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कितना कारगर साबित हो सकता है ‘बैड बैंक’?

Last Updated- December 12, 2022 | 12:40 AM IST

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जब से ‘बैड बैंक’ के लिए 30,600 करोड़ रुपये की सरकारी गारंटी की घोषणा की है तब से बैंकिंग जगत के शीर्ष लोगों के हाव-भाव बदल गए हैं। जब बैड बैंक व्यावसायिक बैंकों से 2 लाख करोड़ रुपये मूल्य के फंसे ऋण खरीदने के बदले सिक्योरिटी रिसीट (एसआर) जारी करेगा तो इन पर सरकार अपनी गारंटी देगी। कम से कम 30,600 करोड़ रुपये की वसूली तो तय है। फंसे ऋण में संभावित खरीदारों ने दिलचस्पी दिखानी भी शुरू कर दी है और इनमें कई वैश्विक इकाइयां भी हैं। 

आखिर राष्ट्रीय परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी लिमिटेड (एनएआरसीएल), जिसे बैड बैंक नाम दिया गया है, किस तरह काम करेगा? सभी बैंकों ने बैड बैंक में कुछ न कुछ हिस्सेदारी ली है मगर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की बहुलांश हिस्सेदारी होगी। बैड बैंक 2 लाख करोड़ रुपये के पुराने फंसे ऋण बैंकों से खरीदेगा। यानी बैंकों को बैड बैंक से 30,600 करोड़ रुपये मिलेंगे। एनएआरसीएल बैंकों को 15 प्रतिशत नकद रकम देगा और शेष 85 प्रतिशत एसआर के रूप में होगी। बैंकों को अग्रिम रकम के रूप में मोटे तौर पर 5,400 करोड़ रुपये मिलेंगे जो बैड बैंक में उनकी तरफ से किए गए निवेश के लगभग बराबर होगी। 

इस आधार पर बैंकिंग क्षेत्र के लिए लेनदेन नकद रकम के लिहाज से मायने नहीं रखेगा मगर प्रत्येक बैंक के मामले में यह सही नहीं होगा। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि कोई बैंक कितनी गैर-निष्पादित आस्तियां (एनपीए) बेच रहा है और उसने बैड बैंक में कितना निवेश किया है। बैड बैंक के कार्यकाल की कोई अवधि तो तय नहीं है मगर सरकारी गारंटी पांच वर्षों के लिए वैध रहेगी। अभी यह नहीं कहा जा सकता कि बैड बैंक पांच वर्षों के बाद प्रभाव में रहेगा या नहीं। इसका स्वयं अपना प्रदर्शन और भारतीय बैंकिंग जगत के हालात बैड बैंक का भविष्य तय करेंगे। अगर अगले कुछ वर्षों के दौरान फंसे ऋण की तादाद अचानक बढऩे लगी तो बैड बैंक अस्तित्व में रह सकता है। 

एनएआरसीएल पंजीकृत हो चुकी है और बैंकिंग उद्योग 91,000 करोड़ रुपये मूल्य के दो दर्जन से अधिक फंसे ऋण की पहचान कर चुका है। इस सूची में वीडियोकॉन ऑयल वेंचर्स लिमिटेड, रिलायंस नेवल ऐंड इंजीनियरिंग लिमिटेड, एमटेक ऑटो लिमिटेड, जेपी इन्फ्राटेक लिमिटेड, कास्टेक्स टेक्नोलॉजीज, जीटीएल लिमिटेड, वीजा स्टील लिमिटेड और लवासा कॉर्पोरेशन सहित अन्य कंपनियों को दिए ऋण शामिल हैं। इनमें प्रत्येक मामले में बैंकिंग उद्योग के कम से कम 500 करोड़ रुपये के ऋण जरूर फंसे हैं। वीडियोकॉन ऑयल वेंचर्स का मामला सबसे अधिक संगीन है जिसमें 22,500 करोड़ रुपये दांव पर हैं। इनमें कई मामलों में भारतीय स्टेट बैंक, आईडीबीआई बैंक, पंजाब नैशनल बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया और इंडियन ओवरसीज बैंक अग्रणी ऋणदाता रहे हैं। एनएआरसीएल मौजूदा 28 परिसंपत्ति पुनगर्ठन कंपनियों से किस तरह अलग है? इनमें कई तो डेढ़ दशक से अधिक पुरानी हो चुकी हैं। बैड बैंक कई मायनों में अलग है। बैंकिंग उद्योग में फंसे ऋण की समस्या से निपटने के लिए किए गए उपाय का एनएआरसीएल पहला हिस्सा है। दूसरा हिस्सा  इंडिया डेट रीकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड (आईडीआरसीएल) है। यह एक परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी के तौर पर काम करेगी मगर तकनीकी रूप में यह गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) होगी जिसका नियमन भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) करेगा। एनआरसीएल फंसे कर्ज बैंकों से बटोरेगी जबकि आईडीआरसीएल इनकी समाधान योजना को अंजाम तक पहुंचाएगी। यह संरचना मौजूदा परिसंपत्ति पुनगर्ठन कंपनियों से अलग होगी, बैंकों से ऋण खरीदने के साथ ही उनकी समाधान योजना भी स्वयं तैयार करती हैं। 

