वर्ष 2024-25 के दौरान देश के वित्तीय बाजारों में अस्थिरता का असर रहा है। खासतौर पर विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) के रुख ने बाजार को प्रभावित किया है। अप्रैल 2024 से 4 नवंबर, 2024 तक एफपीआई ने कुल मिलाकर भारतीय शेयरों में तकरीबन 8,644 करोड़ रुपये की शुद्ध बिकवाली की है। परंतु बिकवाली तीन खास महीनों में केंद्रित रही।
अक्टूबर में 94,017 करोड़ रुपये की भारी भरकम बिकवाली के बाद मई में 25,586 करोड़ रुपये और अप्रैल में 8,671 करोड़ रुपये की बिकवाली हुई थी। अप्रैल-मई में हुई निकासी के दौरान ही भारत में आम चुनाव चल रहे थे और उसके नतीजों को लेकर तमाम तरह की शंकाएं की जा रही थीं। इस समय अमेरिका में आम चुनाव की प्रक्रिया चल रही है और अक्टूबर तथा नवंबर में एफपीआई की निकासी में इसका भी योगदान माना जा रहा है।
इसके अलावा कुछ एफपीआई इस सप्ताह फेडरल रिजर्व की बैठक की प्रतीक्षा कर रहे हैं। हाल के सप्ताहों में अमेरिकी बॉन्ड यील्ड बढ़ी है और बाजार के लिए फेडरल रिजर्व की स्थिति अहम होगी। एफपीआई उभरते बाजारों को लेकर अपने भार को नए सिरे से संतुलित कर रहे हैं और चीन में नया प्रोत्साहन पैकेज घोषित होने के बाद वहां अधिक संसाधन आवंटित कर रहे हैं।
केवल एफपीआई ही नहीं बल्कि कई निवेशक भी भारत के एक्सपोजर को लेकर अधिक सतर्क हो रहे हैं क्योंकि भूराजनीतिक तनावों के कारण ईंधन कीमतों में इजाफा होने की संभावना है। कई निवेशक दूसरी तिमाही के कमजोर आय नतीजों के कारण भी निराश हैं। इस बीच अमेरिकी चुनाव निर्णायक साबित हो सकते हैं।
ओपिनियन पोल की मानें तो राष्ट्रपति चुनाव करीबी हो सकते हैं और कांग्रेस पर नियंत्रण के लिहाज से उसके चुनाव भी मायने रखते हैं। अगर कमला हैरिस जीतती हैं तो अमेरिका शायद जो बाइडन प्रशासन की नीतियों और कदमों को जारी रखेगा। बाइडन प्रशासन ने अमेरिका को कोविड के झटके से उबारने और मुद्रास्फीति के मुकाबला करने के मामले में अच्छा प्रदर्शन किया है।
डॉनल्ड ट्रंप अपने प्रचार अभियान में वादा कर रहे हैं कि अमेरिका की नीतिगत दिशा बदली जाएगी। यह बदलाव घरेलू और भूराजनीतिक दोनों क्षेत्रों में होगा। ट्रंप ने कहा है कि उनका इरादा अमेरिकी आयात पर सीमा शुल्क बढ़ाने और आव्रजन और वर्क वीजा में भारी कटौती करने का है। इससे भारत के आईटी सेवा उद्योग पर नई-नई लागत लगेगी।
ट्रंप का इरादा अमेरिका के तमाम घरेलू कार्यक्रमों और उत्तर अटलांटिक संधि संगठन यानी नाटो तथा अन्य रक्षा साझेदारों को लेकर अमेरिका की प्रतिबद्धताओं को संघीय समर्थन कम करने का भी है। वह अमेरिका को जलवायु नियंत्रण समझौतों से भी बाहर कर सकते हैं। ट्रंप ने यह इरादा भी जताया है कि वह आय कर ढांचे पर नए सिरे से काम करेंगे। वास्तव में 23 नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने लिखा है कि ट्रंप द्वारा प्रस्तावित कुछ नीतियां अमेरिकी अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेंगी।
वैश्विक अर्थव्यवस्था और राजनीतिक व्यवस्था में अमेरिका की भूमिका को देखते हुए अचानक बदलाव के विपरीत असर हो सकते हैं। ऐसे बदलाव का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर होगा और भारतीय अर्थव्यवस्था के उन क्षेत्रों पर तो खासा नकारात्मक प्रभाव होगा जिनका अमेरिका से करीबी जुड़ाव है। यह अमेरिकी बाजार को भी प्रभावित कर सकता है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व की स्वायत्तता को कम करने का कोई भी प्रयास वित्तीय बाजारों के रुझानों पर असर डालेगा।
बहरहाल, इस बात पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि घरेलू भारतीय संस्थानों में तेजी का रुख है और अब तक म्युचुअल फंड के माध्यम से शेयर बाजार की खुदरा आवक मजबूत है तथा प्रत्यक्ष इक्विटी निवेश में भी तेजी है।
बहरहाल, रुझान भावनाओं पर असर डालते हैं और अब तक पिछले पांच सप्ताह में निफ्टी में नौ फीसदी की गिरावट आ चुकी है। ज्यादा बिकवाली भावनाओं को बदल सकती है और ऐसी स्थिति में निवेशकों को सतर्क रहना चाहिए।