भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) के चेयरमैन देवाशिष पांडा ने घोषणा की है कि बीमा नियामक, स्टेट लेवल बैंकर्स कमेटी (एसएलबीसी) जैसा एक निकाय गठित करने पर विचार कर रहा है। यह बड़ी तादाद में भारतीयों को बीमा उद्योग के दायरे में लाने की दिशा में एक उपयोगी कदम हो सकता है।
एसएलबीसी की अवधारणा सन 1977 में भारतीय रिजर्व बैंक के अधीन प्रस्तुत की गई थी तथा यह राज्य स्तर पर एक अंतर-सांस्थानिक मंच है जो सरकार और बैंकों के बीच बैंकिंग विकास से जुड़े मसलों पर समन्वय का काम करता है। ये उच्च अंतर-सांस्थानिक मंच हर तिमाही बैठक करते हैं और इनकी अध्यक्षता नामित प्रमुख बैंक के चेयरपर्सन या कार्यकारी निदेशक द्वारा की जाती है।
उसके साथ हर संबंधित राज्य के अपर मुख्य सचिव या विकास आयुक्त सह अध्यक्षता करते हैं। हाल के दिनों में एसएलबीसी ने प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई) योजना के तहत नागरिकों तक बैंकिंग की पहुंच बढ़ाने का काम करके वित्तीय समावेशन हासिल करने में अहम भूमिका निभाई है।
आज 143 से भी कम ऐसे गांव हैं जिनके पांच किलोमीटर के दायरे में बैंकिंग संपर्क नहीं है। वर्ष 2019 में यह संख्या 11,278 थी। बीमा नियामक को अगर ऐसी उपस्थिति दर्ज करनी है तो उसे एसएलबीसी जैसे संस्थान की आवश्यकता होगी।
भारत दुनिया का दसवां सबसे बड़ा बीमा बाजार है लेकिन औसत भारतीय आमतौर पर बीमा से वंचित है। उदाहरण के लिए अकेले जीवन बीमा की पहुंच केवल 3.2 फीसदी है। सैद्धांतिक तौर पर ऐसा वितरण की सीमित पहुंच के कारण है। ग्रामीण आबादी की बात करें तो 10 फीसदी से भी कम लोगों के पास जीवन बीमा कवरेज है और 20 फीसदी से भी कम आबादी के पास स्वास्थ्य बीमा कवर है।
यह भी मुख्य रूप से आईआरडीएआई के निर्देश के कारण हुआ। कुल मिलाकर देखें तो स्विस रे के अध्ययन के मुताबिक मृत्यु दर संरक्षण में बहुत बड़ा अंतर है यानी वांछित संसाधनों और उपलब्ध संसाधनों के बीच 1,320 लाख करोड़ रुपये का अंतर है जिससे पता चलता है कि औसत भारतीय वास्तव में बड़े जोखिम में है।
उस लिहाज से देखें तो एसएलबीसी पर आधारित संस्थान बहुत बड़ा बदलाव ला सकते हैं। एसएलबीसी की सफलता बहुत हद तक केंद्र और राज्य सरकारों की राजनीतिक इच्छाशक्ति पर निर्भर करती है। ग्रामीण इलाकों में बैंकिंग संपर्क बढ़ाने में एसएलबीसी की सफलता में पीएमजेडीवाई कार्यक्रम की अहम भूमिका रही।
यह कार्यक्रम अगस्त 2014 में शुरू किया गया था। परंतु राज्यों के भीतर बैंकिंग पहुंच असमान बनी हुई है। उदाहरण के लिए केरल में एसएलबीसी ने राज्य के टोटल बैंकिंग कार्यक्रम में अहम भूमिका निभाई। यह कार्यक्रम राज्य की अफसरशाही द्वारा शुरू किया गया था। इसके विपरीत झारखंड में अभी भी साहूकारों का बोलबाला है।
काफी कुछ बीमा कंपनियों पर भी निर्भर करेगा। देश में जब एसएलबीसी मॉडल पेश किया गया था तब सरकारी बैंकों का दबदबा था और उन्हें ऐसे लक्ष्य हासिल करने को कहा जा सकता था जो जरूरी नहीं कि मुनाफा कमाने वाले हों। देश में 57 बीमा कंपनियां हैं। इनमें से 23 जीवन बीमा और 33 गैर-जीवन बीमा कंपनियां हैं।
इनमें से सात सरकारी बीमा कंपनियां हैं। जीवन बीमा निगम इकलौती सरकारी स्वामित्व वाली जीवन बीमाकर्ता है और अभी भी कारोबार में इसकी हिस्सेदारी 58.5 फीसदी है। परंतु उसकी हिस्सेदारी लगातार घट रही है और 2022 की उसकी लिस्टिंग के बाद सरकार के लिए उसे कम मुनाफे वाले बाजारों में विस्तार के लिए कहना मुश्किल होगा।
निजी बीमा कंपनियां बहुत कम मार्जिन पर काम करती हैं, उन्हें जमीनी स्तर पर बीमा देने के लिए मनाना मुश्किल होगा। आईआरडीएआई को इन मुद्दों से निपटना होगा। इस प्रक्रिया को सफलतापूर्वक निपटाना अहम होगा। इससे न केवल बीमा की पहुंच बढ़ेगी बल्कि अर्थव्यवस्था में मौजूद बचत को भी इस्तेमाल किया जा सकेगा।