मैं जेम्स बॉन्ड सीरीज की फिल्मों का जबर्दस्त फैन हूं। इसके मद्देनजर मैं रिलायंस इन्फोकॉम को
बेशक इस पूरे घटनाक्रम ने रिलायंस को टेलिकॉम सेक्टर में जीरो से हीरो (नंबर 2 और 3 खिलाड़ी की कतार में) बना दिया, लेकिन इसे इत्तफाक ही कहा जा सकता है। बीजेपी केअरुण शौरी द्वारा रिलायंस के लिए यह ‘पुनीत‘ काम किए जाने के बाद आमराय यही थी कि अब रिलायंस टेलिकॉम के बाकी खिलाड़ियों केसाथ मुकाबला करने की स्थिति में सक्षम हो चुकी है।
अगर अपनी वही व्याख्या को फिर से आगे बढ़ाऊं
, तो रिलायंस कम्यूनिकेशंस के सीडीएमए लाइसेंस को जीएसएम मोबाइल केलिए उपयुक्त मानने और कंपनी को जीएसएम स्पेक्ट्रम अवॉर्ड करने के दूरसंचार मंत्री ए. राजा का फैसला भी महज ‘संयोग‘ है। हालांकि विडंबना यह है कि स्पेक्ट्रम आवंटन की प्रक्रिया में शामिल अन्य कंपनियां (रिलायंस को इसमें शामिल करने का मकसद अन्य कंपनियों को जीएसएम स्पेक्ट्रम प्रक्रिया में शामिल करना था) स्पेक्ट्रम पाने से मरहूम रह गईं।
दरअसल राजा ने इस पूरे मामले को इतना उलझा दिया है कि जो कंपनियां यह सोच रही हैं कि वे मोलभाव करने में सफल होंगी (ये कंपनियों स्पेक्ट्रम के लिए 1,651 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी हैं), उनकी इस उम्मीद पर कुछ कहना मुश्किल हो गया है। साथ ही उन्हें अपने द्वारा खर्च की गई राशि का कितना और कब फायदा मिलेगा, यह कहना भी बड़ा मुश्किल है।
स्पेक्ट्रम आवंटन की प्रक्रिया में नए खिलाड़ियों को लाने के मकसद से ए
. राजा ने स्पेक्ट्रम की नीलामी के बजाय इसके लिए कंपनियों का चयन करने में लाइसेंस के लिए कंपनियों द्वारा आवेदन की तारीख को आधार बनाया। साथ ही इस मामले में ट्राई की सिफारिशों के बहाने भी रिलायंस जैसे सीडीएमए खिलाड़ियों के लिए अपेक्षाकृत ज्यादा लोकप्रिय जीएसएम–मोबाइल सेवाओं के लिए ‘खास लाइन‘ मुहैया कराई गई।
रिलायंस को स्पेक्ट्रम की नई नीति संबंधी आधिकारिक घोषणा के पहले ही लाइसेंस फीस जमा करने की अनुमति प्रदान कर दी गई। इसके बाद राजा के मंत्रालय ने एक घंटे के नोटिस पर स्पेक्ट्रम की इच्छुक बाकी कंपनियों को बताया कि उनका दावा इस बात पर निर्भर करेगा कि उन्होंने कौन सी तारीख को और कब भुगतान किया है।
हालांकि मंत्रालय के इस कदम का काफी विरोध हुआ
, लेकिन राजा इस पर आगे बढ़ने में सफल रहे, क्योंकि प्रधानमंत्री को पता था कि इस मसले पर डीएमके के इस महत्त्वपूर्ण शख्स से टकराव उनकी सरकार के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। बहरहाल राजा के लिए बुरी खबर यह रही कि कुछ असंतुष्ट पक्षों ने इस मसले पर कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया।
कुछ लोग दिल्ली हाई कोर्ट चले गए, जबकि कुछ ने टीडीसैट का दरवाजा खटखटाया। आइडिया और स्पाइस जैसी कंपनियों का तर्क था कि लाइसेंस के लिए आवेदन करने वाली कंपनियों में उनकी वरीयता सबसे ऊपर थी (दोनों कंपनियों ने क्रमश: जून और अगस्त 2006 में आवेदन किया था) और नए मापदंडों के तहत अब वे सूची में शीर्ष पर नहीं हैं। अदालत ने कहा कि मंत्रालय को आवेदनों के आधार पर वरीयता बरकरार रखनी चाहिए थी। नतीजतन मंत्रालय अब रिलायंस को छोड़कर किसी और कंपनी को स्पेक्ट्रम आवंटित करने का दुस्साहस न करे।
