चिप बनाने वाली अमेरिकी कंपनी माइक्रॉन द्वारा पिछले साल गुजरात में अपने पहले सेमीकंडक्टर संयंत्र के निर्माण की नींव रखने के बाद, भारत ने अपनी सेमीकंडक्टर महत्त्वाकांक्षाओं को बढ़ा दिया है। हाल में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने करीब 1.26 लाख करोड़ रुपये के निवेश वाली तीन और सेमीकंडक्टर इकाइयों की स्थापना को मंजूरी दी जिनमें भारत का पहला सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन संयंत्र शामिल होगा। टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स प्राइवेट लिमिटेड ताइवान की पावरचिप सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कॉर्प के साथ साझेदारी में गुजरात के धोलेरा में एक सेमीकंडक्टर फैब की स्थापना करेगी।
इसके अलावा, असम के मोरीगांव और गुजरात के साणंद में दो सेमीकंडक्टर एटीएमपी (असेंबली, टेस्टिंग, मार्किंग और पैकेजिंग) इकाइयों की स्थापना की जाएगी। यह भारत की सेमीकंडक्टर संभावनाओं के लिहाज से एक बड़ी छलांग है, यह देखते हुए कि वैश्विक कंपनियों को यहां कारखाने लगाने के लिए प्रोत्साहित करने के सरकारों के प्रयास के बावजूद देश कई दशकों तक अवसर से वंचित रहा।
इस ऐलान से पहले दुनिया में चिप की भारी तंगी देखने को मिली थी। इसके अलावा, जैसे-जैसे भू-राजनीतिक तनाव बढ़ रहा है, घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण को आर्थिक वृदि्ध के संभावित वाहक के रूप में देखा जा रहा है। यह अनुमान लगाना बहुत कठिन नहीं है कि मुख्यभूमि चीन और ताइवान के बीच की दुश्मनी किस तरह से सेमीकंडक्टर चिप के उत्पादन को गहराई से प्रभावित कर सकती है।
वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में कमजोरियों को देखते हुए भारत के लिए यह ज्यादा अहम हो गया है कि विभिन्न क्षेत्रों के लिए आवश्यक इलेक्ट्रॉनिक घटकों की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित की जाए, हालांकि यह बात गौर करने की है कि भारत में क्षमता इस क्षेत्र में हुए अत्याधुनिक विकास जैसी नहीं होगी। इसके अलावा, सरकार भारत के उभरते सेमीकंडक्टर परिवेश में रोजगार की संभावनाओं को लेकर काफी आशावादी है।
इन इकाइयों से करीब 20,000 उन्नत प्रौद्योगिकी नौकरियों और करीब 60,000 अप्रत्यक्ष नौकरियों का सृजन हो सकता है। भारत ने एक महत्त्वपूर्ण सेमीकंडक्टर देश बनने की दिशा में अभी बस यात्रा शुरू की है, लेकिन पहले से ही वह एक शीर्ष सेमीकंडक्टर डिजाइन देश की स्थिति में आ गया है, जिसके पास दुनिया का लगभग 20 फीसदी सेमीकंडक्टर डिजाइन प्रतिभा पूल है। यह काफी अहम हो सकता है क्योंकि इससे विनिर्माता अपनी गुणवत्ता में सुधार कर पाएंगे।
फैब कारखानों में निवेश से कंपोनेंट और एंसिलरी विनिर्माण को भी बढ़ावा मिलेगा और साथ ही कुशल कामगारों के लिए रोजगार के ज्यादा अवसर उपलब्ध होंगे। लेकिन यह बात ध्यान देने की है कि निकट भविष्य में ऐसे कुशल श्रमिकों की तलाश कठिन होगी जो किसी फैब कारखाने की फैक्टरी फ्लोर पर काम कर सकें। इसको देखते हुए अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद ने देश के इंजीनियरिंग कॉलेजों में एकीकृत सर्किट और सेमीकंडक्टर चिप के विनिर्माण एवं डिजाइन से जुड़े पाठ्यक्रम शुरू किए हैं। ऐसी उम्मीद है कि कामगारों को कुशल बनाने और समुचित प्रशिक्षण से प्रतिभा की तंगी की समस्या से निजात पाने में मदद मिल सकती है।
ध्यान रहे कि कई और देश भी अपने यहां चिप विनिर्माण कारखाने शुरू करने की कोशिश में लगे हैं, इनमें मलेशिया और वियतनाम जैसे विकासशील देश भी शामिल हैं। अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे देशों-क्षेत्रों में नई दिल्ली से ज्यादा आकर्षक प्रोत्साहन योजनाएं पेश की गई हैं। ऐसे में भारत को बहुत उच्च गुणवत्ता वाली चिप का निर्माण शुरू करने से पहले इंतजार करना होगा।
इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए यह अहम है कि भरोसेमंद बिजली आपूर्ति, जल संसाधन और परिवहन नेटवर्क जैसे बुनियादी ढांचे की अड़चनों को दूर करने पर ध्यान केंद्रित किया जाए। चिप का उत्पादन एक अत्यधिक सटीक और महंगी प्रक्रिया है, जिसमें कई जटिल चरण शामिल होते हैं। यहां तक कि बिजली की आपूर्ति में थोड़ी-सी बाधा भी भारी नुकसान करा सकती है। बहरहाल, भारत ने इस दिशा में शुरुआत करके अच्छा काम किया है और इस क्षेत्र की सफलता के लिए सरकारी संरक्षण और निजी क्षेत्र के निवेश, दोनों की आवश्यकता होगी।
सरकार ने 76,000 करोड़ रुपये की चिप प्रोत्साहन योजना पेश की है और वह बड़ी पूंजी सब्सिडी प्रदान कर रही है। यह देखना होगा कि क्या ये कदम आवश्यक परिवेश विकसित करने में उचित सफलता प्राप्त करने के लिए पर्याप्त होंगे?