भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में गौरवान्वित होता रहा है लेकिन दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से एक होने की छवि उस पर कहीं अधिक भारी पड़ रही है। स्विस संगठन आईक्यूएयर द्वारा विश्व स्तर पर हवा की गुणवत्ता को लेकर जो रिपोर्ट जारी की जाती है उसके मुताबिक बांग्लादेश और पाकिस्तान के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे प्रदूषित देश है।
यह रैंकिंग हवा में 2.5 माइक्रॉन या उससे कम के पर्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5) के घनत्व पर आधारित है। यह फेफड़ों और दिल की बीमारियों के अलावा कैंसर की बीमारी तथा समयपूर्व मृत्यु के मामलों से संबंधित है। वर्ष 2023 में भारत का वार्षिक पीएम 2.5 घनत्व 54.4 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा जो बांग्लादेश के 79.9 एमजी प्रति घन मीटर और पाकिस्तान के 73.7 एमजी प्रति घन मीटर से कम है।
भारत की रैंकिंग के बारे में चौंकाने वाली बात यह है कि वह 2022 में आठवें नंबर से 2023 में तीसरे स्थान पर आया है। यह बात भी ध्यान देने वाली है कि अन्य दो देशों के उलट भारत का पीएम 2.5 घनत्व 2021 से कम हुआ है। उस समय यह 58.1 एमजी प्रति घन मीटर था। इसके बावजूद दुनिया के 50 सबसे प्रदूषित शहरों में से 42 भारत में हैं। नई दिल्ली लगातार दूसरे वर्ष दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी के रूप में उभरी है और उसका प्रदर्शन 2022 से लगातार खराब हो रहा है।
यह आंकड़ा उन लोगों के लिए कतई चौंकाने वाला नहीं है जो शहरी भारत में रहते हैं और जिन्हें सांस लेने की तकलीफ के कारण आए दिन चिकित्सकों के पास जाना होता है अथवा जो लगातार शहरों के प्रदूषित वातावरण में रहते हैं। आईक्यूएयर रिपोर्ट के मुताबिक 1.36 अरब भारतीय यानी कुल आबादी से थोड़े ही कम लोग ऐसे वातावरण में रहते हैं जहां पीएम 2.5 घनत्व विश्व स्वास्थ्य संगठन के 5 एमजी प्रति घन मीटर के दिशानिर्देश से कम हो। इस सूची में बिहार का बेगूसराय शीर्ष पर है।
2022 में यह शहर इस सूची में शामिल नहीं था लेकिन वहां सालाना औसत पीएम 2.5 घनत्व 118 प्रति घन मीटर से अधिक आंका गया है। गुवाहाटी में यह 2022 के स्तर से दोगुना हो चुका है। चूंकि जीवाश्म ईंधन को जलाया जाना पीएम 2.5 का प्रमुख स्रोत है इसलिए देश में हवा की खराब गुणवत्ता यह भी दिखाती है कि नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने को लेकर पर्याप्त प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। यह बात भविष्य में आर्थिक वृद्धि की गति को लेकर भी दिक्कत दर्शाती है।
देश के कुल बिजली उत्पादन में अभी भी ताप बिजली घरों की हिस्सेदारी 70 फीसदी है। हाल ही में घोषित रूफटॉप सोलर प्रोजेक्ट जैसी बड़ी परियोजनाओं में भी यह क्षमता है कि वे हालात में बड़ा बदलाव ला सकें लेकिन इसके लिए बिजली संबंधी नीतियों में भी अहम बदलाव लाने होंगे। इसके साथ ही वायु प्रदूषण के मामले में दिल्ली का शीर्ष स्थान यह दिखाता है कि हम फसल अवशेष जलाए जाने को लेकर कोई ठोस नीतिगत हल नहीं तलाश पाए हैं।
आईक्यूएयर की ताजा रिपोर्ट इस बात को रेखांकित करती है कि देश में प्रदूषण की समस्या कितनी गहरी है और 2070 तक के शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए टिकाऊ उपाय तलाश करना कितना जरूरी है। इस संकट से जुड़ी एक उल्लेखनीय बात यह है कि यह हाल के वर्षों में नीति निर्माताओं की दृष्टि से ओझल नजर आया है।
अधिक अस्वाभाविक बात यह है कि प्रदूषण राजनीतिक मुद्दे के रूप में अनुपस्थित है। कोई राजनीतिक दल प्रदूषण कम करने को अपने एजेंडे में नहीं रखता है और न ही किसी बड़े राजनीतिक दल के चुनावी घोषणापत्र में स्वच्छता के अधिकार का विचार शामिल है। अर्थव्यवस्था को इसकी बड़ी कीमत चुकानी होती है। विश्व बैंक के मुताबिक प्रदूषण से जुड़ी समयपूर्व मौतों आदि के कारण 2019 में 37 अरब डॉलर की आर्थिक क्षति हुई। स्पष्ट है कि इस विषय पर तत्काल नीतिगत कदम उठाने की जरूरत है।