टाटा मोटर्स को दो स्वतंत्र सूचीबद्ध इकाइयों में बांटने का फैसला लागू करने में 12 से 15 महीने का समय लग सकता है। डीमर्जर यानी कंपनी को दो हिस्सों में बांटने के ऐलान पर बाजार की शुरुआती प्रतिक्रिया सकारात्मक जरूर रही, लेकिन यह कोई ज्यादा उत्साहजनक नहीं थी। परंपरागत समझ तो यही बताती है कि इस तरह के डीमर्जर, वैल्यू अनलॉकिंग यानी कंपनी और उसकी परिसंपत्ति के मूल्य में और बढ़ोतरी का मौका देते हैं।
निवेशक इस बात को बेहतर तरीके से समझ पाते हैं कि कोई एकल और केंद्रित कारोबार किस दिशा में बढ़ रहा है, जबकि कंपनी का प्रबंधन भी कामकाज की गतिशीलता पर अपना ध्यान केंद्रित रख सकता है। इसलिए केंद्रित कारोबारों को बाजार ऊंचा मूल्यांकन प्रदान करते हैं। विरोधाभासी रूप से, यह सिर्फ इसलिए कोई बड़ा असर नहीं डाल सकता कि कंपनी अच्छी तरह से चल रही है।
इसने हाल के दिनों में कोविड और चिप की तंगी जैसे उतार-चढ़ाव का सफलतापूर्वक सामना किया है। यह सही है कि यात्री वाहनों (पीवी)और वाणिज्यिक वाहनों (सीवी) में अंतर होते हैं, जिनमें मांग के स्रोतों को समझना और उसके मुताबिक प्रतिक्रिया देना, कर्ज मुहैया करने का मॉडल और संबंधित आपूर्ति श्रृंखलाओं का प्रबंधन शामिल होता है।
दो समर्पित बोर्ड, जिसमें से प्रत्येक एक खंड पर ध्यान केंद्रित करने वाला हो, कामकाज को और बेहतर बनाने में सक्षम हो सकते हैं। यह भी सच है कि प्रत्येक वर्टिकल के लिए किसी खास परियोजना की खातिर धन जुटाना आसान हो सकता है।
अगर कोई एक वर्टिकल सिर्फ किसी एक खंड में कारोबार करना चाहता है तो वह ऐसा कर सकता है। तो अंतत: वहां कुछ वैल्यू अनलॉकिंग हो सकती है। लेकिन विश्लेषक यह भी कहते हैं कि टाटा मोटर्स ने बाजार के मुकाबले बहुत शानदार प्रदर्शन किया है, पिछले 12 महीने में इसके शेयर में 140 फीसदी का पूंजीगत लाभ हुआ है, जबकि इस दौरान निफ्टी सिर्फ 25 फीसदी बढ़ा है।
इसका मतलब यह है कि किसी भी मध्यम अवधि में उछाल की संभावना पहले से ही मूल्यांकन में समाहित हो चुकी है। वैसे तो निवेशकों को दोनों नई कंपनियों में बराबर संख्या में शेयर हासिल होंगे, लेकिन कारोबार और मार्जिन के लिहाज से तुलना करने पर बंटवारे के बाद बनी कंपनियों में असंतुलन होगा। अभी का हाल देखें तो मुख्य रूप से जगुआर लैंड रोवर (जेएलआर) को पोर्टफोलियो में रखने की वजह से ही पीवी खंड समेकित राजस्व में करीब 79 फीसदी योगदान करता है और कामकाजी मार्जिन में इसका योगदान 15 से 16 फीसदी तक है।
इसके अलावा नए इलेक्ट्रिक वाहनों के यात्री खंड में भी टाटा मोटर्स की घरेलू बाजार में करीब 70 फीसदी हिस्सेदारी है और यात्री वाहनों के बाजार में नंबर दो पर आने के लिए यह ह्युंडै को चुनौती दे रही है। इसके सीवी खंड में कामकाजी मार्जिन करीब 7 फीसदी का है और समेकित राजस्व में इसका योगदान केवल 21 फीसदी का है। पीवी में मात्रात्मक बढ़त भी ज्यादा हो सकती है, हालांकि टाटा मोटर्स इलेक्ट्रिक बसों और अन्य नए जमाने के सीवी की तरफ कदम बढ़ा रही है जिससे वहां भी बिक्री की मात्रा और बढ़ सकती है।
कंपनी साफतौर पर घरेलू पीवी और सीवी बाजार में हिस्सेदारी बढ़ाना चाहेगी, क्योंकि जेएलआर का अभी समेकित राजस्व में करीब दो-तिहाई हिस्सा है, लेकिन अभी इसका जोर निश्चित रूप से घरेलू बाजार की जगह वैश्विक बाजार पर ज्यादा है। अगर पीवी के लिए वैश्विक मांग जोर पकड़ती है, तो जेएलआर का प्रदर्शन अच्छा होगा और ऐसी स्थिति में पूरे पीवी खंड का प्रदर्शन बेहतर होगा।
महामारी और इसके बाद यूक्रेन की जंग ने वैश्विक वाहन उद्योग को चोट पहुंचाई है, क्योंकि सेमीकंडक्टर की आपूर्ति काफी तंग हो गई। लेकिन इसने वाहन विनिर्माताओं को आपूर्ति के विविधीकरण और इन्वेंट्री प्रबंधन के मामले में एक दर्द भरा सबक भी सिखाया। जेएलआर की मूल्यश्रृंखला भी विदेश में है, इसलिए टाटा मोटर्स भी उन वस्तुओं के वैश्विक मांग-आपूर्ति में उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील है और यह अधिकांश कारोबार विदेशी मुद्रा में करती है।
कुल मिलाकर कहें तो इस डीमर्जर का जहां नुकसान कम दिख रहा है, वहीं शायद यह निवेशकों को तत्काल बहुत ज्यादा फायदा भी न दिला पाए। हालांकि कामकाजी रूप से देखें तो इससे एक समय के बाद दक्षता बढ़ेगी।