अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने बुधवार को तथाकथित जवाबी शुल्क को 90 दिनों के लिए स्थगित कर दिया और इस बात ने उनके सर्वाधिक करीबी सलाहकारों में से भी कुछ को चकित किया है। एक तरह से यह दिखाता है कि निर्णय ठोक बजाकर नहीं लिए जा रहे हैं और इसके चलते वैश्विक वित्तीय बाजार और अर्थव्यवस्था भारी अनिश्चितता के दौर से गुजर रही है। चाहे जो भी हो इस स्थगन ने वित्तीय बाजारों को अत्यावश्यक राहत प्रदान की है।
उदाहरण के लिए अमेरिका में एसऐंडपी 500 बुधवार को 9.5 फीसदी ऊपर गया। चूंकि गुरुवार को भारत में बाजार बंद रहे इसलिए उन पर इसका असर शुक्रवार को देखने को मिल सकता है। संशोधित योजना के अनुसार सभी देशों के लिए 10 फीसदी का बुनियादी टैरिफ बरकरार रहेगा जबकि भारत समेत चुनिंदा कारोबारी साझेदारों पर लगाया गया जवाबी शुल्क फिलहाल स्थगित रहेगा।
उम्मीद है कि अगले 90 दिनों में कारोबारी साझेदार किसी ऐसे समझौते पर पहुंच जाएंगे जो ट्रंप प्रशासन को ‘उचित’ प्रतीत होगा। ध्यान देने वाली बात है कि चीन इस योजना का हिस्सा नहीं है और अमेरिका आने वाले चीनी आयात पर चीन पर टैरिफ 125 प्रतिशत कर दिया गया है। चीन को बाहर रखने और ऐसे प्रतिशोधात्मक टैरिफ लगाने का अर्थ है कि जोखिम वैश्विक व्यापार और वृद्धि से परे भी हो सकता है।
अब यह स्पष्ट है कि ट्रंप के कदमों के कारण वित्तीय बाजारों में मची उथल पुथल थोड़ी धीमी पड़ सकती है। बीते कुछ दिनों में बॉन्ड बाजारों में बिकवाली वॉल स्ट्रीट में कुछ लोगों के लिए खासी चिंताजनक है। आमतौर पर जब शेयरों की कीमत गिरती है तो पैस बॉन्ड की ओर जाता है जिससे बॉन्ड कीमतों में इजाफा होता है। शुरुआत में यही हुआ। बहरहाल बीते कुछ दिनों से बॉन्ड कीमतों में गिरावट आनी आरंभ हो गई। यह बताता है कि निवेशक कहीं अधिक चिंतित हैं।
अमेरिकी सरकार के डेट बाजार का गलत आवंटन दुनिया भर के अन्य बाजारों के लिए कठिनाई पैदा कर सकता है। यकीनन वित्तीय बाजारों ने इस कारोबारी झटके को लेकर अनुमान के मुताबिक ही प्रतिक्रिया दी है। यह चकित करने वाली बात है कि ट्रंप और उनके सलाहकारों ने अलग नतीजों की उम्मीद की थी। बहरहाल, वित्तीय बाजारों में सुधार जहां समझा जा सकता है वहीं बुनियादी स्तर पर कुछ खास नहीं बदला है। यह केवल एक ठहराव है और ट्रंप ने अपने लक्ष्य हासिल करने में टैरिफ के महत्व को लेकर मन नहीं बदला है। ऐसे में अगले 90 दिनों तक कारोबारी साझेदारों के लिए बातचीत आसान नहीं होगी और वैश्विक बाजारों में अनिश्चितता का स्तर बढ़ा रहेगा जो वैश्विक वृद्धि को प्रभावित करेगा।
जैसा कि बीते कुछ दिनों के प्रमाण बताते हैं अमेरिका साझेदार देशों द्वारा टैरिफ कम करने से संतुष्ट नहीं होगा। मसलन वियतनाम द्वारा अमेरिकी आयात पर शून्य शुल्क भी अमेरिकी प्रशासन को संतुष्ट नहीं कर सका। ट्रंप के लिए विभिन्न देशों के साथ व्यापार घाटा सही नहीं है और उसे दूर किया जाना चाहिए। यह संभव नहीं होगा क्योंकि चीजें इस तरह काम नहीं करतीं। वास्तव में दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वैश्विक व्यापार और आर्थिक व्यवस्था पर सवाल उठा रही है। इससे व्यवस्था में अस्थिरता आना तय है।
भारत को अमेरिका के साथ संबद्धता बनाए रखनी होगी।भारत अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में है क्योंकि उसने जवाबी टैरिफ की घोषणा के काफी पहले द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर बातचीत शुरू कर दी थी। यह दोहराना सही होगा कि टैरिफ कम करना तथा अधिकांश वस्तुओं पर अन्य कारोबारी प्रतिबंध भारत के हित में हैं। इससे भारत को बहुप्रतीक्षित व्यापार वार्ताओं को पूरा करने में भी मदद मिलेगी। मसलन यूरोपीय संघ और यूनाइटेड किंगडम के साथ बातचीत। हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था अमेरिकी व्यापार नीति के कारण अनिश्चितता की अवधि से गुजरना होगा। यह भी स्पष्ट नहीं है कि अगले कुछ महीनों में हालात क्या मोड़ लेंगे। ऐसे में भारत को सतर्क रहना चाहिए और शेष विश्व के साथ सक्रिय रिश्ता रखना चाहिए।