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Editorial: शोध एवं विकास व्यय में इजाफा

शोध एवं विकास के क्षेत्र में भारत का प्रति व्यक्ति व्यय दुनिया में सबसे कम है।

Last Updated- February 06, 2024 | 9:32 PM IST
भारत का शोध एवं विकास पर खर्च चीन, अमेरिका की तुलना में बहुत कम, Economic Survey 2024: India's expenditure on research and development is much less than China, America

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अंतरिम बजट पेश करते समय जो भाषण दिया उसमें उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि सरकार का ध्यान उद्यमिता और नवाचार को बढ़ावा देने पर केंद्रित है। ध्यान देने वाली बात यह है कि सीतारमण ने उभरते क्षेत्रों में नवाचार और शोध को प्रोत्साहन देने के लिए एक लाख करोड़ रुपये के कोष की स्थापना करने की घोषणा की। यह कोष लंबी अवधि के लिए शून्य या कम ब्याज दर पर वित्तीय सहायता प्रदान करेगा ताकि निजी क्षेत्र शोध और नवाचार में इजाफा कर सके। 

यह निश्चित तौर पर स्वागतयोग्य कदम है, खासतौर पर भारतीय टेक स्टार्टअप के लिए जो धन की कमी से जूझ रही हैं। परंतु शायद यह शोध एवं विकास क्षेत्र में जरूरी निवेश के लिए पर्याप्त न हो। उत्पाद और प्रकिया नवाचार दोनों ही मामलों में भारत दुनिया की अधिकांश प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं से पीछे है।

शोध एवं विकास के क्षेत्र में भारत का प्रति व्यक्ति व्यय दुनिया में सबसे कम है। सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में हमारा शोध एवं विकास क्षेत्र का कुल व्यय 2020-21 में केवल 0.64 फीसदी था। यह 2.71 फीसदी के वैश्विक स्तर से बेहद कम था। उदाहरण के लिए फोर्ब्स मार्शल के सह-चेयरपर्सन नौशाद फोर्ब्स के इसी समाचार पत्र में प्रकाशित विश्लेषण में कहा गया कि देश की शीर्ष दो सॉफ्टवेयर कंपनियां शोध एवं विकास में अपनी बिक्री का क्रमश: केवल 1.4 और 0.5 फीसदी व्यय करती हैं। 

इसके विपरीत अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी जैसे देशों में आईटी सॉफ्टवेयर कंपनियां क्रमश: 6.5 फीसदी से 21 फीसदी के बीच निवेश करती हैं। वैश्विक बौद्धिक संपदा संस्थान के ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स में भारत को 2023 में 40वां स्थान मिला था। इससे पता चलता है कि भारत शोध और नवाचार को बढ़ावा देने में नाकाम रहा। 

व्यापक तस्वीर को देखें तो भारत के उद्योग जगत द्वारा शोध एवं विकास में कम निवेश ने देश के जीडीपी के शोध में कुल व्यय को कम किया है। निजी क्षेत्र की ओर से निवेश कम होने के कारण अधिकांश बोझ सरकार को उठाना पड़ रहा है जबकि सरकार को बजट में कई अन्य मांगों का भी ध्यान रखना है। आश्चर्य नहीं कि इस समय देश में ऐसी ज्यादा कंपनियां नहीं हैं जो वैश्विक कद का दावा कर सकें, जिनके पास बड़े उत्पाद हों तथा जो वैश्विक बाजारों में बेहतर स्थिति में हों।

ऐसे में यह बात ध्यान देने लायक है कि जब तक निजी क्षेत्र शोध एवं विकास को लेकर प्रयास तेज नहीं करता और नवाचार में इजाफा नहीं होता भारत शायद वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अपनी स्थिति नहीं सुधार सकता। एक कम विकसित बौद्धिक संपदा अधिकार व्यवस्था, डेटा संरक्षण को लेकर अनिश्चितता और छोटी कंपनियों द्वारा अनुकरण का भय ये ऐसी बाते हैं जो निजी क्षेत्र की बड़ी कंपनियों को शोध एवं विकास व्यय को लेकर हतोत्साहित करती हैं।

बहरहाल इन दिक्कतों के बावजूद कुछ वैश्विक कंपनियां भारत में शोध एवं विकास क्षमता तैयार कर रही हैं। उदाहरण के लिए जीई हेल्थकेयर ने 2022 में बेंगलूरु में अपनी 5जी इनोवेशन लैब शुरू की। उसी वर्ष एक अन्य हेल्थकेयर कंपनी ने गुरुग्राम में एशिया-प्रशांत क्षेत्र का अपना पहले सर्जिकल रोबोटिक्स केंद्र खोला। 

बहरहाल, इनमें से कुछ वैश्विक क्षमता केंद्र जहां कुल शोध एवं विकास गतिविधि में इजाफा करेंगे, वहीं यह बात भी ध्यान देने लायक है कि अधिकांश मामलों में शोध एवं विकास पहलों में विदेशी कंपनियों को बढ़त हासिल है।

चूंकि भारत की बड़ी कंपनियों के पास नकदी की कमी नहीं है इसलिए नए दौर की छोटी कंपनियों की मदद के लिए नए कोष की उम्मीद की जानी चाहिए। शोध में गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए सरकार को निजी क्षेत्र के साथ मिलकर काम करना चाहिए ताकि उनकी जरूरतों को पूरा किया जा सके और चिंताओं को दूर किया जा सके। नैशनल रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना इसमें मददगार साबित हो सकती है। 

बहरहाल जैसा कि कई विशेषज्ञों ने भी कहा इसका परिचालन पेशेवर ढंग से होना चाहिए। अफसरशाही का हस्तक्षेप परिचालन और परिणाम दोनों को प्रभावित करेगा। एक ऐसी दुनिया में जहां तकनीक बहुत कुछ तय करती है केवल नवाचार पर ध्यान देने वाली कंपनियां और देश ही आगे बढ़ सकेंगे।

First Published - February 6, 2024 | 9:32 PM IST

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