केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पिछले हफ्ते राष्ट्रीय एआई (आर्टिफिशल इंटेलिजेंस) मिशन के लिए 10,371.92 करोड़ रुपये का पैकेज मंजूर किया था। इस अभियान के तहत देश में कंप्यूटिंग क्षमता तैयार करने पर जोर दिया जाएगा।
यह पहले की उन सरकारी घोषणाओं के अनुरूप है जिनमें कहा गया था कि त्रि-स्तरीय कंप्यूटिंग संरचना स्थापित करने पर विचार किया जाएगा। इस मिशन के ब्योरे की बात करें तो अभी तक जो ज्ञात है उसके मुताबिक इसमें निजी क्षेत्र द्वारा उच्च-स्तरीय कंप्यूटिंग बुनियादी ढांचा तैयार करने के लिए व्यवहार्यता अंतर का वित्तपोषण शामिल होगा।
प्रासंगिक स्टार्टअप में निवेश के साथ ही शैक्षणिक संस्थानों को अनुसंधान और विकास (आरऐंडडी) में सहयोग के लिए निश्चित राशि भी निर्धारित की गई है। इसमें नए प्लेटफॉर्मों की स्थापना भी शामिल है जो स्वास्थ्य सेवा, कृषि और शासन जैसे क्षेत्रों के लिए प्रमुख भारतीय भाषाओं को कवर करने वाले डेटासेट पर प्रशिक्षित 100 अरब मापदंडों से अधिक क्षमता वाले मूलभूत मॉडल विकसित करेंगे। इसके तहत एआई क्यूरेशन इकाइयों (एसीयू) का भी विकास किया जाएगा।
प्रस्ताव में ‘एआई मार्केटप्लेस’ की स्थापना की बात भी शामिल है, जो एआई को सेवा और पूर्व-प्रशिक्षित मॉडल के रूप में पेश करने के लिए डिजाइन किया गया है। वैसे तो इस क्षेत्र के लिए यह सब उपयोगी और मददगार होगा लेकिन निजी क्षेत्र कंप्यूटिंग बुनियादी ढांचे की स्थापना करने तथा मॉडल एवं बाजार विकसित करने के लिए अपेक्षित निवेश तलाशने में खुद सक्षम है, बशर्ते कि उसे पर्याप्त नीतिगत समर्थन मिले।
एआई जैसे उच्च विकास वाले क्षेत्र के लिए निवेश जरूर आएगा। वास्तव में, सरकार एआई मिशन की रूपरेखा के मुताबिक महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों के लिए प्रारंभिक वित्तपोषण यानी जरूरी कर्ज या आर्थिक सहयोग से ज्यादा कुछ नहीं दे सकती। इसलिए सरकार को सक्षम वातावरण बनाने पर ज्यादा जोर देना होगा।
एआई के परिवेश को समझदारी वाले, स्पष्ट विनियमन एवं कानून और सक्षम नीति की आवश्यकता है, जिसमें प्रासंगिक हार्डवेयर के आयात के लिए तार्किक सीमा शुल्क और कर नीति, उपकरण के लिए मूल्यह्रास, सॉफ्टवेयर में अनुसंधान एवं विकास के लिए व्यय के दिशानिर्देश, सेमीकंडक्टर जैसे उच्च-स्तरीय उपकरणों के स्थानीय निर्माण को प्रोत्साहित करने पर जोर और एआई परिवेश में निवेशकों के लिए स्पष्ट नीति शामिल हो।
इसके अलावा यह देखते हुए कि एआई बड़े पैमाने के डेटा के आधार पर काम करता है, इस क्षेत्र के बढ़ने के साथ-साथ व्यक्तिगत और गैर-व्यक्तिगत डेटा, दोनों के प्रसंस्करण और भंडारण को बेहतर बनाने की तत्काल आवश्यकता है। ये ऐसी नीतिगत चिंताएं और इनपुट हैं जिनका समाधान केवल सरकार ही कर सकती है। इसलिए जल्द से जल्द इस दिशा में आगे बढ़ना उचित होगा।
इस मिशन में लगभग 10,000 उच्च-स्तरीय ग्राफिक्स प्रोसेसिंग इकाइयों (जीपीयू) की क्षमता स्थापित करने के लिए करीब 4,500 करोड़ रुपये की व्यवहार्यता अंतर के वित्तपोषण की बात की गई है। हालांकि यह आवंटन उच्च-स्तरीय जीपीयू में केवल 1,000 से 1,500 या उसके आसपास की इकाइयों के वित्तपोषण के लिए पर्याप्त होगा लेकिन जैसे-जैसे व्यापकता बढ़ेगी, लागत कम होती जाएगी।
मौजूदा भारतीय स्टार्टअप तंत्र की जीवंतता और पैमाने को देखते हुए, स्टार्टअप को वित्तपोषित करने के लिए हुए 2,000 करोड़ रुपये के एक और आवंटन को वास्तव में किसी अन्य उद्देश्य के लिए आवंटित किया जा सकता है। हालांकि बड़े मूलभूत मॉडलों में अनुसंधान एवं विकास के लिए इंडियाएआई इनोवेशन रिसर्च सेंटर को 2,000 करोड़ रुपये का आवंटन और इंडियाएआई डेटासेट प्लेटफॉर्म की स्थापना निश्चित रूप से इस क्षेत्र के लिए उपयोगी साबित होगी।
ये ऐसे खुले बहुपक्षीय मंचों के रूप में काम कर सकते हैं जो कई सार्वजनिक क्षेत्र और निजी संस्थाओं को सहयोग और सेवा प्रदान करते हैं। एआई मिशन के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता सराहनीय है और महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करना भी सराहनीय कदम है। इस संदर्भ में देखें तो दुनिया तेजी से आगे बढ़ रही है और भारत को भी पीछे नहीं रहना चाहिए, खासकर इसके अंतर्निहित फायदों को देखते हुए।
हालांकि ऊपर उल्लिखित जिन क्षेत्रों की बात हमने की है, उनके बारे में नीति निर्माण महत्त्वपूर्ण है। इसके साथ ही यह भी अहम है कि एआई का विकास और इस्तेमाल एक मजबूत और स्थिर ढांचे के तहत हो। एक बार नीति के मोर्चे पर स्पष्टता आ जाए तो इस क्षेत्र में निवेश जरूर आएगा।