ई-कॉमर्स कंपनियों सहित माल का बढ़ता आवागमन और प्राथमिक से अंतिम छोर तक बढ़ती आवाजाही भारतीय शहरों में बढ़ती भीड़, शोर और ध्वनि प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं। शहरों में माल की आवाजाही के प्रबंधन और लॉजिस्टिक की लागत कम करने के लिए उद्योग संवर्धन एवं आंतरिक व्यापार (डीपीआईआईटी) विभाग ने महानगरों के लिए व्यापक शहरी लॉजिस्टिक योजना (सीएलपी) तैयार की है।
इसकी शुरुआत बेंगलूरु और दिल्ली से हुई है। इस पहल का स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि इसका लक्ष्य माल और लॉजिस्टिक प्रबंधन को सुसंगत बनाना और वाहनों से जुड़ी गतिविधियों की बाहय नकारात्मकताओं जैसे भीड़-भाड़ और प्रदूषण को दूर करना और इसके साथ ही टिकाऊ लक्ष्यों को बढ़ावा देते हुए जीवन की समग्र गुणवत्ता में सुधार करना है। यह 2022 में प्रस्तुत नैशनल लॉजिस्टिक नीति के भी अनुरूप है जिसें शहरी स्तर की लॉजिस्टिक योजनाओं का विकास शामिल है।
नैशनल काउंसिल ऑफ ऐप्लाइड इकनॉमिक रिसर्च के अनुमान दिखाते हैं कि 2021-22 में सकल घरेलू उत्पाद में लॉजिस्टिक की लागत 7.8 से 8.9 फीसदी रही। शहरी क्षेत्रों में ई-कॉमर्स के क्षेत्र में शहरों में अंतिम छोर तक वाहनों का आवागमन कुल लॉजिस्टिक लागत का 50 फीसदी है। इसके अलावा देश के कुल माल वहन संबंधी कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन में शहरी माल वहन की हिस्सेदारी 10 फीसदी है और यह शहर के भीतर परिवहन संबंधी नाइट्रोजन ऑक्साइड तथा पर्टिकुलेट मैटर उत्सर्जन में सबसे अधिक योगदान करने वाला है। इससे यह बात रेखांकित होती है कि हमें लॉजिस्टिक की लागत पर लगाम लगाने के लिए एक व्यवस्थित योजना बनाकर काम करना होगा।
जापान और कई यूरोपीय देश मसलन जर्मनी और फ्रांस शहरी लॉजिस्टिक में अग्रणी हैं। इस संबंध में भारत को वैश्विक स्तर पर बेहतरीन व्यवहार को अपनाना चाहिए। इसमें शामिल हैं, एनालिटिक्स का इस्तेमाल करके एकदम सटीक मार्ग निर्धारण ताकि दौरों की संख्या और उनकी लागत में कमी आ सके। इसके अलावा पैकिंग डिजाइन और व्यवहार की मदद से लोड फैक्टर बढ़ाना भी दौरे कम करने में सहायक होगा। बहुउपयोगी लेन और रात में डिलिवरी की मदद से शहरी माल डिलिवरी की उत्पादकता बढ़ेगी और डिजिटल प्लेटफॉर्म की सहायता से लोड मिलान और समय की बरबादी रोकना भी इसमें शामिल है।
अध्ययन दिखाते हैं कि बड़े वाहनों पर माल ढुलाई के कारण परिवहन किफायती होता है कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी आती है। ऐसा इसलिए कि बड़े वाहन एक बार में अधिक माल ढो सकते हैं।
नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार भारी माल ढुलाई को रेल के हवाले करके, ट्रकों का इस्तेमाल बेहतर बनाकर और स्वच्छ ईंधन का उपयोग करके भारत 2050 तक 10 गीगाटन कार्बन उत्सर्जन कम कर सकता है और कुल पार्टिकुलेट मैटर और नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जन में क्रमश: 28 फीसदी और 35 फीसदी की कमी आ सकती है।
बहरहाल, सीएलपी का क्रियान्वयन भी समस्याओं से भरा हुआ है। देश के अधिकांश शहरों में केवल 10 से 12 फीसदी जमीन पर सड़कें हैं जो वैश्विक मानक का आधा है। इसके साथ ही किसी क्षेत्र के विकसित होने के बाद वहां अधिक जमीन पर सड़कें बनाना महंगा पड़ता है। मानव विकास और शहरी सड़कों पर अत्यधिक वाहन भी अक्सर अलग-अलग वजहों से माल ढुलाई को अक्सर बाधित करते हैं। ऐसे में सीएलपी की कामयाबी राज्य सरकार और शहरी स्थानीय निकायों पर निर्भर करती है। शहरों को संसाधनों से संपन्न बनाना अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। बिना समुचित वित्तीय मदद के स्थानीय सरकारें भी कुछ खास हासिल नहीं कर पाएंगी।