
जब से हमने विदेशी निवेशकों के लिए पूंजी बाजार खोला है, डेट में विदेशी निवेश इक्विटी का मोटे तौर पर एक तिहाई रहा है। ऐसे भी कई साल रहे हैं जब डेट में निवेश घटा। हालांकि आर्थिक उदारीकरण के बाद सितंबर 1992 में इक्विटी बाजारों को विदेशी निवेशकों के लिए खोल दिया गया था। लेकिन डेट में विदेशी निवेश के नियम 1995 में जारी किए गए और वर्ष 1997 में 29 करोड़ रुपए का पहला निवेश डेट में आया।
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जेपी मॉर्गन के इस कदम के बाद उम्मीद है कि 22 से 25 अरब डॉलर का विदेशी निवेश चरणबद्ध तरीके से भारत आएगा। अगर ब्लूमबर्ग और एफटीएसई रसेल भी जेपी मॉर्गन की तर्ज पर चलते हैं तो यह निवेश और भी बढ़ सकता है। इससे भारतीय बॉन्डों में स्थिर किस्म का निवेश भी आएगा। यह निफ्टी में इंडेक्स फंड निवेश जैसा होगा जहां किसी खास सूचकांक के शेयर में उसके वेट के हिसाब से निवेश आता है। ऋण बाजार में विदेशी निवेशकों के बढ़ने से हमारे बैंकों पर कुछ दबाव कम होगा और कर्ज के लिए उन्हें अधिक धन उपलब्ध होगा क्योंकि ऋण की मांग बढ़ रही है और इस मांग के अनुरूप बैंक जमा नहीं बढ़ रही है।
अंत में कुछ चुनौतियां भी हैं। जनवरी 2024 में जेपी मॉर्गन सूचकांक के अनुकूल बाजारों में वैश्विक फॉर्मेट में बढ़ी हुई तरलता की जांच शुरू करेगा। भारत के बहुत सारे बॉन्ड लिक्विड नहीं हैं। आरबीआई को यह बात ध्यान रखनी होगी। किसी भी तरह की बाहरी या आंतरिक नकारात्मक घटना से विदेशी निवेशक निकल भी सकते हैं जिससे उतार-चढ़ाव बढ़ेगा और बॉन्ड की कीमतें प्रभावित होंगी।