अर्थव्यवस्था में एक दिन कोई उम्मीद नजर आती है तो अगले दिन भ्रम की स्थिति बन जाती है। अब जबकि 9 जुलाई की तारीख करीब आ रही है तो निश्चित ढंग से यह कहना मुश्किल है कि भारत और अमेरिका समय रहते किसी साझा लाभ वाले द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर पहुंच सकेंगे या नहीं। अमेरिका ने जो नीतिगत रुख अपनाया है उसने न केवल वैश्विक व्यापार व्यवस्था को बाधित किया है बल्कि वैश्विक वित्तीय बाजारों में भी उथलपुथल पैदा की है। उदाहरण के लिए अमेरिकी डॉलर 2025 की पहली छमाही में मुद्रा बास्केट के बरअक्स 10 फीसदी कमजोर पड़ा है। इसके अलावा अमेरिकी व्यापार नीतियों, भूराजनीतिक तनाव आदि ने भी बाहरी जोखिम बढ़ा दिए हैं। जोखिम और अनिश्चितता में इजाफे का संकेत रिजर्व बैंक की ताजा वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट में भी नजर आया जिसे सोमवार को जारी किया गया। जैसा कि रिपोर्ट में कहा गया, बढ़ती व्यापार बाधाएं और गहन भूराजनीतिक शत्रुताएं घरेलू वृद्धि परिदृश्य पर नकारात्मक असर डाल सकती हैं। इसका परिणाम निवेशकों के जोखिम से बचने के रूप में भी सामने आ सकता है और घरेलू शेयर बाजारों में और गिरावट देखने को मिल सकती है।
अमेरिका का घटनाक्रम भारतीय अर्थव्यवस्था को भी अलग-अलग ढंग से प्रभावित कर सकता है। ऐसे में इस बात पर नजर रखनी होगी कि भारत को किस प्रकार के व्यापार समझौते की पेशकश की जाती है बल्कि काफी कुछ इस बात पर भी निर्भर करेगा कि अमेरिका तथा उसके अन्य कारोबारी साझेदारों तथा भारत के प्रतिस्पर्धियों के साथ किस प्रकार के समझौते किए जाते हैं। यह सब भारतीय अर्थव्यवस्था के व्यापार योग्य क्षेत्रों को प्रभावित करेगा और इसका असर मध्यम अवधि के वृद्धि अनुमानों पर भी पड़ेगा। भारत का निवेश भी प्रभावित होगा। व्यापार के अलावा अमेरिकी राजकोषीय स्थिति और नीतियां भी वैश्विक पूंजी प्रवाह को प्रभावित करेंगी। यह बात ध्यान देने लायक है कि वर्ष 2024-25 में भारत का चालू खाता घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 0.6 फीसदी के मध्यम स्तर पर था। लेकिन, समग्र पूंजी प्रवाह इतना नहीं था कि चालू खाते के घाटे की भरपाई की जा सके। इसका परिणाम विदेशी मुद्रा भंडार में कमी के रूप में सामने आया। भारत ने 2024-25 की अंतिम तिमाही में चालू खाते के घाटे के अधिशेष की स्थिति दर्शाई थी लेकिन वैश्विक स्तर पर जोखिम से बचने की प्रवृत्ति अपेक्षाकृत कम घाटे की भरपाई को भी मुश्किल बना सकती है। रिजर्व बैंक का अद्यतन प्रारूप दर्शाता है कि अत्यधिक विपरीत हालात में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश बाहर जा सकता है और इसका आंकड़ा जीडीपी के 6 फीसदी तक हो सकता है। हो सकता है कि ऐसे हालात न बनें लेकिन बाहरी स्थिति पर सतर्क तरीके से निगरानी रखने की जरूरत होगी।
बहरहाल, विपरीत वैश्विक परिदृश्य में घरेलू आर्थिक और वित्तीय हालात देश के नीति निर्माताओं को राहत दे सकते हैं। उदाहरण के लिए मुद्रास्फीति के लक्ष्य के करीब रहने की उम्मीद है। इससे रिजर्व बैंक को अवसर मिला है कि वह नीतिगत दरों में कटौती कर सके। सामान्य से बेहतर मॉनसून से कृषि उत्पादन बेहतर होगा और वृद्धि को मदद मिलेगी। राजकोषीय मोर्चे पर चल रहे मजबूती के प्रयास जारी रह सकते हैं। कंपनियों और बैंकों के बहीखाते भी अच्छी स्थिति में हैं। जैसा कि रिपोर्ट में कहा गया है, गैर वित्तीय निकायों का डेट-इक्विटी अनुपात कम हुआ है और देश का कॉरपोरेट कर्ज और जीडीपी अनुपात 51.1 फीसदी है जो अन्य उभरते तथा उन्नत देशों से काफी कम है। परिवारों का कर्ज बढ़ा है लेकिन वह अन्य उभरते देशों की तुलना में कम है। बैंकिंग क्षेत्र में सूचीबद्ध वाणिज्यिक बैंकों की सकल गैर निष्पादित परिसंपत्तियां मार्च 2017 के 9.6 फीसदी से कम होकर मार्च 2025 में 2.3 फीसदी रह गईं। शुद्ध एनपीए भी कम हुआ है जबकि परिसंपत्ति पर रिटर्न में सुधार हुआ है। ध्यान रहे कि 2024-25 में पूंजी बाजार से धन जुटाने में 32.9 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। जहां एक ओर कॉरपोरेट क्षेत्र के बहीखाते और देश के वित्तीय बाजार की स्थितियां अनुकूल हैं वहीं निवेश में सुधार, जो संभावित वृद्धि को गति देने के लिए जरूरी है, बाहरी अस्थिरताओं के कारण सीमित रह सकता है।