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Editorial: जीएसटी अपील पंचाट शुरू, टैक्स विवाद सुलझाने में आएगी तेजी

बुधवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जीएसटी अपील पंचाट (जीएसटीएटी) की शुरुआत की जिसे एक और बड़ा सुधार माना जा रहा है

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- September 25, 2025 | 10:59 PM IST

हाल के हफ्तों में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) ढांचे में काफी सुधार दिखे हैं। सबसे पहले तो कर दरें सरल बनाकर जीएसटी व्यवस्था को एक नया रूप दिया गया। अब जीएसटी व्यवस्था में मुख्य रूप से केवल दो दरें रह गई हैं और कुछ अहितकर वस्तुओं पर ऊंचे कर का प्रावधान किया गया है। इस कदम से जीएसटी की संरचना काफी सरल हो गई है। बुधवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जीएसटी अपील पंचाट (जीएसटीएटी) की शुरुआत की जिसे एक और बड़ा सुधार माना जा रहा है। जीएसटी संरचना में इस इकाई की कमी महसूस हो रही थी। कानून में इस इकाई का जिक्र है मगर कुछ चुनौतियों के कारण इसकी स्थापना में विलंब हो गया। इसका नतीजा अब यह होगा कि जीएसटीएटी 4,80,000 अपील के शुरुआती बोझ के साथ अपना काम शुरू करेगा।

इस पंचाट का मुख्य पीठ राष्ट्रीय राजधानी में होगा और अगले वित्त वर्ष से यह अग्रिम निर्णय के लिए राष्ट्रीय अपील प्रा​धिकरण के रूप में कार्य करेगा। इस तरह यह कर प्रशासन में स्पष्टता लाने में मदद करेगा। इस पंचाट में 31 राज्य पीठ होंगे और प्रत्येक में दो न्यायिक सदस्य और केंद्र और राज्य दोनों से एक तकनीकी सदस्य होंगे। शुरू में राज्य पीठों, जिनमें एक न्यायिक सदस्य का प्रावधान था, को चुनौती दी गई थी। कानून के अंतर्गत जीएसटी में त्रि-स्तरीय अपील संरचना का प्रावधान है जिनमें सबसे पहले अपील प्राधिकरण, उसके बाद अपील न्यायाधिकरण या पंचाट और अंत में उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय हैं। अब अपील पंचाट की शुरुआत के साथ जीएसटी प्रशासन में अधिक पारदर्शिता और तेजी आनी चाहिए।

अब इस पंचाट की स्थापना हो चुकी है और यह अपील पर सुनवाई शुरू कर देगा, इसलिए कुछ पहलुओं पर पैनी नजर रखने की जरूरत होगी। सबसे पहले पीठों में पर्याप्त बुनियादी सुविधाएं एवं मानव संसाधन होने चाहिए। बड़ी तादाद में मामले धूल फांक रहे हैं जिन पर जल्द से जल्द सुनवाई करनी होगी। पंचाट में क्षमतागत चुनौतियों से इसका हाल भी वृहद न्यायिक प्रणाली की तरह हो सकता है। इस बिंदु पर विचार करना जरूरी है कि संस्थानों के पास पर्याप्त संसाधन एवं सुविधाएं नहीं होने से दुरुस्त सोच एवं उद्देश्य वाले कानून भी औसत नतीजे ही दे पाते हैं। ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवाला संहिता का हाल हम देख ही चुके हैं।

असाधारण देरी, जिसके लिए आंशिक रूप से क्षमतागत बाधाएं भी जिम्मेदार हैं, से नतीजों पर गंभीर असर हो रहा है। हमें यह बात अवश्य समझनी होगी कि व्यावसायिक मामलों में समाधान में देरी होने से कारोबार करने पर लागत खासी बढ़ जाती है। पर्याप्त क्षमता के अभाव से उत्पन्न चुनौतियों के कारण निर्णयों की गुणवत्ता पर भी असर होता है जिससे न्यायपालिका में ऊंचे स्तरों पर बोझ काफी बढ़ जाता है।

कर अधिकारियों को कारोबारों के खिलाफ कदम उठाने से पहले अधिक सावधानी बरतने की जरूरत है। कर की अत्यधिक मांग से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों तरह के करों के मामलों में विवाद काफी बढ़ जाते हैं जिन्हें दूर करना जरूरी है। यह कोई नहीं कह रहा कि कर चोरी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होनी चाहिए मगर इस बात का भी ख्याल रखा जाना चाहिए कि सही एवं ईमानदार कारोबारियों को बेवजह प्रताड़ित नहीं होना पड़े।

इसके अलावा, जीएसटी प्रणाली में कर श्रेणियां कम होने से यह अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था सरल हो जाएगी मगर प्रक्रियाओं को और सरल बनाए जाने की जरूरत है। प्रक्रिया सरल होने विवाद स्वयं ही कम हो जाएंगे। जो भी हो, देरी के बावजूद अपील पंचाट की स्थापना के बाद जीएसटी तंत्र की कार्य व्यवस्था में सुधार होना चाहिए। विचाराधीन अपीलों का समाधान होने से संबंधित पक्षों के लिए स्थिति स्पष्ट हो जाएगी और संभवतः भविष्य में कानूनी विवाद भी कम हो जाएंगे। इन बातों के बावजूद जीएसटीएटी के अंतर्गत निकट भविष्य में होने वाली प्रगति पर करीबी नजर रखनी होगी।

First Published : September 25, 2025 | 10:52 PM IST