चूंकि, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक की एनएआरसीएल में बहुलांश हिस्सेदारी होगी इसलिए फंसे ऋण एकत्रित करने में कोई समस्या नहीं आएगी। ऐसे ऋण की पहली किस्त की पहचान हो चुकी है और बैंक 1.09 लाख करोड़ रुपये मूल्य के फंसे ऋण की दूसरी किस्त की पहचान करने में जुट गए हैं। आईडीआरसीएल में निजी क्षेत्र की बहुलांश हिस्सेदारी होगी इसलिए जांच एजेंसियों के दायरे में यह नहीं आएगी। इससे बिना किसी बाधा के फंसे ऋण का समाधान करने में मदद मिलेगी। 

चूंकि, बैंक फंसे ऋण के लिए पहले ही आवश्यक प्रावधान कर चुके हैं इसलिए जो कुछ भी रकम वसूली जाएगी वह उनके मुनाफे में जुड़ जाएगी। सभी मामले निपटाए जाने के बाद बैंकों को इन परिसंपत्तियों के कुल मूल्य के 18 प्रतिशत से अधिक रकम भी मिल सकती है। एनएआरसीएल को जितने फंसे ऋण खाते स्थानांतरित किए जा रहे हैं वे सभी पेचीदा हैं। इनमें ज्यादातर मामले बिजली, सड़क और ढांचागत क्षेत्र के अन्य खंडों से संबंधित हैं। ये परियोजनाएं राजस्व अर्जित नहीं कर पा रही हैं इसलिए इन्हें आवंटित ऋण पर भुगतान नहीं हो पा रहा है। 

फंसे ऋण के समाधान के लिए किया गया यह प्रयोग आईडीआरसीएल की प्रबंधन टीम और इसके कर्मचारियों के लिए प्रोत्साहन संरचना पर निर्भर करेगा। अगर कंपनी बाजार में उपलब्ध श्रेष्ठ प्रतिभाएं अपने साथ लाती है और 18 प्रतिशत से अधिक ऋण वसूली पर प्रोत्साहन देने में नहीं हिचकती है तो कुल प्राप्त रकम बैंकिंग उद्योग की अपेक्षा से अधिक यह हासिल कर सकती है। हालांकि कई लोगों का कहना है कि इस पूरी कवायद में काफी देरी हो चुकी है। इनमें कई परियोजनाएं जिनकी बिक्री होगी वे अधर में लटक गई हैं या इनके मूल्य में ह्रास हो चुका है। लेकिन कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर शांत पडऩे के बाद अब उपभोक्ता मांग बढ़ रही है। पुरानी परियोजनाएं लेने वालों की कमी नहीं होनी चाहिए। बैंकों के साथ इससे वास्तविक अर्थव्यवस्था को भी लाभ होगा। दिवालिया एवं ऋण शोधन अक्षमता प्रक्रिया फंसे ऋण की वसूली में कई कारणों से सुस्त रही है। अगर परियोजनाओं का क्रियान्वयन सही ढंग से एक मुस्तैद प्रबंधन के हाथों होगा तो बैड बैंक फंसे ऋण की अधिक से अधिक वसूली में कारगर साबित हो सकता है।

First Published - September 29, 2021 | 11:26 PM IST

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