रिलायंस के मामले में अदालत का कहना था कि कंपनी को पहले ही स्पेक्ट्रम आवंटित किया जा चुका है, लिहाजा इसमें छेड़छाड़ की गुंजाइश नहीं है। लाइसेंस के लिए 9 कंपनियों द्वारा पहले ही 10 हजार करोड़ रुपये सरकार को भुगतान किए जा चुके हैं, लेकिन कंपनियों को तब तक इंतजार करना पड़ेगा, जब तक सभी के लिए पर्याप्त स्पेक्ट्रम उपलब्ध न हो जाए।
साथ ही स्पेक्ट्रम की उपलब्धता के मद्देनजर इसकी दावेदार कंपनियों को 4.4 मेगाहट्र्ज से ज्यादा स्पेक्ट्रम मिलने की संभावना नजर नहीं आती, जो इन कंपनियों के लिए बाजार में अपनी जगह बनाने के लिए अपर्याप्त होगी।
शायद यही वजह है कि लाइसेंस बिक्री की प्रक्रिया को कुछ साल तक रोकने के ट्राई के फैसले के बावजूद सरकार ने इसे जारी रखने का फैसला किया। (इसके ठीक उलट, जब थ्री–जी स्पेक्ट्रम की नीलामी होनी है, सरकार ने पहले ही 5 साल तक इससे जुड़ी कंपनियों के विलय और अधिग्रहण को मंजूरी नहीं देने का ऐलान कर दिया है।
दिलचस्प बात यह है कि नीलामी की तारीख के बारे में अब तक किसी को पता नहीं है) स्पेक्ट्रम आवंटन में एकमात्र नया जीएसएम खिलाड़ी होने से अंसतुष्ट रिलायंस ने अब तुरुप का तीसरा पत्ता खेला है। कंपनी ने सरकार से स्पेक्ट्रम आवंटन की प्रक्रिया को बेहतर बनाने को कहा है। अब स्पेक्ट्रम के इतिहास पर एक बारीक नजर डालते हैं। तकनीकी रूप से अगर हम कहें तो फ्रिक्वेंसी जितनी कम होगी, उसकी पहुंच दायरा उतना ही व्यापक होगा।
98.4 मेगाहट्र्ज पर एफएम रेडियो का प्रसारण काफी कम ट्रांसमीटर टावरों के सहारे काफी लोगों तक पहुंच जाता है। मोबाइल फोन को आवंटित की जाने वाली फ्रिक्वेंसी 800900 मेगाहट्र्ज फ्रिक्वेंसी के दायरे में थी। इस बैंड में जीएसएम के लिए 25 मेगाहट्र्ज और सीडीएम के लिए 20 मेगाहट्र्ज का प्रावधान किया गया था।
दुनिया के अन्य मुल्कों में जीएसएम के लिए तकरीबन 35 मेगाहट्र्ज का प्रावधान किया जाता है। भारत में अतिरिक्त 10 मेगाहट्र्ज को (जिसे एक्सटेंडेड जीएसएम बैंड कहा जाता है) को सीडीएमए के लिए रिजर्व रखा गया।
बाद में जीएसएम फ्रीक्वेंसी की मांग में बढ़ोतरी होने पर एयरटेल और वोडाफोन जैसी कंपनियों को आवंटन 1800 मेगाहट्र्ज फ्रीक्वेंसी बैंड से किए गए, जिसमें टावरों को स्थापित करने और अन्य उपकरणों में दोगुना खर्च लगता है। रिलायंस को भी अभी इसी फ्रीक्वेंसी के जरिए आवंटन किया गया है।
हालांकि जनवरी में कंपनी ने सरकार से सीडीएमए के लिए सुरक्षित रखे गए 880-890 मेगाहट्र्ज बैंड को जीएसएम के तहत इस्तेमाल की मंजूरी मांगी थी। आप बेशक 2002 में शौरी और 2007 में राजा के कदम को महज ‘संयोग‘ करार दे सकते हैं, लेकिन अब अगर ऐसा कुछ होता है तो यह ‘सोचासमझा खेल‘ होगा।