facebookmetapixel
AI की एंट्री से IT इंडस्ट्री में बड़ा बदलाव, मेगा आउटसोर्सिंग सौदों की जगह छोटे स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट‘2025 भारत के लिए गौरवपूर्ण उपलब्धियों का वर्ष रहा’, मन की बात में बोले प्रधानमंत्री मोदीकोल इंडिया की सभी सब्सिडियरी कंपनियां 2030 तक होंगी लिस्टेड, प्रधानमंत्री कार्यालय ने दिया निर्देशभारत में डायग्नॉस्टिक्स इंडस्ट्री के विस्तार में जबरदस्त तेजी, नई लैब और सेंटरों में हो रहा बड़ा निवेशजवाहर लाल नेहरू पोर्ट अपनी अधिकतम सीमा पर पहुंचेगा, क्षमता बढ़कर 1.2 करोड़ TEU होगीFDI लक्ष्य चूकने पर भारत बनाएगा निगरानी समिति, न्यूजीलैंड को मिल सकती है राहतपारेषण परिसंपत्तियों से फंड जुटाने को लेकर राज्यों की चिंता दूर करने में जुटी केंद्र सरकार2025 में AI में हुआ भारी निवेश, लेकिन अब तक ठोस मुनाफा नहीं; उत्साह और असर के बीच बड़ा अंतरवाहन उद्योग साल 2025 को रिकॉर्ड बिक्री के साथ करेगा विदा, कुल बिक्री 2.8 करोड़ के पारमुंबई एयरपोर्ट पर 10 महीने तक कार्गो उड़ान बंद करने का प्रस्वाव, निर्यात में आ सकता है बड़ा संकट

निवेश में कमी से बढ़ती चिंता

Last Updated- January 15, 2023 | 11:31 PM IST
investment
इलस्ट्रेशन- अजय मोहंती

भारत में बड़ी नीतिगत चुनौतियों में से एक है आर्थिक गतिविधियों में तेजी लाना और उनमें सुधार की गति बढ़ाना। हालांकि इस संदर्भ में काफी कुछ निवेश की स्थिति में सुधार पर निर्भर करता है, जिसमें कुछ समय से सुस्ती छाई हुई है। इसके लिए सरकार सार्वजनिक निवेश को बढ़ावा देती रही है ताकि निजी निवेश मिले, लेकिन इसमें ज्यादा सफलता नहीं मिली है। हालांकि इससे जुड़े कारक जैसे बैंक और कॉरपोरेट बैलेंस शीट में सुधार दिख रहा है मगर निवेश में सुधार दिखने में अभी कुछ समय लग सकता है।

अहम बात यह है कि भारत इस संदर्भ में अपवाद नहीं है। कोविड-19 महामारी आने से पहले ही विकासशील दुनिया के अधिकतर देश निवेश में कम वृद्धि की दिक्कतों से जूझ रहे थे। विश्व बैंक की हाल ही में आई ‘ग्लोबल इकनॉमिक प्रॉस्पेक्ट्स’ रिपोर्ट में प्रकाशित एक शोध अध्ययन के अनुसार विकासशील देशों में वास्तविक निवेश वृद्धि 2010 के लगभग 11 प्रतिशत से कम होकर 2019 में 3.4 प्रतिशत रह गई। चीन को छोड़ दें तो निवेश वृद्धि में और भी तेज गिरावट देखी गई। 2010 के 9 प्रतिशत से घटकर 2019 में यह 0.9 प्रतिशत ही रह गई।

वास्तविक निवेश में वृद्धि वास्तव में उत्पादकता बढ़ाने और आमदनी में वृद्धि के माध्यम से दीर्घकालिक एवं टिकाऊ आर्थिक वृद्धि बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कम निवेश का अर्थ विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर कम प्रगति होना है, जिससे संभावित वृद्धि भी प्रभावित होगी। हालांकि विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में एक जैसे ही देश शामिल नहीं हैं। जिंसों का निर्यात करने वाले कई देशों को वैश्विक वित्तीय संकट के बाद के वर्षों में कम कीमतों के कारण नुकसान उठाना पड़ा, जिसके आंकड़े इस अध्ययन में पेश किए गए हैं। इससे संकेत मिले कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिति चिंताजनक है।

कोविड-19 महामारी ने दुनिया भर की आर्थिक गतिविधियां प्रभावित की हैं और निवेश की मांग पर बड़ा प्रभाव पड़ा। अनुमान है कि लगभग 70 प्रतिशत उभरते बाजारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को 2020 में निवेश में कमी से जूझना पड़ा है। वैश्विक वित्तीय संकट के बाद के शुरुआती वर्षों की तुलना में महामारी के बाद सुधार बहुत धीमा रहा है।

ध्यान रहे कि निवेश समग्र आर्थिक गतिविधियों पर निर्भर करता है। वैश्विक अर्थव्यवस्था की धीमी रफ्तार और विकसित दुनिया के बड़े हिस्सों में संभावित मंदी से सुधार की संभावना आगे के लिए टल जाएगी। अमेरिका या यूरो क्षेत्र की उत्पादन वृद्धि में 1 प्रतिशत गिरावट से विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में कुल निवेश वृद्धि 2 प्रतिशत तक घट सकती है।

विकसित अर्थव्यवस्थाओं की मौद्रिक नीतियों में अनुमान से ज्यादा सख्ती आने और वैश्विक वित्तीय स्थिति जटिल होने के साथ ही अधिक सार्वजनिक ऋण के कारण निवेश का समर्थन करने के लिए विभिन्न देशों में सरकारों की क्षमता प्रभावित होगी। कम निवेश से दुनिया के बड़े हिस्सों में दीर्घकालिक वृद्धि संभावना प्रभावित होंगी, जिसका असर वैश्विक वृद्धि पर होगा।

कुछ घरेलू कारकों के अनुकूल होने के बावजूद भारत में निवेश की रफ्तार बढ़ने की संभावनाओं पर वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों का प्रभाव पड़ेगा। वैश्विक स्तर पर बनी अनिश्चितता की स्थिति और उत्पादन वृद्धि में कमी से भारतीय कंपनियां आक्रामक तरीके से निवेश शुरू करने के लिए प्रोत्साहित नहीं होंगी भले ही क्षमता की उपयोगिता बेहतर हो जाए। निवेश में होने वाले सुधार में देर की आशंका से भी आगामी केंद्रीय बजट में नीति निर्माताओं के लिए विकल्प चुनना और कठिन हो जाएगा।

इसका मतलब यह होगा कि सरकार को निवेश जारी रखना होगा, भले ही राजकोषीय घाटे को जल्द से जल्द नीचे लाने की जरूरत क्यों न हो। यहां यह भी ध्यान देना होगा कि मुद्रास्फीति दर में अपेक्षित कमी से अगले वित्त वर्ष में राजस्व संग्रह भी प्रभावित हो सकता है। ऐसे में पूंजीगत खर्च जारी रखने के लिए राजस्व बचत के माध्यम से संसाधनों का इंतजाम करने और राजकोषीय घाटा कम करने से पीछे नहीं हटने की चुनौती होगी। राजकोषीय घाटा लगातार ऊंचा रहने से व्यापक आर्थिक जोखिम बढ़ सकते हैं, जिनमें बाहरी मोर्चे की चुनौतियां भी शामिल हैं।

First Published - January 15, 2023 | 11:31 PM IST

संबंधित पोस्ट