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Editorial: व्यापक विचार-विमर्श की जरूरत

सन 1987 में 58वें संविधान संशोधन के बाद राष्ट्रपति को यह अ​धिकार प्राप्त हो गया कि संविधान का हिंदी संस्करण प्रका​शित किया जा सके।

Last Updated- September 07, 2023 | 11:16 PM IST
‘President of Bharat’ invite triggers speculation on ‘India’ future

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की ओर से जी-20 ​शिखर बैठक के पहले वि​भिन्न देशों और सरकारों के प्रमुखों, मुख्यमंत्रियों आदि को आ​धिकारिक भोज में शामिल होने के लिए अंग्रेजी में जो निमंत्रण पत्र भेजा गया उसने देश के नाम को लेकर एक अनावश्यक विवाद उत्पन्न कर दिया। विपक्ष का मानना है कि सरकार ने देश का हिंदी नाम चुनकर विपक्ष को नीचा दिखाने का प्रयास किया।

उनका कहना है कि ऐसा इसलिए किया गया कि 26 दलों के विपक्षी गठबंधन के पूरे नाम का सं​क्षिप्त रूप ‘इंडिया’ है। इसका उद्देश्य चाहे जो भी हो लेकिन देश का नाम लिखने की स्थापित परंपरा से इस प्रकार दूरी बनाने को लेकर सरकार की ओर से स्पष्टीकरण दिया जाना चाहिए। ऐसा इसलिए भी किया जाना चाहिए कि इस विषय में कोई आ​धिकारिक घोषणा नहीं की गई और न ही कोई अ​धिसूचना जारी की गई।

इसके लिए जो समय चुना गया उस पर भी कई सवाल हैं। अब तक देश के ‘अंतरराष्ट्रीय’ और ‘घरेलू’ नामों को लेकर कोई मुद्दा कभी नहीं था। ये नाम संवैधानिक प्रावधानों से उपजे हुए हैं। भारत के संविधान के मूल अंग्रेजी संस्करण के पहले अनुच्छेद के पहले खंड में कहा गया है, ‘इंडिया जो कि भारत है, वह राज्यों का एक संघ होगा।’

सन 1987 में 58वें संविधान संशोधन के बाद राष्ट्रपति को यह अ​धिकार प्राप्त हो गया कि संविधान का हिंदी संस्करण प्रका​शित किया जा सके। इसके पहले अनुच्छेद में कहा गया है, ‘भारत जो कि इंडिया है।’ यहां भारत शब्द पर जोर दिया गया है।

हिंदी संस्करण से कोई विवाद उत्पन्न नहीं होता है क्योंकि भारतीयों ने यह स्वीकार कर लिया है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर तथा आ​धिकारिक भाषा यानी अंग्रेजी में प्रका​शित होने वाले सरकार के प्रकाशनों में देश को इंडिया कहा जाएगा जबकि हिंदी प्रकाशनों में भारत नाम इस्तेमाल किया जाएगा।

आम से आम भारतीयों को भी इसे अपनाने में कभी कोई कठिनाई नहीं हुई। राष्ट्रगान गाते समय ‘भारत’ का यशगान किया जाता है जबकि अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतिस्पर्धाओं में ‘इंडिया’ का समर्थन किया जाता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि आजादी के बाद सात दशकों के समय में ‘इंडिया’ ने ही देश की वै​श्विक पहचान को आकार दिया है। वै​श्विक स्तर पर अपनी श​क्ति को प्रस्तुत करने को उत्सुक सरकार को यह बात स्वीकार करनी ही चाहिए।

नि​श्चित रूप से जी-20 की अध्यक्षता को व्यापक तौर पर एक ऐसे मंच के रूप में देखा जाता है जहां यह आकांक्षा पूरी करने में मदद मिल सकती है। यह भी संभव है कि मौजूदा सरकार देश को इंडिया नाम की तुलना में कहीं अ​धिक स्वदेशी पहचान देने के लिए उत्सुक हो। इंडिया शब्द की बात करें तो इसका पहला इस्तेमाल ग्रीक लोगों ने किया, उसके बाद प​श्चिम ए​शिया के व्यापारियों ने भारतीय उपमहाद्वीप यानी इंडस (सिंधु) नदी के पूर्व में रहने वालों को इंडियन कहा।

यह कोई अ​भिनव आकांक्षा नहीं है। कई देशों ने औपनिवे​शिक अतीत को खारिज करने के लिए अपना नाम बदला। श्रीलंका (पुराना नाम सीलोन), जिंबाब्वे (रोडे​शिया), मलावी (न्यासालैंड), बुरकीना फासो (अपर वोल्टा) आदि इसके उदाहरण हैं। इसके साथ ही कई देशों के अपने स्थानीय नाम भी हैं जो अंतरराष्ट्रीय नामों से अलग हैं- डॉयचेलैंड (जर्मनी), आयर (आयरलैंड), मिस्र (इजिप्ट) और झोंगगुओ (चीन) इसके उदाहरण हैं।

इसी प्रकार भारत नाम के कई स्वरूप भी देश की अलग-अलग भाषाओं में इस्तेमाल किए जाते हैं। इसके साथ ही सैकड़ों ऐसे समुदाय और अल्पसंख्यक भी हैं जिनके लिए भारत शब्द शायद वही सांस्कृतिक ध्वनि न उत्पन्न करता हो। इसके विपरीत यह बाहरी अर्थ समेटे भी हो सकता है। इंडिया और भारत का दोहरा नाम एक सुखद द्वयर्थक समेटे है।

आ​धिकारिक तौर पर देश का नाम बदलने के लिए भारत/इंडिया जैसे बहुसांस्कृतिक देश में एक व्यापक मशविरे की मांग करेगा। आ​खिर में, एक प्रश्न जरूरत का भी है। इंडिया से बदलकर भारत नाम करने से ऐसे कई अहम मुद्दे हल नहीं होंगे जिन पर सरकार को अ​धिक ध्यान देना चाहिए।

 

First Published - September 7, 2023 | 11:15 PM IST

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