भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) की छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की इस सप्ताह बैठक त्योहारी मौसम में हो रही है। ऑनलाइन लेनदेन पर नजर रखने वाली शुरुआती रिपोर्ट के अनुसार मांग में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। आने वाले हफ्तों में जब कंपनियां अपने मासिक और तिमाही आंकड़े जारी करेंगी तो तस्वीर और साफ हो जाएगी लेकिन वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) दरों में संशोधन का असर लोगों की खरीदारियों पर पड़ने की संभावना है। जीएसटी प्रणाली में अब केवल दो मुख्य दरें रह गई हैं जिससे अधिकांश वस्तुओं पर कर कम हो गया है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि यह स्थिति चालू वित्त वर्ष के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) संबंधी एमपीसी के अनुमानों को किस हद तक प्रभावित करती है। यह अनुमान बढ़ाया जा सकता है क्योंकि पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में जीडीपी वृद्धि दर 7.8 फीसदी रही जबकि एमपीसी का अनुमान इससे कम यानी 6.5 फीसदी था। एक नकारात्मक पहलू यह है कि अनुमानों में अमेरिकी शुल्क के प्रभाव भी शामिल करने होंगे। हालांकि, सच कहा जाए तो यह स्पष्ट नहीं है कि ऊंचे शुल्कों का दौर कब तक चलेगा। भारतीय वार्ताकार व्यापार की पारस्परिक रूप से स्वीकार्य शर्तों पर पहुंचने के लिए अपने अमेरिकी समकक्षों के साथ काम कर रहे हैं।
कुल मिलाकर, आर्थिक वृद्धि दर इस समय एमपीसी के लिए बड़ी चिंता का विषय नहीं होना चाहिए। मुद्रास्फीति के मोर्चे पर देखें तो एमपीसी ने अगस्त में अपनी पिछली बैठक में चालू वित्त वर्ष में दर औसतन 3.1 फीसदी रहने का अनुमान लगाया था जिसे कुछ विश्लेषक अधिक बता रहे हैं। जीएसटी दरों में कमी के बाद निकट भविष्य में मुद्रास्फीति दर भी कम होने की संभावना है, हालांकि एमपीसी इस पर विचार करने या अनदेखा करने का विकल्प चुन सकती है। भले ही हाल के महीनों में मुद्रास्फीति अनुकूल स्तर पर रही हो लेकिन मौद्रिक नीति दूरदर्शी बनाए जाने की जरूरत है। इस संबंध में, एमपीसी की अगस्त की बैठक में चालू वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही के लिए 4.4 फीसदी मुद्रास्फीति दर का अनुमान लगाया गया था, जो 2026-27 की पहली तिमाही के लिए बढ़कर 4.9 फीसदी हो गई।
अगर ये अनुमान बरकरार रहते हैं तो फिर नीतिगत ब्याज दरों में कटौती की गुंजाइश नहीं है। इस तरह, एमपीसी का निर्णय इन अवधियों और उनके बाद के अनुमानों से प्रभावित होगा। भविष्य में दर में कटौती की गुंजाइश तभी बनेगी जब अगले वित्त वर्ष के मुद्रास्फीति अनुमान 4 फीसदी के लक्ष्य से काफी नीचे चले जाएं। इस साल अच्छे मॉनसून (जिससे रबी की फसलों को भी मदद पहुंचेगा) के कारण खाद्य मुद्रास्फीति सहज रहने की संभावना है, जबकि मुख्य मुद्रास्फीति 4 फीसदी के लक्ष्य से ऊपर रही है। कुछ विश्लेषकों ने आने वाली तिमाहियों में मुद्रास्फीति नरम रहने का अनुमान लगाया है लेकिन एमपीसी का निर्णय स्वयं इसके संशोधित अनुमानों पर निर्भर करेगा।
एमपीसी कम से कम दो अन्य पहलुओं पर भी विचार करेगी। पहला, मांग बढ़ाने के लिए राजकोषीय प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं। शुरू में आयकर राहत के माध्यम से और अब जीएसटी दरों में कमी के जरिये मांग बढ़ाने के प्रयास हो रहे हैं। क्या आरबीआई को दरें अपरिवर्तित रखनी चाहिए या नीतिगत दर में कटौती के साथ मांग का समर्थन करना चाहिए?
दूसरी बात, क्या मौजूदा स्तर पर ब्याज दर में कटौती वास्तव में मांग को ताकत देगी? उल्लेखनीय है कि नीतिगत दरों में कटौती का बाजार में ब्याज दरों में प्रसार सुचारू नहीं रहा है। 10-वर्षीय सरकारी बॉन्ड पर यील्ड 6 जून को नीतिगत दर में 50 आधार अंक की कटौती के बाद वास्तव में लगभग 25 आधार अंक बढ़ गई है। इस तरह, मौजूदा स्तर पर ब्याज दर में 25 आधार अंक की एक और कटौती से बहुत मदद नहीं मिलेगी। लिहाजा, मौजूदा वृहद आर्थिक हालात को देखते हुए एमपीसी के लिए यथास्थिति बनाए रखना और अगले कुछ महीनों के दौरान आर्थिक वृद्धि, मुद्रास्फीति और राजकोषीय स्थितियों पर नजर बनाए रखना ही उचित रहेगा।